समाचार पत्र की खबर के अनुसार भारत के प्रधान मंत्री उत्तराखंड में सीमा से लगे किसी गाँव में बीएसएफ के जवानो के संग दीपावली मनाएंगे ,सुखद समाचार है की प्रधान मंत्री को सीमा पर कार्यरत जवानो की फ़िक्र है और वे उनकी खुशियों में शामिल होंगे । शायद कई जोड़ी और डिजाइनर कपड़ो का भाग्य संवर जायेगा जब साहेब के तन से चिपक कर वह कपड़े सुख का अनुभव करेंगे ? और सीमा पर तैनात कुछ सौ पचास बीएसएफ के जवानो का उत्साह भी बढ़ जायेगा अपने बीच साहेब को पाकर ? लेकिन यह दीपावली उन परिवारों के लिए दीपावली न होकर अमावस की काली रात ही रहेगी जिनके पति, पिता और भाई सीमा पर शहीद हुए हैं । क्या ऐसे हालात में साहेब को मौज मस्ती करने का हक़ है अच्छा होता अगर पीड़ित परिवारों से मिलते? दूसरी ओर देश की सर्वोच्च न्यायपालिका साहेब के असहयोग क्र0इ कारन त्रस्त है भारत के मुख्य न्यायधीश सार्वजानिक रूप से विज्ञानं भवन में अपनी पीड़ा अपने आंसुओं के द्वारा प्रकट कर चुके है । अभी कल ही अदालत में भी उन्होंने सरकार को चेतावनी दी है और कहा है की पिछले 6 माह से अधिक समय से जजों की नियुक्ति संबंधी फाइलें सरकार आगे नहीं बढ़ा रही है तो क्या हम न्यायालयों में ताला लगा दें ? अभीहाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में निर्धारित संख्या से आधे जज ही कार्यरत हैं जिसके कारण लंबित मुकदमों के कारण लाखों नागरिक बिना सजा के ही सजा काट रहे हैं ? जबकि की सरकार के चहेते खुले छुट्टे फिर रहे हैं यहाँ तक की गम्भीरं अपराधी बेदाग छूट रहे है ? न्यायपालिका ठप हो जाय कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन साहेब की मौज मस्ती में कोई कमी नहीं होनी चाहिए ? तो आप ही सोंचो ऐसे हालात में साहेब की दीवाली पर मस्ती करना क्या उचित होगा ?
रस.पी.सिंह, मेरठ ।