आजादी के इतने वर्ष बाद भी हम अपनी उपलब्धि से सन्तुष्ट नही है अभी भी वैचारिक रूप से आजादी महसूस नही कर पा रहे है । अब भी जनता को अपने हक के लिए नेताओ से भीख मांगनी पड़ती है और तो दूसरी तरफ नेताओ की स्थति भी भिखारियों से कम नही है उनको भी अपने लिए टिकट और पद प्राप्त करने के लिए आंकाओ के चरण स्पर्श करना पड़ता है चाहे आंका उनसे उम्र में कम ही क्यों ना हो ।
तो लगता यह है कि राजनीतीक पार्टियों में भी एक ऊपर की परतो में आज भी अंग्रेजो की मानसिकता है मगर उन्होंने बड़ी होश्यारी से उसे ढक रखा है और 15 अगस्त और 26 जनवरी को मनाकर प्रजा को परतन्त्र होने का अहसास नही होने देते मगर आज भी हमारे दूसरी पंगति के नेता खुद तो ये नही मानते की हम गुलाम है परंतु इनके आचरण में गुलामी समय समय पर देखाई देती है और जनता तो अपनी गुलामी का प्रदर्शन जब भी नेताओ के पास जाती है तब तब गुलामी का अहसास कराती रहती है क्या हमें आजादी की एक और लड़ाई लड़नी होगी या गुलामी की जिंदगी जीते रहेंगे
महेंद्र सिंह भेरुन्दा
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