राज्य सरकार एएसआई परीक्षा निरस्त करने पर गंभीरता से विचार कर रही है । लेकिन क्या परीक्षा निरस्त करने से समस्या का हल निकल जाएगा ? बिल्कुल भी नहीं । मान लिया कि दस फीसदी लोग पेपर लीक के जरिये चयनित हो गये हैं । लेकिन 90 फीसदी तो ऐसे लोग हैं जिनका पेपर लीक से दूर दूर तक कोई ताल्लुक नहीं है । पेपर निरस्त करने से योग्य उम्मीदवारों के भविष्य पर निश्चय ही प्रतिकूल असर पड़ेगा ।
कहावत है कि _चोर नहीं, चोर की माँ को पकड़ना चाहिए ।_ बेहतर होगा कि चोर दरवाजे से नियुक्त आरपीएससी के अध्यक्ष और सदस्यों को जबरन हटाना चाहिए । हालांकि ये संवैधानिक पद हैं । इसलिए हटाना मुश्किल होता है । लेकिन सरकार के लिए नामुमकिन कतई नहीं है । जब उमेश मिश्रा को डीजीपी पद छोड़ने के लिए बाध्य किया जा सकता है तो आरपीएससी पर इतने दिनों तक मेहरबानी क्यों ?
संजय श्रोत्रिय को अशोक गहलोत ने इसलिए बनाया था कि वे उनके सुरक्षा सलाहकार थे । हालांकि गड़बड़ियां वसुंधरा के वक्त चयनित लोगों ने खूब की थी । लेकिन अशोक गहलोत द्वारा चयनित अध्यक्ष और सदस्यों ने खूब गदर मचाया और आज भी मचा रहे हैं । आरपीएससी के सूत्र बताते हैं कि गहलोत के वक्त में सीएमआर से सूची आती थी । सूची के अनुसार ही लोग चयनित होकर व्यवस्था को अंगूठा दिखा रहे हैं ।
भजनलाल शर्मा को अपनी साख में इजाफा करना है तो येन केन प्रकारेण आरपीएससी के सभी सदस्यों का इस्तीफा लेना चाहिए । या फिर अध्यादेश जारी करते हुए कुछ समय के लिए लोक सेवा आयोग को ही भंग कर देना चाहिए । भैरोसिंह शेखावत ने भी हरिदेव जोशी के समय नियुक्त लोकायुक्त पीडी कुदाल को इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया था । कुदाल इस्तीफा देने को राजी नहीं थे । शेखावत ने विधि सचिव एसआर भंसाली के जरिये मेसेज पहुंचाया कि वे इस्तीफा नही देंगे तो लोकायुक्त एक्ट को ही समाप्त कर दिया जाएगा । अन्ततः कुदाल को इस्तीफा देने के लिए बाध्य होना पड़ा ।
मुख्यमंत्री निश्चित रूप से ईमानदार छवि के व्यक्ति हैं । आरपीएससी में हुई गड़बड़ियों की वजह से उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है । आरपीएससी को तुरंत भंग करने के साथ साथ ऐसे नियम बनाए जाएं, जिससे पारदर्शी तरीके से अध्यक्ष और सदस्यों का चयन हो सके । संड़ाध मारते इस आयोग से छुटकारा पाना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए । क्योंकि यह लाखों नौजवानों के भविष्य जुड़ा मुद्दा है ।
@ *महेश झालानी*
_वरिष्ठ पत्रकार_