न्याय की घुटती साँसे

महेन्द्र सिंह भेरूंदा
महेन्द्र सिंह भेरूंदा
राजस्थान पत्रिका के मुख्यपृष्ठ पर दो खबरे आमने सामने थी मगर दोनो खबरों का आचरण एक समान था दोनो में न्यायपालिका को अपनी मंशा के खिलाफ दखल नही दे यह कहकर ललकारा जा रहा है ।
एक मे केंद्र सरकार ने हलफनामे के माध्यम से ललकारते हुए दागी मंत्री और विधायकों के मामले सुप्रीम कोर्ट को दखल ना देने की हिदायत दी है ।
तो दूसरी तरफ ममता ने मोहर्रम और नवरात्रा मूर्ति विसर्जन के हाईकोर्ट के निर्देश पर कहा की मेरा गला काट दे परन्तु मुझे ज्ञान नही दे ।
क्या यह हिदायत देंने वाला हलफनामा ओर गला कटाने वाला बयान न्यायपालिका का गला दबाने का प्रयास नही है ?
हाँ यह वही प्रयास जिसमे न्यायपालिका को साँसे घुटने का ऐशास हो रहा है ।
मुझे लगता है की अब प्रजातन्त्रिक आचरण में हम पाकिस्तान को भी पीछे छोड़ने की तरफ आगे बढ़ रहे है क्योकि जब भी सरकार के किसी आदेश पर न्यायपालिका किसी मामले में विधि सम्मत बात का समर्थन करता है तो हमारी कार्यपालिका तिलमिला जाती है और न्यायपालिका को दबोचने का प्रयास करती है और आजकल तो हर दूसरे तीसरे दिन “न्यायलय दखल दे ” इन शब्दो की गूंज से वातावरण दहल जाता है ।
इस प्रकार का वातावरण प्रजातन्त्रिक मूल्यों को क्षीण करता है यह हमारे लिए अपशकुन का सन्देश लाता है क्योकि थोड़ा बहुत जनता का विश्वास यदि किसी संस्थान में है तो वह है न्यायपालिका मगर आज इस राजनीतिक चक्रव्यू ने जनता के उस विश्वास को भी तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है ।
जो हमारे देश का दुर्भाग्य है ।
महेंद्र सिंह भेरून्दा

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