कैसा लगा होगा प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी को जब उनकी उपस्थिति में अंग्रेजी पत्रकार ने ब्रिटेन के प्रधान मंत्री डेविड कैमरून से यह पूंछा कि श्री नरेंद्र मोदी के पिछले रिकार्ड को देखते हुए प्रधानमंत्री के रूप में उनका स्वागत करते हुए कैसा लग रहा है ? कैमरून एक कुशल राजनीतिज्ञ है उन्होंने भी राजनितिक जवाब दिया की मोदी जी का स्वागत करते हुए उन्हें खुसी महसूस हो रही है क्योंकि ेभारत की जनता ने उन्हें प्रचंड जनादेश दिया है !
चूँकि यह सवाल ही अपने आप में अपमान जनक था मोदी जी तिलमिला गए और उन्होंने ने अपने जवाब में कहा की वह 2003 में ब्रिटेन आये थे उनपर कोई प्रतिबंध नहीं था ! लेकिन यह भी सच है की 2005 में मोदी जी की ब्रिटेन की यात्रा प्रस्तावित थी परंतु कड़ा विरोध होने पर टाल दी थी ! और यह सिलसिला 2012 तक चला 2012 में ब्रिटेन ने अपने दिल्ली स्थित राजदूत को मोदी जी से मिलने और गुजरात में व्यापारिक संभावनों की तलाश में बात करने की हिदायत दी थी । यानिकी 2012 तक मोदीजी ब्रिटेन के लिए भी अछूत ही थे ? क्योंकि अमेरिका ने 18 जनवरी 2005 को श्री नरेंद्र मोदी की यात्रा को प्रतिबंधित कर दिया था और यह 12 /02 /2014 को प्रतिबंध तभी हटा जब वह प्रचंड बहुमत से जीतेने और प्रधान मंत्री बनने की संभावना थी ? जबकि उस समय के बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने चुनाव की घोषणा के बाद अमेरिका का दौरा किया और नरेंद्र मोदीजी के लिए वीजा की वकालत इस की वह बीजेपी के प्रधान मंत्री के चुनाव के लिए घोषित उम्मीदवार है ? लेकिन अमेरिका ने तब भी वीजा देने से इंकार इस रूप में किया की आप प्राथर्ना पत्र दो उस पर विचार किया जायेगा?
इस लिए हम श्री नरेंद्र मोदी जी से यह अपेक्षा करते है की जैसा वह विदेशी धरती पर घोषणा करते है कि वह सहिष्णुता में विश्वास करते हैं तथा सभी देश वासियों की विकास और समृद्धि की बात करते हैं तो यहाँ भारत में उनके संघी साथी और उनके मंत्रीगण संसद सदस्य हमेशा उलटी सीधी धमकी के सुर में केवल हिंदुत्व की ही बात क्यों करते है ?अतः मोदी जी को यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए की विदेशों में किसी नरेंद्र मोदी का स्वागत नहीं होता है अपितु उस नरेंद्र मोदी का स्वागत सत्कार होता है जो एक उभरती हई अर्थ व्यवस्था के देश भारत जिसकी 125 करोड़ की जनता का नेतृत्व कर रहा व्यक्ति है इसलिए यह दायित्व भी श्री नरेंद्र मोदी का ही है की वे भारत में असहिष्णुता पर लगाम लगाये और अपने संगी साथियों की। जहरीली जूबान पर ताला लगाये और उन्हें मर्यादा में रहने की व्यवस्था करे या फिर अपनी पार्टी से बहार निकालें ? क्योंकि उनकी पार्टी महासचिव स्तर के लोग अपने सीनियर सांसदों को भी कुत्ते की संज्ञा देने से बाज नहीं आते ? जो एक अनुशासित पार्टी के पदाधिकारियों से अपेक्षा नहीं की जा सकती ?
नहीं तो यह आरम्भ ही है क्योंकि दिल्ली और बिहार की राजनीती करने के कारण नरेंद्र मोदी जी का जो प्रादुर्भाव हुआ है उसका नुकसान पुरे भारत को इसी प्रकार उठाना पड़ेगा जब जब मोदी जी की असहिष्णुता के सवाल विदेशो में पूंछे जायगे ? तब न तो उनके प्रवक्ताओं के पास जवाब होगा न सरकार के पास कोई विकल्प होगा ? क्योंकि विदेशी धरती पर अगर ऐसे सवाल जो मोदी जी के भूतकाल से सम्बंधित है उन पर अगर धुल मिटटी डालनी है तो उन्हें अपनी टीम में और शासन व्यस्था में सुधार करना ही होगा अन्यथा 60 माह का शासन भूलने में देर नहीं लगती ?
एस. पी. सिंह मेरठ