मंहगाई के मुद्दे पर जनता से धोखा

modi_in_Lok_Sabha_Electionअनुज अग्रवाल- दैश की दिशा-दशा सुधारना और उसे गड्ढे से निकालकर सही रास्ते पर खड़ा करना और फिर उसे गति देना मोदी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है। विदेश नीति, आंतरिक व बाह्य सुरक्षा के साथ ही प्रशासनिक सुधार पर मोदी सरकार के कदम साहसिक, दैशिक व प्रशंसनीय रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में धारा 370, कश्मीरी हिन्दूओं की वापसी व समान नागरिक संहिता पर भी जिस खुली बहस का आगाज उन्होंने किया है उससे निकट भविष्य में ऐसे सभी कानूनों के अप्रांसगिक होने की स्थिति आ ही जायेगी जो समान नागारिक संहिता के व्यावहारिक परिपालन में रोड़ा है और यह एक स्वस्थ व व्यावहारिक तरीका भी है।

मोदी नीतियों में राष्ट्रवादिता एवं नियुक्तियों में पारदर्शिता को लागू कर रहे हैं, दलाल संस्कृति का सफाया कर रहे हैं और स्वदेशी, हिन्दी व गंगा के सम्मान व अस्मिता की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठा चुके हैं। उन्होंने योजना आयेाग को अप्रांसगिक कर दिया है, मंत्री समूहों की छुट्टी कर दी है और यूपीए सरकार के समय के अधिकारियों की विशेषाधिकारी व निजी सचिव के रूप में नियुक्ति प्रतिबंधित कर दी है। मोदी ने नॉर्थ व साउथ ब्लॉक की कार्यसंस्कृति में व्यापक परिवर्तन कर दिये हैं। अधिकारियों के काम करने के दिन व घंटे बढ़ चुके हैं। प्रत्येक मंत्रालय व मंत्री से अधिक कार्यकुशलता के साथ ही विस्तृत कार्ययोजना व उस पर अमल की प्रक्रिया भी मांगी गयी है।

सभी अनुपयुक्त राज्यपालों, राजदूतों, उच्चायुक्तों, विभिन्न बोर्डों व आयोगों के अध्यक्ष व सदस्यों को बदलने की कवायद चल रही है, वहीं मंत्रिमंडल का पुनर्गठन भी शीघ्र होने जा रहा है। सरकार एक ‘सामान्य’ तरीके से काम करे, लोक प्रशासन की यह प्राथमिक शर्त है और मोदी इसको अक्षरक्ष: लागू करने के लिए उद्यत दिख रहे हैं। किन्तु समस्या योग्य लोगों की तो है ही, विश्वसनीय साथियों की भी है। अभी केन्द्र सरकार में सैंकड़ों राजनीतिक नियुक्तियां होनी हैं किन्तु उनके चयन की कोई पारदर्शी व दूरदर्शी नीति कभी भी नहीं थी और मोदी ने भी इसके लिए कोई मापदण्ड व प्रक्रिया घोषित नहीं की है, यह चिंताजनक है।

जहां तक मंत्रियों के कार्य का सवाल है, गोपीनाथ मुंडे की दुुर्घटना में मृत्यु होने के बाद सड़क सुरक्षा को लेकर नितिन गडकरी ने सबसे गंभीर प्रयास किया है, वहीं उर्जा संकट से निपटने में नाकाम पीयूष गोयल दूरगामी उपायों पर तो कार्ययोजना बना रहे हैं किन्तु तात्कालिक संकंटों से निपटने की उनके पास न तो दृष्टि है और न ही कार्ययोजना। स्वास्थय मंत्री हर्षवर्धन भी उ.प्र. व बिहार के ‘जापानी बुखार’ के संकट से निपटने में असफल ही सिद्ध हुए हैं, वहीं रेल मंत्री ने तो यकायक 6 से 15 प्रतिशत तक माल व रेल भाड़ा बढ़ाकर जनता को संकट में डाल दिया है। वित्तमंत्री के पास महंगाई रोकने की कोई कार्ययोजना नहीं है जो लागू की जा सके, तो गृहमंत्री के पास देश भर में फैली अराजकता व कानून व्यवस्था की समस्या से निपटने का कोई समाधान नहीं है। विदेश मंत्री इराक में 40 भारतीयों के अगवा होने से उत्पन्न स्थिति से खास प्रभावी नहीं हो पायी है और न ही अमेरिकी नियंत्रण से विदेश नीति को मुक्त कर पाने में। बहुत सारे मंत्रालयों व मंत्रियों की कार्ययोजना व दिशा अभी स्पष्ट ही नहीं है।

निश्चित रूप से अभी सरकार को परिस्थितियों व स्थितियों को अपने वश में करने के लिए और समय चाहिए। वैसे भी अभी बजट भी पास नहीं हो पाया है। किन्तु अब तो प्रधानमंत्री कार्यालय ही शक्ति का केन्द्र बन चुका है और सर्वशक्तिमान बनने की दिशा में है, किन्तु मोदी का जनता से संवाद कम हो गया है। ऐसे में नीतियों व घोषणाओं में आवश्यक स्पष्टता व संवादहीनता जनता को खल रही है। ‘वायदा कारोबार’ पर रोक, काले धन की वापसी, कर वसूली का दायरा बढ़ाना, अर्थव्यवस्था पर श्वेत पत्र, आवश्यक चुनाव, शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय व पुलिस अब समय की प्रतीक्षा थोड़े ही करेंगे! इन पर चिंतन, दर्शन व चर्चा दशकों से चल रही है, अब इन्हें तत्काल लागू करना जरूरी है। जनता दूरगामी योजनाओं को समझ रही है, किन्तु वह थकी व पकी हुई है। उसे महंगाई से तात्कालिक रूप से राहत की जगह धोखा दिया गया है और इसके लिए वह कोई तर्क-कुतर्क नहीं समझना चाहेगी, मोदी को यह समझना होगा।

(लेखक डॉयलाग इंडिया के संपादक हैं।)

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