गरीबों का राशन हड़पने वालों को मोहलत क्यों? अपात्र ज्यादा हैं तो योजना ही बंद कर दें?

वरिष्ठ समाजसेवी व पर्यावरणप्रेमी हरिराम कोडवानी ने गिव अप अभियान पर उठाए सवाल
हरिराम कोडवानी

खाद्य एवं नागरिक विभाग की बड़ी कृपा कि उसने गिव अप अभियान में आवेदन के लिए अंतिम तिथि 31 मार्च तक बढा दी है। खाद्य सुरक्षा योजना के तहत फ्री राशन ले रहे परिवारों को अगर वे इस योजना के पात्र नहीं हैं तो अपना नाम वापस ले सकते हैं वर्ना सरकार उनसे 2016 से अब तक दिए गए अनाज का पैसा वसूल कर लेगी। एलपीजी व बिजली की सब्सिडी छोड़ने के लिए तो सरकार ने अपील की थी लेकिन इस बार धमका रही है। यह विचार वरिष्ठ समाजसेवी व पर्यावरणप्रेमी हरिराम कोडवानी ने व्यक्त किए। कोडवानी ने दैनिक  मरु प्रहार से बातचीत करते हुए कहा कि अव्वल तो सरकार ने पात्रता नियम ही ऐसे बनाए हैं कि अधिकतर लोग इस योजना से बाहर हो जाएंगे। इससे तो बेहतर होगा कि सरकार यह योजना ही बंद कर दे।  इसके अलावा जिन लोगों ने बेईमानी कर यह राशन लिया है उन पर सरकार इतना रहम क्यों दिखा रही है? बंगला, गाड़ी और सरकारी नौकरी के बावजूद गरीबों के हिस्से का राशन खा रहे लोंगों को मोहलत क्यों? अगर अपा¬त्र हैं तो कार्रवाई करे लेकिन बेहूदे नियम बनाकर पात्र परिवारों से अन्याय क्यों कर रही है सरकार ?

कोडवानी ने कहा कि एक लाख रूपए की सालाना आय वाला परिवार सरकार की नजर में गरीब नहीं है। इसलिए उसे अपना राशन कार्ड सरेंडर करना होगा। एक लाख की सालाना आमदनी वाले परिवार ने खाद्य सुरक्षा के तहत हासिल अपना राशन कार्ड सरेंडर नहीं किया, तो उससे वर्ष 2016 से अब तक लिए गए राशन की 27 रुपए प्रतिकिलो से वसूली की जाएगी। जिसके पास चारपहिया वाहन है, चाहे लोन से खरीदा है, उसे भी राशन कार्ड सरेंडर करना होगा।, इसमें तो कोई बात नहीं है। जो परिवार चारपहिया वाहन लोन पर खरीदकर उसकी किश्त भर सकता है, तो यह माना जा सकता है कि अब वह गरीबी की रेखा से बाहर हो गया है, इसलिए वह चारपहिया वाहन का उपयोग कर रहा है। लेकिन जिन परिवारों की सालाना आमदनी एक-दो लाख ही है, तो उसे सरकार गरीबी रेखा से बाहर कैसे मान सकती है। जब केंद्र सरकार ने पांच लाख रुपए तक सालाना आय वालों को आयकर दायरे से बाहर किया हुआ है और आठ लाख रूपए तक की आय वाले परिवारों के बच्चों के ईडब्ल्यूएस कार्ड बन सकते हैं यानी वह गरीबी की दायरे में हैं, तो सरकार को एक लाख रूपए सालाना आमदनी वाला परिवार कैसे अमीर नजर आ गया? एक लाख रूपए सालाना आय का मतलब है आठ या सवा आठ हजार रूपए प्रतिमाह की आय वह भी परिवार के सभी सदस्यों की आय को मिलाकर? यानी पति पत्नी भी हैं तो उनकी आय पांच हजार से ज्यादा न हो ? क्या आज कमरतोड़ महंगाई के जमाने में इतनी कम आमदनी में किसी परिवार का गुजारा चल सकता है। यह बात जुदा है कि आज भी हजारों-लाखों ऐसे परिवार होंगे, जो महज आठ-सवा आठ हजार रूपए प्रतिमाह की आय में गुजर-बसर कर रहे हैं।  अगर एक लाख रुपए की आय वाले ही गरीब हैं तो अजमेर सहित हर शहर में आठ दस हजार की प्राइवेट नौकरी कर रहे युवा अमीर हैं? उनसे तो आयकर वसूला जाना चाहिए? सरकार को पता नहीं है कि अकेले अजमेर में ऐसे हजारों सवर्ण युवा हैं जो सरकारी नौकरी की दौड़ में जिंदगी बर्बाद करने की बजाय पढ़ाई अधूरी छोड़कर या किसी तरह डिग्री हासिल कर घर से हजारों किलोमीटर दूर विदेशों में नौकरी कर रहे हैं जिन्हें वेतन तो करीब करीब यहां जितना ही मिल रहा है लेकिन खाने-रहने का खर्च नहीं होने से पैसा बचा रहे हैं? अठारह से पचीस साल के इकलौते बेटे को अनजान देश में अकेले भेजना आसान नहीं है । ऐसे युवाओं व उनके परिवारों की जिम्मेदारी से सरकार आजाद है इसका यह मतलब नहीं कि उनके लिए कोई जिम्मेदारी बनती ही नहीं है?
शोर मचाने से रोका तो जान ले लेंगे?
कोडवानी ने पुष्कर में वकील पुरु़षोत्तम जाखेटिया की हत्या को लेकर वकीलों में रोष को जायज ठहराते हुए कहा कि सरकार को डीजे की इजाजत देनी ही क्यों चाहिए? क्या डीजे आवश्यक सेवाओं में शामिल है? हम भारतीयों की श्रवण क्षमता भले ही  अन्य  देशों के नागरिकों जितनी हो लेकिन शोर मचाने व सहने की क्षमता औरों से ज्यादा है। घर में शादी समारोह हो या बर्थ डे पार्टी, जब तक तेज म्यूजिक की बाहर आवाज न जाए तब तक खुशी अधूरी लगती है। शहर में मदारगेट हो या पड़ाव हो या अन्य व्यस्त क्षेत्र , लोग बिना वजह हॉर्न बजाते मिलेंगे। जैसे ही आगे वाला वाहन रुका, पीछे वाले होर्न बजाना शु्रू कर देंगे? आगे वाला वाहनचालक घबराकर और आगे जाकर पहले से जाम हो रहे जाम में वाहन फंसा लेगा। उसके बाद जो होर्न का शोर मचेगा वह देख्रने लायक होगा सुनने लायक नहीं। अगर शोर मचा रहे पड़ोसी को टोक दिया तो क्या जान ले लेंगे उसकी ?
तीर्थ गोरानी 

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