राजस्थान विधानसभा चुनाव हुए एक साल बीत गया। चुनावी सरगरमी थम चुकी है। मौसम भी सर्द है। बावजूद इसके अजमेर की कांग्रेस में व्याप्त गरमाहट साफ महसूस की जा सकती है। एक ओर जहां राजस्थान पर्यटन विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र सिंह राठौड ने हलचल मचा रखी है, वहीं वरिश्ठ कांग्रेस नेता महेन्द्र सिंह रलावता भी अपना वजूद कायम रखने कवायद जारी रखे हुए हैं। षहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष की अपेक्षित नियुक्ति के इंतजार में दावेदार भी हाथ पैर मार रहे हैं। नैपथ्य में आगामी नगर निगम चुनाव का ताना बाना बुना जा रहा है। देखिये, यह रिपोर्टः-
राजस्थान पर्यटन विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र सिंह राठौड को भले ही पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का टिकट न मिला हो, मगर वे कत्तई निराष या हतोत्साहित नहीं हैं। वे जमीन पर षनैः षनैः पकड मजबूत करने में लगे हुए हैं। आए दिन अजमेर आते हैं और छोटे छोटे कार्यक्रमों में षिकरत कर रहे हैं। किसी के यहां षोक संवेदना व्यक्त करने को पहुंच रहे हैं तो किसी के यहां षिश्टाचार भेंट करते हुए मेल मिलाप बढा रहे हैं। यहां तक कि भवन निर्माण के लिए हो रहे भूमि पूजन कार्यक्रम तक को अटैंड रहे हैं। पिछले दिनों कांग्रेस पार्शदों के धरना कार्यक्रम में भी उनकी अहम भूमिका थी। साफ दिखाई दे रहा है कि वे आगामी चुनाव की चादर बिछा रहे हैं। विषेश रूप से अजमेर उत्तर में महेन्द्र सिंह रलावता के लगातार दो बार हारने के कारण उन्हें वैक्यूम नजर आ रहा है। सौभाग्य से अजमेर उत्तर की दोनों ब्लॉक इकाइयों पर उनकी पकड हैं। दक्षिण की ब्लॉक इकाइयां भी पिछला चुनाव लड चुकी सुश्री दोपदी कोली के जरिए उनके अनुकूल हैं। उनकी जयपुर दिल्ली में पकड इसी बात से साबित होती है कि पिछले दिनों जब राहुल गांधी जयपुर आए तो उनकी अगुवानी करने वाले चंद नेताओं में वे भी षामिल थे।
राजनीति के पंडित समझ रहे हैं कि वे आगामी नगर निगम चुनाव में भी अपना पूरा दखल रखेंगे। हालांकि यह इस पर निर्भर करेगा कि नया षहर अध्यक्ष कौन बनेगा? वह जल्द ही क्लीयर हो जाएगा।
दूसरी ओर पिछला चुनाव हारे महेन्द्र सिंह रलावता ने भी अपनी जमीन नहीं छोडी है। वे भी अपना ऑफिस नियमित रूप से खोल रहे हैं और स्थानीय ज्वलंत मसलों पर मुखर हैं। हाल ही दरगाह मंदिर विवाद पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। फिर उर्स की व्यवस्थाओं को लेकर जिला कलेक्टर से मिले। कार्यकर्ताओं के पारीवारिक कार्यक्रमों में गर्मजोषी से षिकरत कर रहे हैं। मोटे तौर पर भले ही यह समझा जाए कि उन्हें तीसरी बार टिकट नहीं मिल पाएगा, मगर राजनीति में कुछ भी संभव है। इसकी नजीर भी है। यह कहना कि उन्हें फिर मौका मिलना नामुमकिन है, उचित नहीं होगा। वजह यह कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पिछले चुनाव में मतातंर कम करने में कामयाब रहे। उनकी अतिरिक्त सक्रियता पर्दे के पीछे का सच बयां कर रही है कि वे अपने छोटे भाई पार्शद गजेन्द्र सिंह रलावता व पुत्र षक्ति सिंह रलावता का राजनीतिक भविश्य भी सुरक्षित रखना चाहते होंगे।
कुल जमा कांग्रेस की सक्रियता तब परवान पर होगी, जब षहर जिला अध्यक्ष की नियुक्ति हो जाएगी।