मोदी के मन की कोई थाह नही ले सकता

सिद्धार्थ जैन
सिद्धार्थ जैन
लो…! देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फिर छक्का दागने की ठान ली दिखती है। देश के पांच राज्यो में चुनावो की तारीखो की घोषणा से पहले ही मोदी ने अपनी प्लानिंग को अमली जामा पहनाने की कवायद पूरी कर ली। इसके चलते ही देश का बजट समय से पूर्व रखने की सुगबुगाहट योजनाबद्ध तरीके से शुरू करा ली गई। *राजनीति के खिलाड़ियों ने भी तब यह सब नही सोचा होगा जो अब होने वाला है। वे भी गच्चा खा गए। हर कोई विरोधी दल हैरान परेशान है।* मोदी ने इन राज्यो में चुनावी समर को ध्यान में रखते हुए ही ताना बाना बुन लिया। अब बजट सत्र में वित्त मंत्री के माध्यम से देश को विभिन्न सौगाते दिए जाने के कयास लगाए जा रहे हे। सम्भवतया इसी के चलते प्रधानमंत्री हाल ही राष्ट्र को सम्बोधन करते हुए उन सौगातों की घोषणा से बचते रहे। जिसकी कि देश को आशा थी। यही सब विरोधियो की परेशानी का सबब बन रही है। वे दंग हे। कर्तव्यविमूढ़ हे। राष्ट्रपति से मोदी को ऐसा करने से रोकने के लिए गुहार लगा रहे हे।
विरोधियो को भी इसका भान हे कि राष्ट्रपति की भी अपनी सीमाएं हे। वे भी संविधान से बंधे हुए हे। वही सरकार भी नोट बंधी से कही न कही अंदर ही अंदर हिली हुई है। *दूसरी ऒर उसके अपने भी नोट बन्दी के मामले में भौहे टेढ़ी किए हुए हे। सरकार ने यह सोचा भी नही होगा कि बाजार में चलन में बड़े नोट सब ही बैंको में जमा हो जायेंगे।* फिर काला धन गया तो गया कहा? मोदी को लगातार सब फीड बेक भी मिल ही रहा होगा। नोट बन्दी का निर्णय क्या सोच कर लिया गया होगा! वह तो मोदी ही जाने। अब समय पूरा हो जाने के बाद सब लोग इस योजना के पोस्टमार्टम में जुट गए है। सबके अपने अपने अनुमान है। स्वयं भाजपाई भी पर्सनल बातचीत में इसका कोई खास समर्थन भी नही करते दिखते। *यह तो मोदी जेसा जीवट ही हे जो सब जंजावतो में तन कर खड़ा रहा। समूची भाजपा में इकलौता एक यही शख्श था जिसने अपने उदगारों से करोड़ो-करोड़ लोगो को सम्मोहित कर रखा था।* जो कि मोदी की ही जम्मेवारी का काम रह गया था।
खेले खिलाए मोदी यह जानते है कि अब उनका “भविष्य” पांचो राज्यो के रिजल्ट पर ही टिका हुआ है। जो कि नोट बन्दी के सही होने नही होने पर भी मुहर लगाने का काम करेगा। यह सब सोचकर ही वे अपने मनमाफिक प्लान में जुट गए। *इनके हाथ में बजट बहुत बड़ी तोप हे। कोई कुछ भी कहे। कांग्रेस भी केन्द्र में होती। वह भी ऐसा मौका कतई नही छोड़ती इसलिए मोदी को दोष देने की नीयत रखना ही मिथ्या हे।* योग से कह लो। चुनाव आयोग की मिली भगत से कह लीजिए। बजट के आसपास चुनावो की तारीखें आ गई। बजट 1 फरवरी को रखते है या 28 को। चुनाव पड़ते है। अब यह चुनाव आयोग को ही देखना है। इसे आचार संहिता का उलंघन माने या नही। वहां भी संविधान के जानकार बैठे हे। यह तय है कि वे मनमानी तो नही कर सकते हे। यो भी ये लोकसभा के चुनाव तो हे नही।
खेर जो भी हो…! कहावत है कि “दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीने की कोशिश करता है।” *मोदी भी नोट बन्दी की आंच से झुलसे हे। वे आम जनता के जख्मो पर मरहम लगाने का जतन जरूर ही करना चाहेंगे। इसी में पांचो राज्यो का भविष्य भी निहित है। और उसी पर मोदी का भी भविष्य टिका हुआ है। उन्होंने समूचे विश्व में अपने आपको इस कदर प्रतिष्ठापित करने का प्रयास किया है कि अब यह सब उनके जीवन-मरण का प्रश्न है।* फ़िलहाल मोटे रूप से बजट मोदी के लिए रामबाण हे। आज भी आम लोगो को मोदी की नीयत में खोट नजर नही आता। नोट बन्दी की घोषणा के बाद अब तक हुई जनसभाओं में मोदी ने भी तो जनता को यही सब बताने का प्रयास किया है। पचास दिनों के बाद अच्छे दिन आने का वादा किया था। वो दिन भी पूरे हो गए। मोदी भली भांति जानते है। “काठ की हांडी बार-बार नही चढ़ती।” यही सब सबक लेते हुए मोदी के सामने बजट ही बृह्मास्त्र हे। जिसका प्रयोग वे खुल कर करना चाहेंगे। इसी ने विरोधियो के केम्पो में घमासान मचाया हुआ है।

*सिद्धार्थ जैन पत्रकार, ब्यावर (राजस्थान)*
*094139 48333*

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