लेकिन मुलायम सिंह के राजनीतिक कैरियर में यह कोई नयी बात नहीं थी। उन्होंने लोहिया को धोखा देकर चरण सिंह के चरण पकड़े फिर चरण सिंह को धोखा देकर वीपी सिंह के साथ चले गये फिर वीपी सिंह को धोखा देकर चंद्रशेखर के साथ चले गये, फिर चंद्रशेखर को धोखा देकर मायावती के साथ चले गये और फिर मायावती को धक्का देकर खुद खड़े हो गये। जिस मायावती से राजनीतिक मिलन के लिए चंद्रशेखर की पीठ में छूरा घोंपा था उन्हीं मायावती पर कैसा हमला हुआ यह उस दौर के लोग भली भांति जानते हैं।
हमारे यहां कहा जाता है, जैसा करोगे वैसा भरोगे। मुलायम सिंह यादव आज अपनी करनी का फल भर रहे हैं। नहीं तो छिहत्तर साल की उम्र में ऐसी छीछालेदर किसी भले इंसान की नहीं होती।
