पचपन भी होतो क्या कर लोगे ?

sohanpal singh
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बहुत ना ईंसाफी है भाई ! कि एक; एक साल के (केन्द्रीय सरकार )बच्चे को १३२ साल पुरानी पुरानी बुढिया के ४४ तगडे तगडे जवान बच्चे धमकी दे रहे है कि या तो हमारी बात मानो नहीं तो संसद से ले कर सडक तक कहीं भी नही छोडेगें अरे !!! भाई लोगो आप की यह कैसी दादा गीरी है ? भाई लोगों पूँजीपतियों को छोडो वे तो सरकार के साथ अपना काँटा स्वयं भिडाने मे समर्थ है । सडक पर संघर्ष करना आपको शोभा नही देगा और संसद मे आप हल्ला तो मचा सकते हो हंगामे वाला संघर्ष आप कर .ही नही सकते ईस लिए जो काम कर नही सकते हो तो उस विषय पर बात ही क्यों करते हो । क्योकि एक कहावत है जिस रास्ते नही जाना हो उसकी दूरी मापने का क्या फायदा ? चूँकि सडकों पर संघर्ष या हंगामा करने में कानून व्यवस्था सामने आकर खडी होजाती है । वैसे भी आप एक जिम्मेदार विपक्ष होने के नाते कानून व्यवस्था का उल्घंन कैसे और क्योंकर कर सकते हो ? आपने स्वाधीन भारत के शासन के ईतिहास ६८ वर्ष में से लगभग ५५/५६ वर्षों तक सुविधाओं से परिपूर्ण शासन किया है और शासन करने से संघर्ष की क्षमता का ह्रास हो जाता है । ऐसा हम नही कह रहै है यह तो कटु सत्य है । आप अभी तक अपने बुजुर्गों की जमा पूंजी को ही खर्च कर रहे थे;जो अब चुकता होने की कगार पर है । क्यों कि यह तो अर्थ शास्त्र कि नियम है कि जमा पूंजी मे अगर और पूंजी जमा नही करोगे तो वह एक दिन समाप्त हो जायगी । इसलिए अगर कुछ समाप्त ही करना है तो अपनी कमजोरियों को दूर करना होगा और सुस्ती को समाप्त करना होगा ।करने को तो और भी बहुत से काम जैसे आपके पास नेता बहुत है लेकिन कार्यक्रताओं की बहुत कमी है। जनता से जुडाव केवल नारो के द्वारा ही हैं हकीकत मे जनता भटक जाती है परिणाम आपके विपरीत ही नहीजाता आप को रूला जाता है । जहाँ २१६ से घट कर ४४ पर भी मुश्किल से पहुचँपाए । इसलिए अगर देश की पंचायत में ५५भी होते तो क्या होता क्योंकि सामने वाले का तो सीना ही ५६का है । अधिक से अधिक एक व्यक्ति को प्रतिपक्ष के नेता का पद मिल जाता । उससे क्या होता ?कौन किला फतेह हो जाता क्योंकि आपके पास तो सारे नेता ही बडे बडे कद के है ।आप नाकाम है इसलिए नही की आप अक्षम है बल्कि इसलिए की आप प्रचार तंत्र में सामने वाले से उन्नीस है ।इसलिए हमारा तो यह मानना है कि संसद अगर आप ५५भो होते तो क्या कर लेते?
sohanpal singh

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