मोदी जी, युवा डॉक्टरों की खस्ता हालत पर कब रहम करोगे?

डॉ. अशोक मित्तल
डॉ. अशोक मित्तल
जहाँ हर जगह हर डॉक्टर “अच्छे दिन” आने का इंतज़ार कर रहे हैं वहीँ हमारे भावी चिकित्सक बहुत ही चिंता जनक और पीड़ा जनक स्थिति में घाणी के बैल की तरह काम में पिल रहे हैं.
रेजिडेंट डॉक्टर हों या मेडिकल ऑफिसर हों- इन युवा डॉक्टर्स को 24 से 48 घंटे तक लगातार आपात सेवाओं में मरीज की जान बचाने की ड्यटी में लगा दिया जाता है. जब कोई साधारण टेक्सी ड्राईवर ही बिना नींद काडे गाडी नहीं चला सकता तो ये डॉक्टर भी तो इंसान ही हैं, बिना सोये किसी और की जिंदगी की गाडी को कैसे दुरुस्त रख सकते हैं? नींद और थकान की वजह से गलतियां करने की संभावना ३५% तक याने की बहुत अधिक बड़ जाती है. ऊपर से बात बिना बात डॉक्टरों को दोषी ठहराना, गाली गलोच करना, तोड़ फोड़ करना आदि का सिलसिला बड़ता ही जा रहा है.
क्या जिम्मेदारी में डॉक्टर का ओहदा किसी एसपी या न्याय पालक या अन्य सरकारी अफसर से नीचा है?? आम राय मानें तो डॉक्टर को इन सबसे ऊपर माना जाता है. तो फिर इनकी तो कोई सुरक्षा नहीं? कोई भी एरा-गेरा कुछ भी बोल दे, कोई भी हरकत कर दे ! ऐसी बदतमीज़ी यदि किसी भी अन्य विभाग के बाबू या चपरासी से ही हो जाय तो ऐसे में सरकारी कार्य में बाधा डालने पर कोर्ट केस हो जाता है व ऊपर सज़ा के प्रावधान की तलवार भी. लेकिन ओंन ड्यटी डॉक्टर को अन्य मरीजों की सेवा करने से रोकने और उनके साथ मार पीट तक कर देने के अन गिनत मामले रोज़ होते हैं, लेकिन पुलिस, प्रशाशन और नेता तमाश बीन बने देखते रहते हैं. मतलब चपरासी या अन्य चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से भी गयी बीती स्थिति होती जा रही है इन चिकित्सकों की.
अस्पताल के चपरासी या सफाई कर्मचारी से आप बदसलूकी नहीं कर सकते लेकिन अस्पताल के डॉक्टर से किसी भी हद तक बे-अदबी कर सकते हैं.
अरे भाई ऐसे असामाजिक तत्वों को सरकारी कार्य में बाधा, तोड़ फोड़, शान्ति भंग, दुसरे मरीज की जान को खतरे में डालना आदि इल्जामों में अन्दर बंद क्यूँ नहीं कर देते ??
जो तुम्हारे परिचित की जान बचाने में प्रयास रत है, उसे अन्य मरीज के परिजन पीट रहे हैं, और तुम कहते हो आजकल ऐसा ही होता है! कितनी विडंबना है. ऐसी सोच आज के विकासशील समाज पर लानत है. इसीलिए कई नामी गिरामी डॉक्टर आज कल कहते हैं “मैं, अपने बेटे को कभी डॉक्टर नहीं बनने दूंगा” या बेटा कहता है “मैं, पापा की तरह कभी डॉक्टर नहीं बनूंगा!”
मोदी जी, नोट बंदी की घोषणा की तरह आप आज शाम अचानक ये एलान कर दें की “यदि किसी भी शक्श ने डॉक्टर से हाथा पाई करना तो छोड़ यदि ऊंची आवाज़ में भी बात की तो उसे सीधा जेल में डाल दिया जाये.” जो बात न्यायालय में जज पर लागू होती है ठीक वैसी ही मानहानि टाइप की सजा का प्रावधान हो जाए तो ही सब को स्वस्थ रखने के जिम्मेदार इस चिकित्सा व्यवसाय का स्वास्थ्य ठीक रह पायेगा! और तभी हमारे देश का गरीब तबका समृद्ध और खुशहाल रह पायेगा.

डॉ.अशोक मित्तल, मेडिकल जर्नलिस्ट, मास्टर इन जर्नालिस्म – मास कम्युनिकेशन

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