कानून-नेता और अदालत के बीच सरकार

sohanpal singh
sohanpal singh
आज एक समाचार पढ़ कर सुखद आश्चर्य हुआ कि पाटीदार आंदोलन के जनक 23 वर्षीय हार्दिक पटेल पर से गुजरात सरकार ने 41 मुक़दमे वापस ले लिए हैं लेकिन वे अभी भी देश द्रोह का मुकद्दमा झेलते हुए जेल में बंद हैं । लेकिन यह संभव कैसे हुआ ? पटेल ने जेल से एक पत्र मुख्यमंत्री को समझौते के लिए लिखा और तुरंत 41 मुकद्दमे वापस अच्छी बात है शायद आंदोलन वापस लेने पर देश द्रोह का मुकदमा भी वापस हो जायेगा ? क्या यह एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए उचित है ! क्या इससे यह प्रतीत नहीं होता कि कानून और कानूनी प्रक्रिया भी आजकल के नेताओं के लिए इतनी सस्ती हो गई है जिसका इस्तेमाल किसी रखैल के सामान कर डालते हैं ? इसका मतलब साफ़ है की जब चाहो किसी भी आंदोलन कर्ता पर फर्जी मुक़दमे लगाओ और जेल में डाल दो और आंदोलन वापस लेने पर मुकदमो भी वापस लेलो ? कानून का यह खेल किसी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए घातक है भले ही कानून की किताबों में इसका प्रावधान हो ? माननीय अदालतों को भी इस बात का संज्ञान लेना चाहिए कि परतंत्र भारत के कानूनों का इस्तेमाल स्वतंत्र भारत में किस प्रकार से हो और आधुनिक बेलगाम राजनितिक जमात प्रतंत्रता के कानूनों का दुरूपयोग न कर पाये ?

SPSingh, Meerut.

error: Content is protected !!