कितना सफल होगा केजरीवाल का दांव?

arvindनाटकीयता, अरविंद केजरीवाल की राजनीति का शुरू से ही अभिन्न हिस्सा रही है, और इसलिए दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से उनके इस्तीफे को पूर्वनियोजित माना जा सकता है। केजरीवाल से अब उस भूमिका की अपेक्षा की जा सकती है, जो स्वाभाविक रूप से उनके पास है -एक प्रदर्शनकारी की भूमिका। यह कहने में संकोच नहीं कि वह मुख्यमंत्री की अपेक्षा भीड़ को उकसाने वाले व्यक्ति के रूप में ज्यादा सफल होंगे। इसके अतरिक्त, वह यह दिखा सकते हैं कि विवेकहीन विपक्ष की वजह से ही वह मुख्यमंत्री बने रहने में असमर्थ हैं। आम आदमी पार्टी (आप) के नेता इस बात से वाकिफ हैं कि बड़े तबके, विशेषकर निचले वर्ग के लोगों के बीच वह मसीहा की तरह हैं, जो राजनीति की गंदगी मिटाने को तत्पर है। उन्होंने जैसा दिल्ली विधानसभा में इस्तीफे के दौरान अपने भाषण में कहा कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में अपना जीवन अर्पित करना चाहते हैं।
इस्तीफे के बाद वह इस स्थिति में हैं, जहां वह यह दावा कर सकते हैं कि कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उद्योगपति मुकेश अंबानी ने उन्हें उनके उद्देश्य को पूरा नहीं करने दिया। अगर उनके दावे को लोगों ने सच मान लिया और वह सोमनाथ भारती जैसे अति उत्साही समर्थक को नियंत्रित करने में कामयाब रहे तो ऐसा अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगले विधानसभा चुनाव में वह पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब रहेंगे।
संसदीय चुनाव में भी आप को 20 से 40 सीट मिल सकती है। यह परिणाम भाजपा के शीर्ष नेताओं की त्योरिया चढ़ा सकता है, क्योंकि आप, भाजपा के वोटबैंक में सेंध लगा सकती है और इसकी वजह यह है कि दोनों के वोट बैंक हिंदू शहरी मध्य वर्ग हैं।
कांग्रेस अभी भाजपा को मात देने की स्थिति में नहीं है, इसलिए अति उत्साही आप को मौका मिल सकता है।
लेकिन फिर भी अगर आप दिल्ली में अपने दम पर सरकार बना भी लेती है, तो उस सरकार ज्यादा दिन चल नहीं पाएगी। इसकी वजह यह है कि पार्टी हर किसी का विरोध कर रही है, चाहे वो उपराज्यपाल हों या फिर अंबानी। वह खुद की नैतिक छवि की वजह से किसी भी मुद्दे पर समझौता नहीं करना चाहती।

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