आखरी दांव ? प्रतक्ष्यम् किं प्रमाणं

sohanpal singh
sohanpal singh
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है तो। लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का होना भी लाजिमी होगा ? इस लिए भारत में पुरे वर्ष ही चुनाव प्रक्रिया चलती रहती है? अभी बिहार राज्य में पाँच चरणों में जो चुनाव हो रहे है उनमे आज चौथे चरण का मतदान हो रहा ह

बिहार चौथे चरण के लिए एक नवंबर को वोट डाले जाने हैं. यह चरण बीजेपी के लिए जीवन मरण के चरण हैं. बताया जा रहा है कि पहले दो दौर के चुनाव में महागठबंधन आगे चल रहा है. अगर यह सही है तो बीजेपी को तीसरे चौथे चरण में अपनी स्ट्राइक रेट 80 फीसद के आसपास रखनी होगी. यह तय है कि पांचवे चरण में मुस्लिम और यादव सीटों की बहुलता को देखते हुए गठबंधन वहां बढ़त ले सकता है. यानि तीसरे चौथे चरण की करीब 105 सीटों बीजेपी का भविष्य तय करेंगी. बीजेपी यहां उम्मीदें देख रही है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री की ताबड़तोड़ सभाएं करवाई जा रही हैं. मोदी भी बार बार आरक्षण के मसले पर अपनी राय साफ कर रहे हैं, विकास पर फिर जोर दिया जाने लगा है और बयानबहादुरों को चुप्प रहने को कहा गया है. मोदी भी चुनाव जीतने के लिए कोई मौका नहीं चूक रहे हैं. यहां तक कि आरक्षण पर लालू और नीतीश को घेरने वाला बड़ा कार्ड चल दिया है. मोदी ने सोमवार को बिहार की एक रैली में बड़ा आरोप लगाया कि लालू और नीतीश दलितों पिछड़ों के आरक्षण में से पांच फीसद आरक्षण काट कर उसे धर्म के आधार पर (यानी मुसलमानों ) देने की साजिश रच रहे हैं. ऐसा कह कर मोदी ने एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश की है. एक , लालू नीतीश ने संघ प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान को बड़ा सियासी मुद्दा बना दिया है जिसमें उन्होंने आरक्षण की समीक्षा किए जाने की मांग की है.

हालांकि संघ से लेकर मोदी और अमित शाह तक आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था में किसी तरह की तब्दीली करने से इनकार कर चुके हैं लेकिन लालू नीतीश यह मुद्दा ले उड़े हैं. मोदी ने अब उल्टे दोनों पर ही दलितों पिछड़ों के आरक्षण कोटे में बदलाव करने की साजिश का आरोप लगा दिया है. इससे बीजेपी के खिलाफ आरक्षण पर बन रहे माहौल को कुछ हद तक सुधारने की उम्मीद मोदी कर रहे होंगे. दो , मोदी कह रहे हैं कि दलितों पिछड़ों के आरक्षण में पांच फीसद की कमी कर उसे मुसलमानों को दिये जाने की साजिश है यानि मोदी पिछड़ा ( यादव ) मुस्लिम जोड़ में दरार डालने की कोशिश कर रहे हैं .

पहले बात करते हैं बढ़े हुए मत प्रतिशत की. पहले और दूसरे चरण के चुनाव में करीब 57 फीसद मतदान हुआ है. यह 2010 के विधानसभा चुनाव की तुलना में 6 प्रतिशत अधिक है. लेकिन यह अंतर इतना बड़ा नहीं है कि किसी नतीजे पर पहुंचा जा सके. आमतौर पर माना जाता है कि पिछली बार से अगर वोट ज्यादा पड़ते हैं तो इसका मतलब यही होता है कि जनता बदलाव चाह रही है. लेकिन इसके लिए अंतर दस बारह फीसद होना चाहिए. तीन चार प्रतिशत मतदान तो मतदान सूचियों में खामियां दूर करने से ही बड़ जाता है. दरअसल मतदाता सूची में ऐसे लोगों के नाम भी दर्ज होते हैं जो या तो मर चुके होते हैं या फिर वह इलाका छोड़ कर जा चुके होते हैं. इसके साथ ही कुछ बोगस वोटर भी होते हैं. इनके नाम हटाने पर अपने आप ही मतदान प्रतिशत बढ़ जाता है. उदाहरण के लिए, किसी गांव में एक हजार वोटर हैं और 500 वोट पड़ते हैं तो मतदान प्रतिशत हुआ पचास का. लेकिन अब अगर एक हजार में मृत, इलाका छोड़ चुके और बोगस वोटर कुल मिलाकर 200 हैं और 500 वोट पड़ते हैं तो मतदान प्रतिशत साठ से भी ज्यादा हो जाएगा. ( 800 वोटों में से 500 वोट पड़े ). चुनाव आयोग का भी मानना है हर बार मतदाता सूची की खामियां दूर करने से वोटिंग प्रतिशत बढ़ता है और मतदान केन्द्र पर पुख्ता व्यवस्था करने से भी वोटर ज्यादा संख्या में आता है. इसे देखते हुए अब अगर बिहार में पहले दो चरणों में ज्यादा हुए मतदान को देखा जाए तो यह छह फीसद बढ़ा हुआ मतदान किसी नतीजे पर नहीं ले जाता.

ऐसे में महागठबंधन की ओर बढ़ते रुझान ने बीजेपी खेमे की चिंता में पलीता ही लगा दिया है ? प्रधानमंत्री पद की गरिमा को भी द्रोपती के सामान दांव पर लगा कर अब युधिष्ठर मामा शकुनि के पाशे का इन्तजार 8 नवम्बर तक तो करेंगे ही ? अगर ऐसे में काली दाढ़ी और सफ़ेद दाढ़ी की जोड़ी का धार्मिक उन्माद का कार्ड कौन सा गुल खिलायेगा और उसके दीर्घगामी आयाम क्या होने यह सब गर्भ में ही है ? परंतु यह एक निश्चित और कटु सत्य है की बीजेपी अपने हिंदुत्व और सांप्रदायिक अजेंडे को कभी नहीं छोड़ सकती ! भले ही उसका रूप बदला हुआ हो कभी राम और मंदिर और एक रुपया एक ईंट ! कभी पिछड़ा और अति पिछड़ा और कभी गौ मांस तो कभी पकिस्तान ! कभी कश्मीर कभी कारगिल सब सुविधा जनक स्थिति में आगे बढ़ता Jहैं ?

चुनाव आयोग के आंकड़े बता रहे हैं कि महिलाओं ने बढ़ चढ़ कर वोट दिया है. पुरुषों के मुकाबले करीब पांच फीसद ज्यादा. क्या यह नीतीश के पक्ष में है. इसके पीछे कुछ तर्क दिए जा सकते हैं. एक, नीतीश अपनी योजनाओं के कारण महिलाओं के प्रति लोकप्रिय हैं, जिन स्कूल बच्चियों को साइकिलें दी गयी थी वह उन साइकिलों से कालेज जा रही हैं, कोचिंग सेंटर जा रही हैं. दो, स्कूलों में शिक्षिकाओं की नियुक्ति भी बड़े पैमाने पर हुई है. तीन, नीतीश कुमार ने महिलाओं को नौकरिओं में 35 फीसद आरक्षण देने का वायदा अपने सात निश्चयों में शामिल किया है. और चार, गांव कस्बों में खासतौर से महिलाएं पुरुषों की शराबनोशी से परेशान हैं. यह बात रही है कि नीतीश के राज में ही शराब की दुकानों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है लेकिन अब नीतीश कुमार सरकार बनने पर शराबबंदी की बात कर रहे हैं. बहुत संभव है कि महिलाएं नीतीश पर विश्वास कर रही हों. हालांकि दूसरी तरफ से तर्क दिये जा रहे हैं कि पिछले लोकसभा चुनावों में महिलाओं ने मोदी के विकास के नारे पर यकीन करते हुए बड़ी संख्या में उन्हें वोट दिया था और महिलाओं का मोदी पर से भरोसा टूटा नहीं है. महिलाओं को लग रहा है कि मोदी का सवा लाख करोड़ रुपये का पैकेज उनकी किस्मत बदल सकता है. महिलाएं विकास के लिए लोट देने की बात वोट देने के बाद कर रही हैं और यह विकास मोदी का संभावित विकास है. कहा जा रहा है कि शराबबंदी के नीतीश के वायदे पर महिलाएं क्य़ों यकीन करेंगी जब शराब की दुकान उनके राज में ही ज्यादा खुली हैं. एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि जब नीतीश की साइकिल वोट दिला सकती है तो बीजेपी की प्रस्तावित स्कूटी क्यों नहीं ?

बिहार में तीसरे और चौथे चरण के लिए 28 अक्टूबर और एक नवंबर को वोट डाले जाने हैं. यह दोनों चरण बीजेपी के लिए जीवन मरण के सामान ही है ?लगता तो नहीं है की बीजेपी अपने सांप्रदायिक अजेंडे में कामयाब हो सकेगी, लेकिन चुनाव तो चुनाव ही होते है इस लिए अंतिम फैसले का इन्तजार करना ही होग ?
एस पी सिंह। मेरठ

error: Content is protected !!