भारत के उच्चतम न्यायालय के नवनियुक्त मुख्य न्यायधीश ने साहस पूर्वक जो भी कहा वह उनकी दृढ इच्छाशक्ति को दर्शाता है । लेकिन दृढ इच्छाशक्ति को दर्शाने के बाद भी उनकी बातो में गरीब से गरीब व्यक्ति को सस्ता और सुलभ न्याय मिले इस चिंता की झलक भी मिलती है ? क्योंकि हमारे पूर्वज भी कहा करते थे की अगर किसी को न्याय चाहिए तो उसके पाँव लोहे के और उन पाँवों में जूता चांदी का होना चाहिए तो न्याय अवश्य ही मिलेगा !
इस बात में कोई शंका नहीं है कि भारत में विधि का शासन है और शासन का संरक्षण सर्व साधारण को उपलब्ध भी है परंतु इफ एंड बट और न जाने कितने किन्तु परंतु के साथ किसी निचले पायदान पर विराजमान व्यक्ति को मिल भी सकता है और नहीं भी ? क्योंकि आज देश के कारागारों की हालात देख कर ही पता चलता है की अगर उनको शीघ्र न्याय मिल जाता तो शायद जुर्म की सजा से अधिक जेल का जीवन न झेलना पड़ता ?
शुलभ न्याय किसको ? इस देश में शुलभ न्याय केवल दबंग, और पैसे वालों को ही मिलता हैअन्यथा गरीब को न्याय एक दुर्लभ वास्तु है ? लेकिन अगर माननीय मुख्य न्यायधीश अपने सम्बोधन से देश में तथाकथित असहिष्णुता के वातावरण जनता को अगर यह सन्देश देते है न्याय सबके लिए है और वह इसके लिए सतर्क है । क्योंकि वह देश की न्याय व्यवस्था के सबसे बड़े संरक्षक हैं तो हम उनके इस वचन का स्वागत करते हैं ।
एस. पी.सिंह,मेरठ।