6 दिसंबर 1992-श्रीमद् भगवत गीता के दर्पण में

babri-मधुवन दत्त चतुर्वेदी- पता नहीं सन् 1990-91 में चर्चित वह ऑडियो सीडी उमा भारती की थी या ऋतंभरा की, लेकिन उस आग लगाऊ भाषण में कहा गया था -होता है यदि एक बार तो महाभारत हो जाने दो।अयोध्या में ०६-१२-१९९२ को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम पर घोर अमर्यादित कुकृत्य करने के लिए एकत्र भाजपा -विहिप -संघ गिरोह की भीड़ में कौरवों के सारे लक्षण थे।संख्या में अधिक होने के कारणश्रेष्ठता का दंभ और अतीत की गलती सुधारने के नाम पर सत्ता के लिए कौरवों का दावा इस तर्क से बिलकुल मेल खाता है की भारत में हिन्दू आबादी अधिक है अतः हिन्दू श्रेष्ठ हैं,  शेष अन्य सभी धर्मों के लोग उनसे इतर हैं।और इसीलिये देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित होना चाहिए।बिजनिस इंडिया की प्रतिनिधि और अन्य महिला पत्रकारों का जिस निर्लज्जता के साथ कारसेवकों ने चीरहरण किया, वह द्रोपदी के चीर हरण से भी कहीं ज्यादा था।

“जिस हिन्दू का खून न खौले-खून नहीं वह पानी है” के नारे सारे देश में लगाये गए और इस हो-हुल्लड़ में भगवान श्री कृष्ण का यह सन्देश भुला दिया गया –

क्रोधाद्भवतीसमोहः सम्मोहात्स्मृति विभ्रमः /

स्मृति भ्रन्शाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रनाश्यति//( गीता अ 2 श्लो 63 )

अर्थात् क्रोध से अविवेक उत्पन्न होता है और अविवेक से स्मरण शक्ति भ्रमित हो जाती है,  स्मृति के भ्रमित होने से बुद्धि का नाश हो जाता है और बुद्धि के नाश होने से व्यक्ति का नाश होता है। संघ भाजपा गिरोह संपूर्ण हिन्दू समाज से क्रोध का आहवान करके उसे विनाश की ओर लगातार धकेल रहा है। अहंकार से लबालब नारों की बाड़ में हिन्दू दर्शन की आत्मा को डुबा डालने का सोचा समझा दुष्प्रयत्न था अयोध्या का उन्माद!

अहम्कारम बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः/

मामात्मपरादेहेशु प्रद्विशन्तोअभ्यसूयका : //(गीता अ 16 श 18 )

अर्थात् अहंकारबलघमंडकाम और क्रोध के वशीभूत हुए वे लोग जो दूसरों की निन्दा करते हैंहे अर्जुन ! वे अपने और दूसरों के शरीर में स्थित मुझ अन्तर्यामी से ही द्वेष करने वाले हैं!

यह भगवान श्री कृष्ण ने कहा था, लेकिन किसी रचनात्मक आधार पर हिन्दू समाज को एकजुट करने के बजाय अन्य धर्मों की निन्दा और उनसे घृणा के आधार पर संघठित करने का यह षड्यंत्र बुरे परिणाम सामने लायेगा। गैर हिन्दुओं के प्रति द्वेष भाव रखने वाले संघ भाजपा गिरोह के लोग इस चेतावनी को विस्मृत कर रहे हैं-

तानहं द्विषत: क्रूरान्संसारेशु नराधमान/

क्षिपाम्यजस्राम्शुभानासुरीश्वेव योनिषु // (गीता अ 16 श 19 )

कि हे अर्जुन ! द्वेषभाव रखने वाले क्रूर धर्मी नराधमो को मैं संसार में बारम्बार आसुरी योनियों में ही गिराता हूँ।

नकारात्मक आधार पर किसी स्थायी और सुखद एकता का निर्माण नहीं किया जा सकता! पाकिस्तान का निर्माण महजब को राष्ट्रीयता का आधार मानकर किया गया। उसकी एकता का आधार गैर मुसलमानों के प्रति नफरत और इस्लाम की श्रेष्ठता का अभिमान था। इतिहास ने सिद्ध कर दिया कि वह गलत था और 1971 में पूर्वी पश्चिमी पाकिस्तान टूट कर दो टुकड़े हो गया। बांग्लादेश का उदय हुआ ! एक कुरान, एक पैगम्बर एक ही इस्लाम की मान्यताएं उसे एक न रख सकीं, जबकि भारत तमाम राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक विकृतियों के बाद भी आज तक न सिर्फ एक है बल्कि उससे कहीं अधिक फैला है जितना 15 अगस्त 47 को था! बाद में गोआ और फिर दो दशक बाद सिक्किम भारत के अंग बने। इसका कारण भारत में किसी विशेष धर्म की श्रेष्ठता का अभिमान न होकर, सर्वधर्म समभाव् और राज्य की धर्मनिरपेक्षता का गुण था। संघ और भाजपा गिरोह इसी आधार पर चोट कर रहा है ! धार्मिक श्रेष्ठता के दंभ को बढ़ा कर राष्ट्रीय जीवन मे उद्विग्नता उत्पन कर रहा है ! नारे दिए गए कि-जिस हिन्दू की भुजा ना फड़के, खून ना खौले सीने का/ वह हिन्दू का लाल नहीं, खून है किसी कमीने का// और हलुआ खाओ गाजर का/ नाम मिटाओ बाबर का आदि !

भला इन नारों मे भक्ति, श्रद्धा या आस्था है कहाँ ?भगबान श्री कृष्ण ने तो कहा है –

यस्मान्नोद्विजते लोकोलोकान्नोद्विजते च य

हर्शामर्शभयोद्वेगैर्मुक्तो य : स च मे प्रिय :// (गीता अ 12 श 15 )

अर्थात् अर्जुन ! जिस व्यक्ति को न तो कोई उद्विग्न करता है और जो न स्वयं ही किसी को उतेजित या उद्विग्न करता है तथा जो हर्ष-अमर्ष, भय और उद्विग्नता से रहित है वही भक्त मुझे प्रिय है। संघ-भाजपा गिरोह का आचरण तामसी है, भक्ति भाव के विपरीत है। संविधान, संसद न्यायपालिका और राष्ट्रीय एकता परिषद् के निर्देशों और करोड़ों देशवासियों की भावनाओं का अनादर करके आस्था के नाम पर जिस प्रकार की जिद भाजपा-संघ गिरोह ने दिखाई वह अराजकता और फासिज्म तो था ही, धर्म के भी विपरीत व्यवहार था। इस जिद का लक्ष्य राजनैतिक स्वार्थ था। सम्पूर्ण राष्ट्रीय जीवन के लिए इसमें पीड़ा का उपहार था। यदि यही श्रद्धा थी तो इसे भगवान स्वीकार न करेंगे। यह तामस प्रवृति है।

गीता में भगवान कहते हैं- जो तप मूर्खता पूर्वक जिद से दूसरों का अनिष्ट करने के लिए किया जाता है वह तप तामसी है। ऐसी पूजा राक्षसी पूजा होती है और 06-12-1992 को अयोध्या मे एकत्र कथित राम भक्तों ने ऐसी ही पूजा की थी। मंदिर निर्माण के नाम पर अब तक केबल विध्वंस ही सामने आया है। पहले भाजपा सरकार के समय ढांचे के आसपास के कई प्राचीन मंदिर तोड़े गए। फिर ढांचा तोड़ा गया और घृणा का ऐसा सैलाब बहाया गया जिसमें देश विदेश के सैकड़ों मंदिर मस्जिद तबाह हो गए। हजारों जानें गयी और करोड़ों लोगों की रोजी रोटी या तो तबाह हो गयी या मुश्किल। निस्संदेह यह धर्म न था, अधर्म की आंधी थी। श्रीमद भगवत गीता में ऐसे लोगो को तामसी वृत्ति का बतलाया गया है। (अ 18 श 28 )।

एक और नारा था जिस पर धार्मिक गुरुओं और आम नागरिकों को सोचना है -जो हिन्दू हित की बात करेगा, वही देश पर राज करेगा। बात राम की नहीं, राज की थी। स्पष्ट लक्ष्य था उस गिरोह का – देश की केन्द्रीय सत्ता पर कब्ज़ा करना। इसी लिए राम जन्मभूमि मुक्ति का यज्ञ किया गया जिसमें आहुति दी गयी निरीह देशवासियों कीनिहत्थे महिला बच्चों की और निशाना बनाया गया मूक ऐतिहासिक सांस्कृतिक इमारतों को।

अभिसंधाय तु फलं दम्भार्थमपि चैवयत/

इज्यते भरतश्रेष्ठ तं यज्ञं विद्धि राजसम//(गीता अ 17 श 12)

स्वयं भगवान कहते हैं कि कोई भी यज्ञ या पूजा फल को उदेश्य रखकर या दम्भाचर्ण के लिए की जाती है, राजस प्रकृति की होती है अर्थात् राजनीति के लिए है! आगे अध्याय 14 के सोलह वें श्लोक में कहा है- रजसस्तु फल दुखम् अर्थात् ऐसे राजस कर्म का फल दुःख कहा है!

साम्प्रदायिक कलह की अग्नि में सारे देश को झोंकने वाली भाजपाई कारसेवा भी जिसका राजनैतिक उद्देश्य था,  दुखदाई रही और पता नहीं आगे भी अस्थिरता और गृहयुद्ध के षड्यंत्रों में कब तक हवा देगी !

कहते हैं महान वह नहीं है जो स्वयं को महान कहता है, बल्कि महान वह होता है जिसे दूसरे लोग महान कहैं। हिन्दू धर्म की चिंतन पारायणता, सहिष्णुता विश्व कल्याण की भावना ने उसे अब तक बनाये रखा और विश्व भर में मानव सभ्यता को बड़े बड़े विचारक दिए। किन्तु अब हिन्दुओं से कहा जा रहा है-गर्व से कहो हंम हिन्दू हैं। अपने आपको श्रेष्ठ समझने की वह प्रवृत्ति डालने का प्रयास किया जा रहा है जिसे धिक्कारते हुए भगवान श्री कृष्ण ने कहा है –

आत्मसंभाविता स्तब्धा धनमान मदान्विता:/

यजन्ते नामयज्ञेस्ते दम्भेनाविधिपुर्वकम // (गीता अ १६ श १७ )

किअपने आप को ही श्रेष्ठ समझने वाले घमंडी पुरुष धन और मान के मद से युक्त हुए शास्त्र विधि से रहित केवल नाममात्र के यज्ञों द्वारा पाखंड से ही यजन करते हैं।”

‘कटुए काटे जायेंगे-राम राम चिल्लायेंगे’, ” या ”तेल लगाओ डाबर का/नाम मिटाओ बाबर का” नारों में जो कठोर वाणी का प्रयोग है वह धार्मिकों की वाणी नहीं हो सकती –

दम्भोदर्पोअभिमानश्च क्रोध : पारुष्यमेव च /

अज्ञानं चाभिजातस्यपार्थ संपदमासुरीम // (गीता अ 16 श 4 )

पाखंड घमंड अभिमान और क्रोध तथा कठोर वाणी एवं अज्ञान भी ये ये सब ही आसुरी प्रवृत्ति के व्यक्ति के लक्षण हैं। भाजपा – संघ गिरोह इसी प्रवृत्ति के ध्वज वाहक हैं।

”अयोध्या की जीत हमारी है-मथुरा काशी की बारी है।” का नारा भी लगाया गया। इदमद्ध्य मया लब्धमिमं प्राप्सये मनोरथम। (गीता अ 16 श 13 ) और असौमयाहतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि। (गीता अ 16 श 14 ) की तरह यह कहना की आज यह पाया है कल वह लेंगे और इसे मैने मार दिया उन्हें मैं मारूंगा, यह दुष्टों का काम है। भगवान कहते हैं ”पतन्ति नरकेअशुचौ”।ज्ञान क्या है, यह बताते हुए भगवन श्री कृष्ण कहते हैं- श्रेष्ठता का अभिमान न हो, घमंड से भरा आचरण न हो, प्राणी मात्र को किसी भी प्रकार न सताये, क्षमाभाव हो और मन तथा वाणी में सरलता हो, यही ज्ञान है!(अ.13 श्लोक 7) ज्ञान से अज्ञान की ओर ले जा रहा है भाजपा संघ गिरोह भारतीय समाज को!

ईश्वर की अवधारणा को ही खंडित करने का प्रयास किया जा रहा है! भगवान कहते है- बहिरन्तश्च भूतानामचरम चरमेव च अर्थात् परमात्मा चराचर सब भूतो में बाहर भीतर परिपूर्ण है और चर-अचर रूप भी वही है (अ.13श्लोक.15) और अविभक्तम च भूतेशु विभक्तमिव च स्थितम यानि कि वही विभाग रहित ईश्वर चराचर सम्पूर्ण भूतो में अलग अलग दिखाई देता है! (गीता अ.13 श्लोक 16) सच्चा ज्ञानी वही है जिसके लिए कहा गया है!समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठनतम परमेश्वरम / (गीता अ.13 श्लोक 27)

अर्थात् जो व्यक्ति सब चराचर भूतों में नाश रहित परमेश्वर को समभाव से स्थित देखता है, वही देखता है! किन्तु हिन्दू भगवान, मुस्लिम भगवान-ईसाई भगवान का भेद करके भगवान के ही अर्थ का अनर्थ किया जा रहा है! आस्तिक होने की पहली शर्त ही यह है कि एक सर्वशक्तिमान स्रष्टिकर्ता संचालक सर्वव्यापी ईश्वर की अवधारणा पर आस्था रखी जाए! साम्प्रदायिकता की भावना धार्मिकता की इस नींव पर चोट करती है और पूजा या आराधना के एक ढंग को धर्म का नाम देकर ईश्वर की संकुचित परिभाषा गढ़ती है.।

मंदिर-मस्जिद के लिए रक्त पात और घृणा धार्मिक मान्यताओं के विपरीत है। जो महान हिन्हू धर्म अयम निज परोवेति गणना लधुचेतसाम उदार चरितानाम तु वसुधेव कुटुंबकम की शिक्षा देता रहा है और जिसके पवित्र ग्रन्थ श्रीमद भगवत गीता में योगेश्वर श्री कृष्ण कहते हैं- मत्त: परतरम नान्यत किंचिदस्ति धनजय (अ.7 श्लोक 7)

अर्थात् हे अर्जुन ! मेरे अतिरिक्त कहीं और कुछ नहीं है, उसी धर्म के भीतर से भाजपा सघ गिरोह उसे भ्रष्ट कर डालने का षड्यन्त्र कर रहा है ! राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता को गलत रूप से परिभाषित करते हुए यह समझाने का प्रयास किया जा रहा है कि हिन्दुओं के अतिरिक्त अन्य (अर्थात् मुसलमान या ईसाई) जिनकी आस्था के केंद्र भारत की सीमा से बाहर है देशभक्त हो ही नहीं सकते ! जबकि राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन का इतिहास और नये भारत का निर्माण इसके विपरीत प्रमाण है! राजनीति के लिए साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश में अपना विवेक खो बैठे लोग यह भूल जाते हैं कि इस तर्क का उल्टा प्रहार है! यदि वे लोग जिनकी आस्था या श्रद्धा के केंद्र राष्ट्र की परधि से बाहर हैं, देशभक्त नहीं हो सकते तो क्या इसका अर्थ यह नहीं कि जापान और चीन सहित दुनिया भर में फैले बौद्ध इसलिए अपने देशों के प्रति वफादार नहीं हो सकते, क्योंकि उनकी आस्था के नायक गौतम बुद्ध भारतीय थे ! नेपाल का हिन्दू नेपाल द्रोही है, क्योंकि राम कृष्ण अवतार नेपाल में नहीं जन्मे थे! इस तर्क का अर्थ यह भी है, कि संसार के अन्य देशों में जहां भी हिन्दू हैं, वे देशभक्त नहीं हैं, क्योकि उनकी आस्थाएं भारत के दर्शन में हैं ! और कि इसलिए उन देशों की सरकारों को चाहिए कि अपने यहां के हिन्दुओं को दूसरी श्रेणी का नागरिक मान कर मूल अधिकारों से वंचित कर दें !

ऐसी विचारधारा हिन्दुओं के लिए हानि कारक है !यह खतरनाक तर्क है ! भाजपा- संघ गिरोह भारतीय चिंतन की भागीरथी को एक नाला बनाना चहता है ! क्या हिन्दू समुदाय और उसके आचार्य, गुरु और विचारक इस षडयंत्र पर मौन रहेंगे ? इसी पर धर्म का भविष्य निर्भर है !
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