
आश्चर्य। धन कमाने के शौकीन आदमी को किताबों से क्या काम। फिर सौ साल पहले ! वह कोई नगर सेठ हो और उसकी लाइब्रेरी मे दो हजार पुस्तकें हों तो जरूर अचरज होता है। मुजे इंदरचंद जी पाटनी ने कभी यह बात बताई थी। वे सोनी जी की नसितां मे आचार्य विद्यासागर पीठ का काम देखते थे। उनके अनुसार सर सेठ भागचंद सोनी को अध्ययन का बहुत शौकक था। वे किसी समय अजमेर पश्चमी रेलवे के खजांची थे _ कर्मचारियों को वेतन बांटते थे_ रेलवे से उनको भुगतान बाद मे मिलता था। उनके ही निजी पुस्तकालय मे लगभग दो हजार ग्रंथ एवं पुस्तक थी। साहित्य,धर्म एवं दर्शन की विख्यात किताबें थीं। वे नियमित पढते थे। ये किताबें बाद में सेठ साहब के मंदिर के पुस्तकालय को दे दी गयी थों। सरावगी मोहल्ला मे स्थित यह मंदिर भी आंतरिक कलात्मक सौंदर्य की दृष्टि से नयनाभिराम है।
एक और बङ़ी बात _ सेठ जी जब कभी किसी सामूहिक भोज मे जाते थे तो घर का भोजन एव॔ कुएं का पानी साथ ले जाते थे। सब के साथ पंगत में बैठते थे। किंतु स्वयं के घर का ही भोजन करते थे _ खान पान की शुद्धता के नियम का कठोरता पूर्वक निर्वाह करते थे।
उनकी माता जी बीमार थीं। डाक्टर ने किसी प्राकृतिक स्थान पर ले जाने के लिए कहा। तब दौलतबाग के पास वाली पहाङ़ी की चौदह हजार गज जमीन खरीद कर यह कोठी बनाई गयी जो आज भी भागचंद जी की कोठी के नाम से विख्यात है।