कांग्रेस हारी है, खत्म नहीं हुई

sonia_gandi_rahulभारतीय जनता पार्टी के हाथों मिली करारी हार के बाद राजनीतिक विश्लेषक देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस पर श्रद्धाजंलि लेख लिखने लगे हैं.भारत की आज़ादी के बाद देश में ज़्यादातर समय इसी पार्टी का राज रहा है. ये श्रद्धाजंलि लेख चाहे जितने भी लुभावने हों, समय से पहले ही लिखे जा रहे हैं.
कांग्रेस के उत्थान और पतन की कहानी पहले भी कई बार लिखी जा चुकी है और हर बार इन कहानियों को फाड़कर कूड़े के डब्बे में फेंकना पड़ा है.
पहले भी कम से कम दो बार ऐसा हो चुका है, जब कांग्रेस लगभग मृतप्राय हो गई थी. सबसे पहले 1977 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दो सालों के आपातकाल के बाद सत्ता से बाहर कर दी गई थीं.उसके तीन साल बाद कांग्रेस ने संसदीय चुनाव में लगभग 70 फ़ीसदी सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की थी. यह कांग्रेस के सबसे शानदार प्रदर्शनों में से एक था.पार्टी को एक बार 1999 में ख़त्म घोषित कर दिया गया था जब कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान अपने हाथों में ली थी.
हार के बाद जीत
1999 में हुए चुनावों में कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था. कांग्रेस को कुल 543 लोकसभा सीटों में से 114 पर ही विजय मिली थी. लेकिन साल 2004 में सोनिया ने पार्टी को उबार लिया, एक नहीं दो बार.संसदीय सीटों के लिहाज से देखें तो इस बार कांग्रेस का प्रदर्शन ऐतिहासिक रूप से बेहद ख़राब रहा है. लेकिन अखिल भारतीय स्तर पर कांग्रेस को प्राप्त वोट का प्रतिशत देखें तो उसके आधार पर पार्टी की स्थिति उतनी ख़राब नहीं हुई है.भारत की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और भारती सत्ता विरोधी भावनाओं के कारण कांग्रेस को 20 प्रतिशत से थे से कम वोट मिले हैं.इस चुनाव में बने विरोधी राजनीतिक माहौल के बावजूद कांग्रेस ने अपने ‘समर्पित वोट बैंक’ के बड़े हिस्से को बचाए रखा है. कांग्रेस के लिए समर्पित मतदाताओं की संख्या में तेज़ी के गिरावट आई है लेकिन यह गिरावट स्थाई नहीं है हा हतोत्साहित करने वाला ज़रूर है.क्लिक करें क्यों साफ़ हो गई भारत की सबसे पुरानी पार्टी?
हालांकि मीडिया को पूरा ध्यान संसद के निचले सदन (लोकसभा) पर रहता है लेकिन भारत एक द्विसंसदीय प्रणाली वाला देश है. ऊपरी सदन यानी राज्यसभा के सदस्य अपरोक्ष मतदान के ज़रिए छह साल के लिए चुने जाते हैं. राज्यसभा के लिए नए सदस्य हर दो साल पर चुने जाते हैं.
भले ही लोकसभा चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक जीत मिली है राज्यसभा में उसके 46 सदस्य ही हैं जबकि कांग्रेस के 68 सदस्य हैं.
यानी राज्यसभा के कुल 245 सदस्यों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों का बहुमत नहीं है. जबकि राज्यसभा में कांग्रेस के पास प्रभावशाली संख्या है.2015 के अंत तक राज्यसभा की केवल 23 सीटें खाली होने वाली हैं, इसलिए राज्यसभा की आंतरिक गणित में ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है.
सत्ता का केंद्र
एक बात यह भी ध्यान देने वाली है कि भारत सरकार के प्रशासन का केंद्र मुल्क की राजधानी दिल्ली से सूबों की राजधानियों की तरफ स्थानांतरित हो रहा है.लोकसभा में भारी हार का सामना करने के बावजूद देश के 29 राज्यों में से 11 में कांग्रेस की सरकार है. दो अन्य राज्यों में कांग्रेस गठबंधन की सरकार है. इनमें से कई राज्य है छोटे राज्य हैं और उनका कोई राजनीतिक प्रभाव नहीं है. लेकिन संगठित रूप से इन राज्यों की संघीय सत्ता में उल्लेखनीय भागीदारी है. प्रतिशत के अनुसार देखें तो अभी भी देश भर में मौजूद कुल विधायकों में से 27 प्रतिशत कांग्रेस के पास हैं, भाजपा के कुल 21 प्रतिशत विधायक हैं.
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