इससे यह सिद्ध होता है की पहले तो उदारवादी बनके एक भष्मासुर पैदाकरो फिर जब वह नरसहांर करने लगे या स्वयं के लिए मुसीबत बन जाये तो फिर उसका सहांर करो ये दुनिया ऐसे ही चलती है और चलती रहेगी ? यह सारा खेल सम्पन्नता और बर्चस्व का ही है जिस प्रकार भोले शंकर महादेव ने भष्मासुर को वरदान देकर शक्तिशाली बनाया फिर उसे नष्ट किया उसी प्रकारसे अमेरिका ने पहले तो अफगानिस्तान में रूस से लड़ने के लिए ओसामा बिन लादेन को पैदा ही नहीं किया बल्कि उसे शक्तिशाली भी बनाया लेकिन जब उस। भष्मासुर ने जब अमेरिका को ही आँख दिखाई और अपने जिहादियों के द्वारा 11/9/2001 को ट्विन टावर अविश्वसनीय हवाई हमलो से ध्वस्त किया तो अमेरिका की आँख खुली की खुली रह गई । और उस भष्मासुर को समाप्त करने के लिए 10 वर्ष से भी अधिक लग गए जब पाकिस्तान आर्मी द्वारा संरक्षित अति सुरक्षित क्षेत्र में छुपे हुए हुए ओसामा बिन लादेन को 2 मई 2011 को मार गिराया गया ?
यही हाल अब इराक में कब्ज़ा किये बगदादी के द्वारा किया जा रहा है ! पहले तो उसने ईराक के तेल क्षेत्रों पर कब्ज़ा किया और अपने ही लोगों यानि मुसलमानो का कत्ले आम किया ? अब सवाल तो यह है की उसको तेल क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने में किसने मदद की किसने हथियार दिए , ऊँगली पश्चिम के देशों पर ही उठती है ? और इसमें कोई शक भी नहीं है? अब जब बगदादी ने 13 /11/2015 को फ्रांस के पेरिस पर आत्मघाती हमले करके सैंकड़ो लोगों को मौत के घाट उतार दिया तब यूरोपीय देशो को लगा की आतंकी उन पर भी हमला कर सकते हैं और फ्रांस फ़्रांस ने भी जवाबी कार्यवाही 24 घंटे में ही कर डाली और हवाई हमले करके सैंकड़ो बम गिरा दिए ।
उधर रूस ने भी अपने नागरिक विमान को मार गिराने के लिए दोषी इराक में कब्ज़ा किये बैठेे बगदादी पर हवाई हमले जारी किये है? आखिर हथियारों के सौदागरों को अब समझ में आया है कि उनके द्वारा पोषित आतंक मानवता का दुश्मन है यह आतंक केवल भष्मासुर ही नहीं है यह रक्तबीज के सामान है जितना समाप्त करो उतना बढ़ता जाता है ? लेकिन जब जब भारत अपने पडोसी पाकिस्तान के द्वारा पल्लवित पुष्पित आतंक का विरोध करता है तो अमेरिका भारतीय उप महादीप में संतुलन के नाम पर आर्थिक और सामारिक आपूर्ति बढ़ा देता है जबकि अमेरिका को पता की पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित और प्रशिक्षित आतंकियों ने 26/11/2008 को मुम्बई में हमला करके सैकंडों लोगो कोमौत के घाट उतार दिया था और उन पर 36 घंटे बाद ही काबू पाया जा सका था । लेकिन तब किसी यूरोपीय देश ने इतना दर्द महसूस नहीं किया था !
हम मानते है कि आतंक और आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता है लेकिन अब मानव सभ्यता के लिए सबसे बड़ा सवाल यही है कि ये सब आतंकवादी एक धर्म विशेष से ही जुड़े पाये जाते है और पुरे संसार में धर्म के नाम पर ही जिहाद के बहाने आतंक फैला रहे। हैं ? इसलिए अब बदले की कार्यवाही में एक लकीर तो खींचनी ही पड़ेगी की हमला आतंकियों के धर्म के विरुद्ध किया जाय या धार्मिक चोला पहने आतंकियों पर किया जैसी ?
एस पी सिंह। मेरठ