एक कहावत है कि हर सफल आदमी की कामयाबी में, उसके वजूद के पीछे औरत का हाथ होता है। यह मीडिया फोरम की महासचिव डॉ. रशिका महर्षि के पति स्वर्गीय श्री दिलीप महर्षि पर सटीक बैठती है। कहावत का उलट भी इस दंपति पर फिट बैठता है। डॉ. रशिका महर्षि की सफलता में दिलीप महर्षि के संबल ने ही अपनी भूमिका अदा की है।
दिलीप महर्षि आयुर्वेद विभाग में काम करते थे। स्वाभाविक रूप से नौकरी के अतिरिक्त सार्वजनिक जीवन में उनकी भागीदारी कम ही नजर आई, मगर सच यह है कि नौकरी से पहले वे अजमेर व पुश्कर के पुराने घरानों से संबंद्ध रहे। शहर की धडकन पर उनकी पकड थी। बिंदास व्यक्तित्व। दंबग पर्सनेलिटी। बडा रुतबा था। सिद्धांत के पक्के। इसी वजह से उनके चेहरे पर दृढता चमकती थी, मगर नारियल की तरह भीतर से कोमल, सहृदय। बहुत सूझबूझ। कूल माइंडेड। विलक्षण व्यक्तित्व।
चंद साल पहले डॉ. रशिका महर्षि ने पति श्री दिलीप महर्षि को अपनी किडनी दान की थी। और अपना जीवन सार्थक कर लिया। यूं समझें कि दिलीप के शरीर में रशिका की किडनी नहीं, बल्कि उनके प्राण प्रतिस्थापित थे। एक दूसरे के बीच अटूट स्नेह। एक दूसरे के पूरक। बहादुर औरत ने पोस्ट ऑपरेटिव समस्याओं का किस प्रकार हिम्मत से मुकाबला किया, वह सभी शुभचिंतकों के संझान में है। पति की सेवा का अनूठा उदाहरण। साथ में बच्चों की बेहतरीन परवरिश में कोई कमी नहीं। इस शख्सियत का रोचक पहलु ये कि दैनंदिन पारीवारिक व्यस्तताओं के बाद भी सार्वजनिक जीवन में भरपूर सक्रियता उनके अदम्य उत्साह का प्रमाण है। संघर्ष में भी उत्सव तलाशने की अद्भुत कीमिया। ऊर्जा से लबरेज इस महिला से सकारात्मकता की किरणें फूटती हैं। ऐसी सफल नारी का संबल थे दिलीप महर्षि। हर कदम पर उनके साथ खडे नजर आए। पूर्णतः खिले इस पुष्प को जीवनी शक्ति मिलती रही जड में मौजूद दिलीप महर्षि से। अब मलाल सिर्फ इतना कि अपनी किडनी दान देकर जीवन देने के बाद प्रकृति ने दूसरे मार्ग से हठात जीवन छीन लिया। अफसोस। अफसोस इस बात का भी कि पारीवारिक जिम्मेदारियों, व्यस्तताओं के चलते डॉ. रशिका महर्षि में अध्यात्म और पत्रकारिता के क्षेत्र में जिन नए आयामों और उंचाइयों को छूने की संभाव्यता थी, वह भ्रूण अवस्था में ही रह गई। उम्मीद है कि बिंदास विदुषी रशिका वज्राघात से उबर कर नए प्रतिमान स्थापित करने में कामयाब होंगी।