भाजपा के भीतर दिल्ली में ही नहीं सरहद पर भी जंग

jaswant_vasundharaभाजपा के भीतर दिल्ली में ही नहीं सरहद पर भी जंग छिड़ गई है। राजस्थान के सरहदी इलाके बाड़मेर लोकसभा सीट के लिए आखिरकार भाजपा ने कर्नल सोनाराम चौधरी के नाम ऐलान कर दिया है। पार्टी पर कर्नल का नाम घोषित करने का दबाव पहले से ही था। ऊपर से राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से जसवंत सिंह की रंजिश के चलते उन्हें टिकट नहीं मिल सका। हालांकि जसवंत सिंह के बेटे मानवेन्द्र सिंह इसी इलाके से विधायक हैं और इसी लोकसभा सीट से सांसद भी रह चुके हैं लेकिन सिंह साहेबान की इलाके पर इस पकड़ के बाद भी भाजपा ने कांग्रेस से भाजपा में आये कर्नल सोनाराम चौधरी को टिकट दे दिया है।

1987 में कर्नल की पोस्ट से रिटायर होनेवाले सोनाराम चौधरी राजनीति में आने के बाद कांग्रेस का दामन पकड़ा था और इसी बाड़मेर सीट से 1999 में मानवेन्द्र सिंह को हराया था। हालांकि अगली ही बार 2004 में मानवेन्द्र सिंह ने 2 लाख 70 हजार से अधिक वोटों से कर्नल सोनाराम को परास्त कर दिया। हालांकि 2009 के आमचुनाव में कांग्रेस ने तीन बार सांसद रहे कर्नल सोनाराम को टिकट नहीं दिया औऱ उनकी जगह हरीश चौधरी को मैदान में उतार दिया और हरीश चौधरी ने मानवेन्द्र को परास्त कर एक बार फिर कांग्रेस के लिए मैदान मार लिया। अब जबकि 2014 के चुनाव हो रहे हैं तब मानवेन्द्र बाड़मेर की शिव विधानसभा से विधायक हैं शायद इसीलिए सिंह परिवार जसवंत सिंह के लिए यहां से टिकट चाह रहा था।

जसवंत सिंह की संसदीय राजनीति का सफर 1980 में राज्यसभा से शुरू हुआ लेकिन वे तीन बार लोकसभा भी पहुंच चुके हैं। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में छह मंत्रालयों का पोर्टफोलियो संभालनेवाले जसवंत सिंह ने सरकार जाने के बाद फिर से लोकसभा का रुख किया और 2009 में राजस्थान के सूदूर पूरब दार्जिलिंग से लोकसभा पहुंचे। फिलहाल नयी लोकसभा गठित होने तक वे निवर्तमान सांसद है। इस बार फिर जसवंत सिंह अपने गृहजिले से लोकसभा पहुंचना चाहते हैं तो इसमें कोई बहुत आश्चर्य नहीं है लेकिन राजनीतिक सूत्र कहते हैं कि रानी से अदावत के कारण उन्हें टिकट देने की बजाय उन कर्नल सोनाराम को टिकट दे दिया गया है जो इसी इलाके से भाजपा को हराते रहे हैं और भाजपा से हारे भी हैं।

शायद यही कारण है कि जैसे कर्नल सोनाराम का नाम सामने आया बाड़मेर भाजपा के भीतर बवाल हो गया। बाड़मेर भाजपा के नेताओं ने स्थानीय विधायक मानवेन्द्र सिंह से मुलाकात करके उन्हें कहा कि सोनाराम के खिलाफ वे अपने पिता को मैदान में उतरने के लिए कहें। खबर है कि राज्य में भाजपा की सरकार होने के बाद भी सभी स्थानीय छह विधायकों ने मानवेन्द्र को कहा है कि सोनाराम को हराने के लिए जसवंत सिंह को मैदान में उतरना जरूरी है। शायद यही कारण है कि मानवेन्द्र सिंह ने भाजपा द्वारा टिकट घोषित किये जाने से एक दिन पहले ही 20 मार्च को संकेत दे दिया था कि अगर भाजपा का टिकट नहीं मिलता है तो जसवंत सिंह निर्दलीय मैदान में उतरेंगे।

सरहद की राजपूत राजनीति में अच्छी खासी दखल रखनेवाले मानवेन्द्र सिंह के लिए अपने पिता को जितवाने में तब शायद कोई मुश्किल नहीं होगी जब सभी स्थानीय विधायक सोनाराम के विरोध में जसवंत सिंह का समर्थन कर देंगे, जैसा कि खबरें आ रही हैं। ऐसे में सोनाराम के विरोध का असर सिर्फ सरहद तक रहेगा इसकी बजाय अन्य राजपूत बहुल इलाकों में भी असर हो सकता है जैसा कि जसवंत खेमे द्वारा दावा किया जा रहा है। भले ही यहां पैदा जसवंत सिंह हुए हों लेकिन राजनीतिक जमीन तैयार करने का काम उनके बेटे मानवेन्द्र ने ही किया है। इसीलिए मानवेन्द्र खेमे से खबर आ रही है कि तय कार्यक्रम के अनुसार सोमवार को जसवंत सिंह निर्दलीय के रूप में अपना नामांकन दाखिल करेंगे। नामांकन के दौरान जसवंत सिंह का दम दिखाने के लिए दो लाख लोगों को बुलाने का प्रयास किया जा रहा है।

आनेवाले समय में जो भी हो लेकिन इतना तो तय है कि अगर जसवंत सिंह निर्दलीय मैदान में उतर जाते हैं तो बाड़मेर सीट पर भाजपा भाजपा के खिलाफ ही लड़ेगी। इससे शायद कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि जसवंत सिंह को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है या फिर पार्टी के अंदर रखा गया है। बाड़मेर में जसवंत सिंह नहीं बल्कि वसुंधरा की अकड़ और सोनाराम समस्या हैं जिसे खुद भाजपा के स्थानीय नेता बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। जाहिर इसका सीधा फायदा जसवंत सिंह को मिलेगा और बाड़मेर में दो पूर्व सैनिकों की इस जंग में जीत किसी भी हो भाजपा का हारना पक्का है। अगर कर्नल सोनाराम जीतते हैं तो भी और अगर निर्दल के रूप में जसवंत सिंह जीतते हैं तो भी। http://visfot.com

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