हमको यह समझ नहीं आता की प्रधानमंत्री के रूप में जब मोदी जी पार्टी के प्रचारक के रूप में बोलते है तो उन्हें यह यकीनी रूप में गांठ में बाँध लेना चाहिए की वे देश के 125 करोड़ लोगो के नेता है न कि संघ के प्रचारक और ना ही बीजेपी के नौकर , इस लिए प्रधान मंत्री के पद की गरिमा को अक्षुण रखना भी सीखना होगा जिसकी कसम भी उन्होंने खाई है । क्योंकि उत्तर प्रदेश का यह अनुभव है की भले ही मोदी जी 5 करोड़ गुजरातियों के गौरव थे जो 5 करोड़ की गाथा गाते गाते 125 करोड़ भारतियों के गौरव बन गए हैं परंतु अपने कमल गट्टों (सांसद और विधायकों और बेलगाम नेताओं ) पर कार्यवाही तो दूर जबान पर लगाम भी नहीं लगा सके? शायद इन कारणों से उन्हें अपनी पार्टी की u p की दयनीय हालात का पता है ! तभी उन्होंने निम्न स्तरीय भाषा का इस्तेमाल किया जिसको किसी भी हालात में उचित नहीं कहा जा सकता । पता नहीं यह देश कासौभाग्य है या दुर्भाग्य की देस को उन जैसा कर्मठ नेता मिला जो देश की चिंता करने के विपरीत पार्टी को मजबूत करने के लिए रातदिन एक किये हुए है ? क्योंकि लतियाना, लाठियाना , फुसलाना, बरगलाना, फड़फड़ाना, मुस्कराना, तड़फ़ाना, लड़वाना , हड़काना, बहुत से जुमले है और चुनाव में जुमलों का जमाल जनता देख चुकी , एक जुमला था 15 लाख सबके खाते आजायेंगे , वो जुमला जुमला ही बन कर रह गया लेकिन चिंता की बात नहीं इस लतियाने वाले जुमले का सम्बन्ध सीधे जनता से जुड़ा है और जनता 2017 में इस जुमले को मूर्त रूप में कार्यान्वित जरूर करेगी ?
एस. पी. सिंह , मेरठ .।