शंकराचार्य से कुपित क्यों हैं ?

shankaracharya-swami-swaropanand-अमलेन्दु उपाध्याय– द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने शिरडी के साईं बाबा को लेकर विवादित बयान देकर सियासी हलकों में भूचाल ला दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा है कि साईं बाबा ईश्वर नहीं है। उनकी पूजा हिंदू धर्म को बांटने की साजिश है। ब्रिटेन ने हिंदू धर्म को बांटने की साजिश रची है।
शंकराचार्य ने यह भी कहा कि साईं बाबा हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर साईं बाबा हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक होते तो मुसलमान भी साईं बाबा को मानते लेकिन उन्हें केवल हिंदू ही मानते हैं। ये भ्रम फैलाया जा रहा है कि साईं बाबा हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक हैं। साईं बाबा के नाम पर कमाई की जा रही है।
शंकराचार्य ने कहा कि पूजा अवतार या गुरू की होती है। सनातन धर्म में भगवान विष्णु के 42 अवतार माने जाते हैं। कलयुग में बुद्ध और कल्कि के अलावा किसी अवतार की चर्चा नहीं है, इसलिए साईं अवतार नहीं हो सकते।
स्वरूपानंद के इस बयान के बाद मजेदार बात यह है कि संघ परिजन सार्वजनिक तौर पर तो नहीं लेकिन सोशल मीडिया में उनके विरोध में कूद पड़े हैं जबकि अधिकांश साधू-संत शंकराचार्य के समर्थन में हैं। अगर शंकराचार्य के बयान की वैधता की बात की जाए तो उनके बयान पर हो-हल्ले मचाने का कोई औचित्य इसलिए नहीं है कि सनातन धर्म पर वह आधिकारिक वक्तव्य देने के लिए स्वतंत्र हैं इसलिए अगर सनातन धर्म की कोई परिभाषा तय की जानी है तो वह तो शंकराचार्य ही तय करेंगे न कि मोहन भागवत या अशोक सिंहल या उनके चेले ? शंकराचार्य को हिन्दू धर्म में सर्वोच्च पदवी हासिल है और यह यक्ष प्रश्न खड़ा हो गया है कि शंकराचार्य का विरोध करने वाला स्वयं को हिन्दू किस मुँह से कह सकता है ?
कुल मिलाकर शंकराचार्य ने चाहे सही कहा हो या गलत लेकिन इस बात से तो इंकार नहीं किया जा सकता कि धर्म सबसे बड़ा व्यापार है और आजकल सांई बाबा और शनि महाराज की रेटिंग हाई चल रही है। खबरें तो यह भी आई हैं, पता नहीं कितना सत्य है या असत्य कि सांई बाबा ट्रस्ट ने सांई बाबा का नाम प्रयोग करने पर एक निश्चित रकम ट्रस्ट को दिए जाने का आदेश दिया था। अगर यह खबर सत्य है तो शंकराचार्य कुछ-कुछ सही बात कहते लगते हैं कि साईं बाबा के नाम पर कमाई की जा रही है।
दरअसल स्वरूपानंद का वक्तव्य महज धार्मिक नहीं है बल्कि सही अर्थों में राजनीतिक ज्यादा है और इस एक वक्तव्य ने संघ परिवार की भविष्य की राजनीति पर तगड़ा प्रहार किया है। उनके इस बयान पर संघ परिजनों के भड़कने का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान “हर-हर मोदी, घर-घर मोदी” नारे की आलोचना करते हुए इसे हिंदू धर्म का अपमान बताया था। उसके बाद भाजपा को बैकफुट पर आकर इस नारे को वापिस लेना पड़ा था। सही मायनों में देखा जाए तो स्वरूपानंद का हालिया वक्तव्य उनके चुनाव दौरान दिए गए वक्तव्य का विस्तार ही है। शंकराचार्य ने सांई बाबा को भगवान बनाए जाने से रोक कर मोदी का अवतारीकरण भी रोक दिया है।
शंकराचार्य ने दरअसल लंबा पासा फेंका है जिससे संघ परिजन व्याकुल हैं। हिन्दू धर्म को लेकर पिछले कुछ दशक से जिस तरह संघ परिवार फतवे जारी कर रहा था और हिन्दू धर्म का स्वयंभू मठाधीश बनने का प्रयास कर रहा था, शंकराचार्य ने उसके इस अभियान की हवा निकाल दी है। अब संघ परिवार को तो राजनीति करनी है उसे सत्ता भी चाहिए और वोट भी चाहिए इसलिए वह सांई बाबा हों या आसाराम, नित्यानंद या रामदेव किसी के भी लाखों-करोड़ों भक्तों से पंगा तो नहीं ले सकता। इसके विपरीत स्वरूपानंद को न चुनाव लड़ना है न वोट चाहिए इसलिए वह ऐसा कुछ कह रहे हैं।
इस चुनाव में संघ ने जिस तरह की सोशल इंजीनियरिंग की और उसका उसे फायदा भी हुआ, शंकराचार्य का हालिया बयान आगे चलकर उस इंजीनियरिंग को ध्वस्त करने वाला साबित हो सकता है, संघ परिवार इसी आशंका से परेशान है। ऐसा नहीं है कि संघ परिवार सांई बाबा का भक्त हो गया है या उसकी सांई बाबा में आस्था है बल्कि हो सकता है कि वह सांई बाबा को केंद्र में रखकर ही अपनी कोई अगली विषवमन योजना बनाता लेकिन शंकराचार्य ने उसे मात दे दी है।
असल में संघ की योजना इस देश के दलित आंदोलन को छिन्न-भिन्न कर देने की है, इसमें उसे काफी हद तक सफलता मिल चुकी है। अगर दलित आंदोलन मजबूत होगा तो संघ का ब्राह्मणवादी-हिंदुत्ववादी एजेंडा कमजोर होगा। अपनी गुप्त योजना के तहत संघ, दलित आंदोलन का भगवाकरण करना चाहता है। कहा तो यह जा रहा है कि अंबेडकरवादी आंदोलन को तोड़ने के लिए ही अंबेडकर को भी भगवान घोषित कर विष्णु के अवतार में स्थापित करने की योजना पर काम चल रहा है, क्योंकि संघ जिससे जीत नहीं पाता उसे भगवान बनाकर खत्म कर देता है। इस योजना के तहत संघ, अंबेडकर की रेडिकल धारा के आंदोलन को मात देना चाहता है। इसी योजना के प्रथम चरण के तहत “हर-हर मोदी, घर-घर मोदी” नारा दिया गया तथा मोदी को भगवान के रूप में दर्शाने की कोशिश की गई थी ताकि ओबीसी वोटों में सेंधमारी की जा सके और ओबीसी मतदाताओं की समाजवादी धड़ों से दूर बनाई जा सके। शंकराचार्य के बयान से संघ के परेशान होने का यही एकमात्र कारण है कि अब उसकी अंबेडकर को भगवान बनाने की योजना फुस्स हो जाएगी और अगर दलितों के भगवाकरण का कार्य पूर्ण न हुआ तो 2019 में तो उसका पटरा ही बैठ जाएगा।

अमलेन्दु उपाध्याय
अमलेन्दु उपाध्याय

दूसरी ओर शंकराचार्य ने इस बयान के जरिए हिन्दू धर्म के अंदर व्याप्त गंदगी को सतह पर भी ला दिया है। तमाशा देखें कि “गौ” माता है, नंदी बैल के ऊपर विराजे शंकर जी मंदिर में स्थापित हैं। शंकर जी के गले में लिपटा सांप भी देवता है। मत्स्यावतार है, मछली भी देवता है। नरमुंड हाथ में लिए देवी मंदिर में विराजमान है। 33 करोड़ देवता हैं जिनमें एक “वाराह” देवता भी है। जी हां, “वाराह अवतार”। उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले का तीर्थराज “सोरों” कस्बा, जहां संत गोस्वामी तुलसीदास के पैदा होने का दावा भी किया जाता है, वह “शूकर क्षेत्र” है और वहां वाराह भगवान का मंदिर भी है, लेकिन सांई बाबा देवता नहीं हो सकते ! दलित के मंदिर में प्रवेश करने पर मंदिर अपवित्र हो जाता है! इंदिरा गांधी अगर मंदिर में चली जाती हैं तो मंदिर की गंगाजल से धुलाई होती है। शंकराचार्य के एक वक्तव्य ने इस सबकी भी स्वतः पोल खोल दी है।

1 thought on “शंकराचार्य से कुपित क्यों हैं ?”

  1. साईं संप्रदाय झूठ का पुलिंदा है इनका आधार ही पाखण्ड है पढ़िए इनके कुतर्कों के जवाब !
    साईं अनुयायिओं की शंकाओं की समाधान श्रंखला –
    यदि इस बात के शास्त्रीय अभिप्राय को समझे बिना ही इसके अर्थ यों ही कुतर्क बश अपने see more….http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_5398.html

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