रजिस्ट्री करवाने वाले का जायज हक हुआ या नहीं?

-कीर्ति पाठक शर्मा
-कीर्ति पाठक शर्मा

इक बात समझ से परे है ……
आम आदमी यदि कोई ज़मीन खरीदता है तो वह सरकारी महकमे से रजिस्ट्री करवाता है ……
फिर तो ज़मीन पर उस का हक जायज़ हुआ कि नहीं ??
फिर उस पर बिजली का कनेक्शन मिलता है और पानी का ….
फिर वहां सड़कें बनती हैं और नालियां भी ..
फिर नगर पालिका/परिषद् चुनाव,विधान सभा चुनाव और लोक सभा चुनाव में वह भाग लेता है उस कॉलोनी के अपने वोटर कार्ड से …..
यानी क़ि उस कॉलोनी को पूरा सरकारी ठप्पा …….
फिर वो कॉलोनी नाजायज़ मानी जाने लगी ??
नियमन नहीं …..
अब इस से ज़यादा क्या नियमन होगा कि वहां का पता सरकारी रिकार्ड्स में हो …..
वहां के स्थानीय पार्षद चुने जाते हों ….
और स्थानीय विधायक वहां सड़कों और नालियों को बनवाने के लिए जनता के ही अमूल्य टैक्स के पैसे अपने कोष से मंज़ूर करते हों ……
हमारी समझ में ये बात कतई नहीं आती कि अब क्यूँ कर उस साधारण आम जनता को भावनात्मक रूप से परेशान किया जाए ??
गलती किस की है इस पूरे प्रकरण में ???
१. उस जन सेवक की जिस ने ज़मीन की रजिस्ट्री की ??
२. उस जनसेवक की जिस ने मकान का नक्शा पास किया ??
३. उस जनसेवक की जिस ने मकान का पूर्णता प्रमाण पत्र दिया ??
४. उस जन सेवक की जिस ने वह कॉलोनी के बाशिंदों को उस पते के मतदाता पहचान पत्र जारी किये ??
५.उस जन सेवक की जिस ने मकान बनते देखे पर उन की शिकायत नहीं की ??
६. उस जन प्रतिनिधि की जिस ने वहां के मतदाताओं से वोट लिए ??
७. उस जनप्रतिनिधि की जिस ने मकान बनते देखे और शिकायत नहीं की ??
८. उस जन प्रतिनिधि की जिस ने सरकारी भूमि पर कब्ज़ा होते देखा और शिकायत नहीं की ??
९. उस जागरूक नागरिक की जिस ने सरकारी भूमि पर अतिक्रमण/निर्माण होते देखा और शिकायत नहीं की ??
१० उस लालची व्यक्ति की जिस ने सरकारी भूमि पर कब्ज़ा कर भोली भाली गरीब जनता को मूर्ख बनाया और उन्हें वह ज़मीन बेचीं ??
क्या अब इन सब पर जवाबदेही का कोई केस दर्ज करवाएगी सरकार या अपने आप को निरीह मानने वाली जनता पर ही गाज गिरेगी ??
-कीर्ति पाठक शर्मा

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