क्या केजरी से डर गए हैं मोदी और भाजपा

गौरव अवस्थी
गौरव अवस्थी

दिल्ली की भाजपा की चुनावी रैली भीड़ के लिहाज से पिछली चुनावी रैलियों से कही से भी कमजोर नही थी। इतने जाड़े में इतने लोग बटोरना कोई आसान काम नही है। शायद ही कोई दूसरा दल इतनी भीड़ चुनाव रैली में दिल्ली जैसी जगह में इकठ्ठा कर पाये। आप भी नही। जोश भी जाड़े के हिसाब का ही था  मोदी जी ने भाषण तो लच्छेदार ही दिया। कम से कम उनसे इसकी उम्मीद भी है खुद हमे और देश की जनता को भी लेकिन कुछ कमजोरी दिखी तो मोदी के भाषण में और भीड़ के जोश में। इस बार भीड़ से मोदी … मोदी … मोदी वाले सुर नदारद थे। सवालो के जवाब में भी वह तेजी नही नजर आई। हो सकता है कि टीवी चैनल वालों ने उन सुरों पर फोकस ना किया हो … लेकिन एक दो ना करते चैनल तो सैकड़ों है। कोई न कोई तो वह सुर का फुटेज दिखाता ही।

राष्ट्रीय फलक पर अपने उदय से लेकर झारखंड फतह तक मोदी अपने विपक्षी पर इतने हमलावर कभी नही दिखे। विरोधी को भ्रस्टाचारी बताया। माँ-बेटा और बाप-बेटा सब किया किया लेकिन किसी विरोधी नेता को अराजक कहने की जरुरत उन्हें दिल्ली में ही पड़ी। आप पर जिस तरह हमला हुआ उससे सवाल निकल रहा है कि आखिर पीएम मोदी के आप को निशाने पर लेने के आखिर मायने क्या है। दरअसल दिल्ली की जंग और राज्यों से जुदा लग रही है। आप ने चुनाव प्रचार में शुरूआती बढ़त सी  बना ली है। कुछ दिनों पहले दिल्ली एक काम से जाना हुआ था। तक चुनाव की सुकसुकी शुरू हो चुकी थी। चुनाव को लेकर पूरी तरह से सतर्क केजरी ने प्रचार के प्रारंभिक चरण में ही बढ़त नजी बना ली थी लोगो के दिलों में भी अपनी बढ़त बनाई सी है। ऐसा बटुई  के चावल टटोलने से महसूस हुआ था। खासकर ऑटो वाले तो आपके ही साथ नजर आये। एक ऑटो चालक ने चर्चाओंके बीच यही कहा कि यह हमारी रे या विचार नही ऑटो की सावरिया जो बात करती हैं बाबूजी हम वही बता रहे है। यानि दिल्ली के दिल में भाजपा को लेकर कुछ चल रहा है। हो सकता है कि यह बटुई के चावल कुछ कच्चा ( गच्चा ) ही दे दे और स्वाद (परिणाम ) कसैला हो जाये लेकिन अपना अनुभव ऐसा नही कहता। काफी दिन से कई चुनाव देखे। शुरआती चर्चाएं चुनाव का रुख मोड़ने में अक्सर सहायक सिद्ध दिखी है। कुछ चर्चाये कांग्रेस के पक्ष में भी चल निकल रही थी। दिल्ली में आप जिधर भी जाइये ‘आप’ ही ‘आप’ दिखेगी। इसे आप केजरी की सतर्कता और दिल्ली बचाने की चिंता दोनों से जोड़कर देख-समझ सकते है।
 दिल्ली समझदार लोगो की है। सात माह का समय कम नही होता। दिल्ली कैसी की वैसी ही है। कुछ बदला नही  दीखता। सडकों पर जाम वैसा ही। एक ऑटो चालक कहने लगा -अगर भाजपा ने कुछ अविकसित कालोनियों में मिटटी वगैरह ही डलवा दी होती तो दिल्ली मोदी –मोदी ही चिल्ला रही होती। मोदी अच्छे आदमी है लेकिन दिल्ली भाजपा वाले कुछ कर ही नही रहे। ऐसे थोड़े ही दिल्ली फतह हो जाएगी।  भाजपा ने महाराष्ट्र में 25 साल का शिवसेना से गठबंधन तोडा तो उसके पीछे पार्टी का सर्वे और ख़ुफ़िया रिपोर्ट के अनुमान ही निकले। अब जब केंद्र में सत्ता संभाले मोदी जी को सात माह का समय गुजर चूका है तो शायद दिल्ली की जवाबदेही का भी समय है। मेरी समझ से ये बिजली का झुनझुना तो चुनाव में नही बजने वाला। झुग्गी-झोपडी से निजात। अवैध कालोनियों का नियमितीकरण ऐसे मुद्दे है जिनसे दिल्ली उबलती है। इन मुद्दो पर दलों की चुप्पी दिल्ली का वोटर तो बर्दाश्त नही करेगा … आगे देखिये होता क्या है
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