अगर हम अपनी पुरातन सभ्यता की ओर एक करवट ले तो हमे यह अवश्य ही अपने अल्प ज्ञान की खिडकी खुलती नजर आएगी । जब हमे यह ज्ञान होगा कि शिक्षा का स्तर शंकुचित होने पर भी कितना समृद्ध और व्यस्थित और सुचारु रूप से चलता था । जहां गुरू का स्थान ही सर्वोपरि होता था। गुरूकुल एवम आश्रमों मे रह कर शिक्षार्थी शिक्षा ग्रहण किया करते थे। चुंकि इन गुरूकुलो आश्रमों को आर्थिक संरक्षण राजा महाराजाओं और सम्पन्न लोगो से ही मिलता था तो स्वाभाविक ही है कि शिक्षा भी उन्ही लोगों के बच्चों को मिलती थी । इसी कारण से गुरूओं का स्थान भी सर्वोपरि माना जाता रहा है । यहां तक कि सब कुछ गुरू ही थे । जैसा कि गुरू वन्दना मे कहा गया है ।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव । त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव ।।
त्वमेव विद्धया द्रविणं त्वमेव । त्वमेव सर्वम मम दे देवो ।।
गुरूर ब्रह्मा गुरूर विष्णु ; गुरूरदेवो महेशवर: ।
गुरूर: साक्षात परबृह्म तस्मै श्री गुरूवे नम: ।।
गुरू गोबिन्द दोउ खडे काके लागूं पायं ।
बलिहारी गुरू आपने गोबिन्द दियो बताय ।।
यानि कि माता पिता से लेकर ब्रह्मा विष्णु महेश तक सब कुछ केवल गुरू ही है । और ज्ञान के क्षेत्र मे भारत विश्व मे बहुत ऊंचे शिखर पर था ।और गुरूऔं ने भी पूर्ण रूप से अपने धर्म को निर्वहन ही नही किया अपितु गुरू धर्म जिया भी है ।। और ईस बात की पूर्ण सुरक्षा भी रखी कि कोई भी दलित गरीब शिक्षित न हो सके ।अगर हो भी गया तो उसे एकलव्य और कर्ण की तरह अपमानित होना पडा था यह ब्राहमण वाद का चरम था । मुसलिम शासको के समय को भी अगर अलग कर दिया जाय तो अंग्रेजो के समय शिक्षा का वास्तव मे विस्तार हुआ परन्तु मैकाले की वह शिक्षा पद्धति केवल भारत मे वर्किगं क्लास के बाबुऔं को ही पैदा कर सकी थी । लेकिन आजादी की करवट से पहले के कुछ समझदार बुद्धिजीवी ।एवमं दूर्दशी व्यक्तियों द्वारा अपने शिक्षा केन्द्रों की स्थापना की गई जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी अच्छा कार्य करते नजर आए ।
हमने आपने संविधान मे शिक्षा, सुरक्षा,और स्वास्थय को सरकार के दायित्व मे दर्शाया है । लेकिन सरकार अपने दायित्व को आज तक पूरा करने मे नाकाम रही है। भले ही बेसिक शिक्षा के ्क्षेत्र में दोपहर के भोजन का टुकडा डाल कर दलित;पिछडा; गरीब वर्ग के क्षात्रों को आकर्षित करने का जी तोड प्रयास करने मे भले सैकडो करोड का बजट खर्च किटया जाता है परन्तु सफलता न के बराबर ही है ऊल्टे मध्यान भोजन की योजना मे व्याप्त म्रष्टाचार स्माप्त होने का नाम नही ले रहा है। लेकिन सरकार इसमे ही अपने दायित्व की ईतिश्री समझ ती है । मेडिकल/ईजिंनियरिगं/आई आई टी और आई आई एम कालेजों को खोल कर सरकार अपने को दायित्व से मुक्त समझ लेती है । इस लिए सरकार ने शिक्षा और स्वास्थय के क्षेत्र मे नाकाम रहने की बदनामी से बचने के लिए बहुत चालाकी से आयकर अधिनियम की धारा १० (२२)और १०(२२अ) मे यह प्रावधान कर दिया है कि अगर कोई पंजिकृत चैरिटेबल संस्था शिक्षण या स्वास्थय के क्षेत्र मे कार्य करती है और आपना सारा लाभ उनही सेवाऔं पर खर्च करती है तो वह संस्था कर दायित्व से मुक्त रहेगी। फिर क्या था अधिकांश भ्रष्ट व्यापारी कानून और एकाऊन्ट के विषेज्ञों और ब्यूरोक्रेटो की आपसी तालमेल से धर्मार्थ संस्थाएं कुकरमुत्तो के सामान देश मे चारो ओर उग आई हैं। जिसका परिणाम कोई सुखद नही है । न तो जनता का ईलाज सस्ता हुआ और न ही शिक्षा के स्तर मे कोई सुधार हुआ है ।
अब यह तो खुला सच है कि जहां सरकारे जनता को सुविधाएं नही दे पाती वहां वह जनता को सुविधाऐं देने की आड में भ्रष्ट लोगों को चैरिटेबल ट्रस्ट की आड मे छद्म व्यापार करने की सुविधा प्रदान करती है । आज देश मे जितने भी स्कूल कालेज /अस्पताल /ईजिंनियरिगं कालेज अस्तित्व मे है वह सबकेसब धर्मार्थ संस्था के नाम पर ही चलाए जा रहे हैँ। जहां गरीब निर्बल आसक्त छात्र छात्राऔं के लिए कोउ स्थान नही है । उपर से सरकारी अनुदान को हडपने मे भी ये संस्थान अग्रणी होते है।
लेकिन अजब गजब तब होता है जब सामन्ती सभ्यता का शांत प्रदेश मध्य प्रदेश सुर्खियों मे आता है जहा सरकारी सेवाऔं और ऊच्च शिक्षा के प्रवेश हेतू सरकारी स्तर पर परीक्षा का प्रबधं किया गया बाकायदा उसके लिये एक बोर्ड की स्थापना की गई जिसका नाम रखा गया “व्यापम” यानि कि व्यवसायिक परीक्षा मंडल । आरम्भ मे तो केवल ईंजिनियरिगं और डाक्टरी शिक्षा के प्रवेश हेतु परीक्षा ली जाती थी लेकिन बाद मे सरकारी नौकरियों के चयन की प्रक्रिया भी आरम्भ की गई क्योकि तब तक इसको व्यवसाय बना लिया गया था जहां कुपात्रो से मोटी रकम लेकर पास कर दिया जाता था और सक्षम लोगो का नुकसान होता रहा। जिसमे सरकार के मंत्री और अधिकारियों की संलिप्ता ऊजागर होने पर सरकार ने जांच की लीपापोती तो खूब की लेकिन जब इस गोरख धंधे मे लिप्त अपराधियों की संदिग्ध और असमय मौतें होने लगी तो जनआक्रोश और सरकार की मजबूरी एवम अब तक हुई ४५ मौतों के चलते माननीय सर्वोच्च न्यायालय न भी जनहित याचिकाओं पर अपना निर्णय दे ही दिया कि अब केन्द्रीय जाचँ ब्यूरो जाचँ करेगा ।
यह गोरख धंथा अकेले मध्य प्रदेश का ही नही है पूरे भारत भर मे इस बिमारी के किटाणु फैले हुए है। आज कोइ सा भी प्रदेश ऐसा नही है जहां यह घपले न हों । इसलिए जनता मे फैले भय को समाप्त करने के लिए सरकार को श्वेत पत्र जारी करना चाहिए क्योंकि वर्तमान सरकार के प्रधान मंत्री जब स्किल इंडिया और डिजिटल इंडिया की बात करते हैं तो क्या स्किल इसी प्रकार से डेवेलप होगी !
एस पी सिंह । मेरठ