लालन कालेज और लाल क़िले का फ़र्क़

modi_lalan-क़मर वहीद नक़वी- पन्द्रह अगस्त आ रहा है! मोदी जी बोलेंगे! प्रधानमंत्री मोदी बोलेंगे! सारा देश सुनेगा! इस बार लाल क़िला असली होगा! दिल्ली का असली लाल क़िला! वैसा नहीं, जो करोड़ों की लागत से पिछले सितम्बर में छत्तीसगढ़ में बना था, फ़िल्मी सेट वाला! और इस बार भाषण भी लाल क़िले वाला होगा! लालन कालेज वाला नहीं! याद है 15 अगस्त 2013। ठीक एक साल पहले। इधर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह लाल क़िले की प्राचीर से दसवीं बार बोले। उधर, क़रीब घंटे भर बाद गुजरात के भुज में मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दहाड़-दहाड़ कर मनमोहन सिंह के भाषण की बखिया उधेड़ दी! पहली बार ऐसा हुआ कि पन्द्रह अगस्त पर किसी प्रधानमंत्री के भाषण की किसी मुख्यमंत्री ने धज्जियाँ उड़ायी हों! मोदी भक्तों को छोड़ सारा देश सन्न रह गया था इस पर!
लेकिन मोदी जी को अब दुःख हो रहा है! न, न, दुःख लालन कालेज वाली घटना पर नहीं! दुःख इस बात पर कि वह पहली-पहली बार प्रधानमंत्री बने! गद्दी सम्भाले सौ घंटे भी नहीं हुए कि लोगों ने सरकार की आलोचना शुरू कर दी! च्च च्च! इतनी नाइनसाफ़ी! सरकार के तीस दिन हो गये! मोदी जी ने ब्लाग लिखा। उसमें उपलब्धियों का तो पता नहीं, लेकिन उनकी पीड़ा ज़रूर सामने आयी! किसी भी नयी सरकार के लिए तो सौ दिन और कभी-कभी तो उससे भी ज़्यादा दिन ‘हनीमून’ चलता है, लोग नयी सरकार को समय देते हैं काम करने का, फिर मोदी जी तो दिल्ली के लिए बिलकुल ही नये थे और लोग सोच रहे थे कि साल-दो साल तो उन्हें अपना काम समझने में ही लग जायेंगे, लेकिन उन्होंने तो फटाफट सब समझ लिया और सरकार का काम एकदम चोखा चल रहा है, फिर भी लोगों ने तो उन्हें ‘हनीमून’ के लिए सौ घंटे भी नहीं दिये! और सरकार बनते ही लोग आलोचना ले कर पिल पड़े!
मोदी जी लिखते हैं कि पिछले एक महीने में मंत्रियों से, मुख्यमंत्रियों से, अफ़सरों से वह लगातार मिलते रहे, तमाम समस्याओं पर बात हुई, भविष्य का आकर्षक ख़ाका अब बन कर तैयार है और उस पर काम शुरू हो रहा है। लेकिन दिल्ली में उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि सत्ता के तंत्र के ‘अन्दर’ और ‘बाहर’ के कुछ चुनिंदा समूहों को कैसे समझाया जाये कि वह ‘सकारात्मक बदलावों’ के लिए सचमुच नेक इरादों से काम कर रहे हैं और वह जो कुछ भी कर रहे हैं, केवल और केवल देशहित में कर रहे हैं! ‘बाहर’ के लोग तो हमला करेंगे ही, लेकिन ये ‘अन्दर वाले’ कौन हैं, जो मोदी जी को ‘दुःख’ दे रहे हैं? और ये ‘अन्दर वाले’ कौन हैं, जो बदलाव के लिए तैयार नहीं और जो ‘देशहित’ को समझ नहीं पा रहे हैं!
सारी समस्या तो इसी बदलाव की है! मोदी जी, पता नहीं आपने ऐसे सपने दिखाये थे या जनता ने ख़ुद अपने आप ही अपने सपने गढ़ लिये थे कि मोदी जी आयेंगे, चुटकी बजायेंगे और देश सोने की चिड़िया बन जायेगा! लोग तो मान बैठे थे कि जादू की छड़़ी चलेगी और रातोंरात सब बदल जायेगा! वैसे लोग कुछ भी समझें, आप भी जानते हैं, हम भी जानते हैं और दुनिया के बड़े से बड़े जादूगर भी कि असल में न तो कोई जादू होता है और न ही कोई जादू की छड़ी! जिसे लोग जादू का करिश्मा समझते हैं, वह होता है महज़ छलावा, हाथों की सफ़ाई, आँखों का भरम, सिर्फ़ एक ‘ट्रिक’ या फिर चुनावी भाषण!
इसलिए जादू होता नहीं और बदलाव रातोंरात आता नहीं! वह इतने धीरे-धीरे आता है कि अकसर पता ही नहीं चलता! और बदलाव का हमेशा ही विरोध भी होता है, ‘अन्दर’ से भी, ‘बाहर’ से भी। और बदलाव लाना इतना कठिन होता है कि लोग अकसर बातें तो करते हैं, लेकिन बदलाव लाते नहीं हैं! अब राज्यपालों वाला मामला ही ले लीजिए। जब यूपीए ने 2004 में सरकार बनते ही बहुत-से राज्यपाल हटा दिये थे, तो बीजेपी ने इसकी बड़ी आलोचना की थी! अब आपकी सरकार वही कर रही है! यह ‘सकारात्मक बदलाव’ है या बदला?
मोदी जी, आपने ही लोगों को सब्ज़बाग़ दिखाये थे कि महँगाई तो चुटकियों में छूमंतर हो सकती है, फिर रेल किराया बढ़ने से उन पर तुषारापात तो होगा ही! भले ही उस बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव यूपीए की पिछली सरकार ने किया हो। लोग आपकी सरकार से इसीलिए आगबबूला हुए कि आप कहा करते थे कि यूपीए सरकार के निकम्मेपन के कारण महँगाई बढ़ रही है, फिर आपकी सरकार उसी ‘निकम्मेपन’ को आगे क्यों बढ़ा रही है? और फिर यह ‘रोल बैक’ वाला काम तो यूपीए की पिछली ‘निकम्मी’ सरकार ही करती थी! आपकी सरकार ने भी मुम्बई में लोकल किराये ‘रोल बैक’ कर लिये! ऐसा आपने ‘देशहित’ में किया या ‘वोट हित’ में? कुछ महीनों में ही महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने हैं! आप लोकल किराया ‘रोल बैक’ कर रहे हैं तो महाराष्ट्र सरकार आरक्षण का झुनझुना बजा रही है! वोट बड़ा कि देश?
अब मोदी जी कह रहे हैं कि देशहित में अगले एक-दो साल कड़े फ़ैसले लेने पड़ेंगे! यही बात तो बार-बार पिछली सरकार भी कहती थी और आपकी गालियाँ सुनती थी। अब आप भी वही भाषा बोल रहे हैं तो लोगों को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा है!
लेकिन मोदी जी तो तीस दिन में ही तप गये कि आलोचना हो रही है! और आलोचना भी कैसी? जो कुछ आलोचना हुई, वह जनता ने की क्योंकि जनता को लगा कि यही सब तो पिछली सरकार भी करती थी तो फिर बदला क्या? वरना मोदी जी जैसी क़िस्मत लोग कहाँ पाते हैं? विपक्ष के नाम पर पूरा शून्य बटा सन्नाटा है! काँग्रेस तो हार के बाद ऐसी घिघियाई पड़ी है कि पता नहीं उसमें आगे जीने की कोई इच्छा बची भी है या नहीं, या फिर वह ऐसे ही दिन काट रही है? नेतृत्व कहाँ है, रणनीति क्या है, लड़ना कैसे है, किसी को कुछ पता नहीं। सब चादर ताने पड़े हैं! जैसे डाक्टर कभी-कभी मरीज़ को जवाब दे देता है कि अब जो करेगा, भगवान ही करेगा, काँग्रेस भी अब शायद भगवान के आसरे ही बैठ गयी है! बाक़ी जो विपक्ष है, वह टुकड़ों-टुकड़ों में अपनी-अपनी रोटियों के जुगाड़ में है। ममता बनर्जी ने एडीएमके और बीजेडी को लेकर फ़ेडरल फ़्रंट बनाने की जुगत की थी, लेकिन न अम्मा ने घास डाली, न नवीन पटनायक ने भाव दिया। मोदी को राज्यसभा में इनके समर्थन की ज़रूरत है तो इन्हें अपने-अपने राज्यों के लिए लालीपाप के लिए मोदी की। तो ताली तो मिल कर ही बजेगी! इसके बाद विपक्ष है कहाँ, जो बोले! और बोले भी तो कर क्या लेगा?
और पार्टी के अन्दर? अब और क्या चाहिए? सब जगह मोदी की तूती बोल रही है! अध्यक्ष भी अपने मन का बन्दा होने वाला है। सो पार्टी भी बस अब जेब में आ गयी समझो। सरकार तो ‘मोदी सरकार’ है ही! मंत्री कोई नीतिगत फ़ैसला ले नहीं सकते, मंत्रियों के सेक्रेटरी जब चाहे तब पीएम से सीधे ‘कनेक्ट’ हो सकते हैं। तो सारे फ़ैसले प्रधानमंत्री के, उनकी मरज़ी और मंज़ूरी के बिना पत्ता भी नहीं खड़क सकता! अब इसके बाद और क्या चाहिए?
इसलिए तीस दिन में मोदी जी ‘अन्दर’ और ‘बाहर’ वालों से परेशान हो गये तो ज़रा हैरानी होती है! ज़रा उन बेचारों की भी सोचिए जिन्होंने पिछले बरसों में मोदी के अग्निबाण झेले हैं! लोगों ने वोट बदलाव के लिए दिया है। और वह इस बदलाव के ‘रोडमैप’ को देखना चाहेंगे इस जुलाई के बजट में भी और प्रधानमंत्री के पन्द्रह अगस्त के भाषण में भी! लालन कालेज और लाल क़िले में यही फ़र्क़ है! और मोदी जी, लोग आपको बिलकुल भी दुःखी नहीं देखना चाहते क्योंकि ऐसा उनका सपना नहीं था!
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