लोकप्रियता और लोकतंत्र !

sohanpal singh
sohanpal singh
सवाल ये हैं कि लोकतंत्र बड़ा है या लोकप्रियता, क्या कोई नेता अपनी लोकप्रियता के मद में अपनी इच्छापूर्ति के लिए पुरे लोकतंत्र को बंधक बना सकता है ? अगर दुनिया भर के लोकतान्त्रिक देशों को इसबात को जानना हो तो वह अपने प्रतिनिधि भारत में भेजें और देखें कि यहाँ का लोकतंत्र किसी लोकप्रिय नेता के द्वारा कैसे चलाया जा रहा है ? जब संविधान में दिए मूल अधिकारों से नागरिक वंचित ही नहीं उनकी देशभक्ति सर्टिफिकेट के नाप पर नोट बंदी का शिकार हो रहा है , व्यापार ठप है, खाद्य पदार्थों की आवाजाही आधी हो गई है सब्जी फल मंडियों में सड़ रहे है खरीदार नहीं ? जनता अपने ही पैसों के लिए बैंको की लाइन में खड़ी होकर लाठियां खाने को मजबूर है ? क्या आपातकाल इससे अधिक भयानक था ? शायद नहीं तबकेवल विरोधी दल के नेता जेल में डाले गए थे लेकिन बाकि कारोबार खूब चल रहा था जनता वास्तव में खुस थी । हम अपने लोकप्रिय नेता से यह मांग करते है कि वे अपने विरोधियों को कंगाल करने के लिए जनता के साथ छल क्यों कर रहे है अगर उनमे हिमत है तो डायरेक्ट एक्शन लें और अपने सभी विरोधियों को जेल में डाल दें और जनता के साथ छल करना बंद करे ? अगर लोकप्रियता का पैमाना भीड़ के सामने भाषण देना ही है, या रैली में केवल भाषण देना भर ही है तो बहुत अच्छा है? संसद का सामना और पत्रकार बिरादरी का सामना करने में संकोच क्यों होता है ? केवल वन वे ट्रैफिक वाले संवाद केवल भीरु व्यक्ति हिटलर प्रवृति के लोग करते है ? लोकतंत्र का मूल मंत्र लोकशाही है सुर उसका पालन होना ही चाहिए ? हम तो यही कहेंगे की आज की स्थिति से अच्छा तो आपात काल ही था ।

एस.पी.सिंह, मेरठ ।

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