जनभावनाओं को नहीं समझ पाई भाजपा

-बाबूलाल नागा-
राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आ गए हैं। भाजपा के हाथ से राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ फिसल गए हैं। इन राज्यों की जनता ने वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चैहान और रमन सिंह को नकार दिया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का करिश्मा भी काम नहीं आया। इन नतीजों ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की चिंता बढ़ा दी है।
राजस्थान की बात करें, तो प्रदेश में सŸाा परिवर्तन होगा यह तय माना जा रहा था। ऐसा हुआ भी। विधानसभा चुनाव में जीत के साथ कांग्रेस को फिर सŸाा भोगने का सुख मिल ही गया। राजस्थान में कांग्रेस चुनाव जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और 99 सीटों पर कब्जा किया।
दरअसल, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की कार्यशैली पहले से ही सवालों के घेरे में थी। मुख्यमंत्री और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच एक खाई थी जो पट नहीं पा रही थी। इसकी शिकायत कई बार केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंची थी। उसके बाद ही अमित शाह ने पिछले साल अगस्त में पश्चिमी उŸार प्रदेश में तैनात संगठन मंत्री चंद्रशेखर को राजस्थान में संगठन महामंत्री बनाकर भेजा था। अमित शाह के निर्देश पर चंद्रशेखर ने संगठन को मजबूत करने और कार्यकर्ताओं की नाराजगी को काफी हद तक कम करने का काम किया लेकिन वसुंधरा राजे से नाराजगी के बावजूद पार्टी ने विधानसभा चुनावों के लिए उन्हें ही चेहरा बनाया। नतीजा ये हुआ कि जनता ने उन्हें स्वीकार्य नहीं किया।
विकास के नाम पर चुनावी मैदान में उतरीं वसुंधरा सरकार के 20 दिग्गज मंत्री ढेर हो गए। विधानसभा चुनाव परिणाम के मुताबिक, बीजेपी कम से कम छह जिलों में खाता भी नहीं खोल पाई तथा कई सीटों पर मत प्रतिशत भी कम हुआ हैं। पिछले चुनाव में बीजेपी ने लोकसभा की सभी पच्चीस सीटों पर जीत हासिल की थी लेकिन अगले साल शायद ही यह प्रदर्शन दोहरा पाए। विधानसभा चुनाव में भाजपा 163 से 73 सीटों पर सिमट कर रह गई। वसुंधरा राजे ने अपने पूरे 5 साल राजशाही अंदाज में सŸाा पर राज किया। चुनाव नजदीक आते ही सरकार की ओर से ताबड़तोड़ घोषणाएं की गईं। लोकार्पण और शिलान्यास की बाढ़ आ गई। सरकार को लग रहा था कि उनकी फ्लैगशिप योजनाएं उनकी नैया पार लगा देगी लेकिन नैया तो कांग्रेस की आंधी में डूब गई। ये सभी योजनाएं और फैसले भी सरकार की वापसी नहीं करा सकें। भाजपा फिर से का ख्याब अधूरा ही रह गया। भाजपा ने जिस विकास के फार्मूले से सरकार बनाने का ख्याब देखा था, वह ढह गया। चुनाव में महंगाई, रोजगार व किसानी मुद्दे भावी रहे। प्रदेश की जनता ने भाजपा की नीतियों को सिरे से खारिज कर दिया। भाजपा जनभावनाओं को नहीं समझ पाई और अति आत्मविश्वास में रही। आखिरकार, सरकार की नाकाम नीतियों से भाजपा सŸाा से बाहर हो गई। मतदाताओं ने मन की बात नहीं बल्कि दिल की बात सुनी और कांग्रेस के नेतृत्व को चुना।
विधानसभा चुनाव को भी बीजेपी के साथ कांग्रेस ने भी सेमीफाइनल मानते हुए केंद्र सरकार के मुद्दों को उछाला था तथा विधानसभा चुनाव नतीजों को भी इसके मद्ेदनजर आंका जा रहा हैं। विधानसभा चुनाव के ये नतीजे सिर्फ मुख्यमंत्री वसुंधरा के प्रति नाराजगी ही नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी संकेत देते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने चुनाव प्रचार को मोदी पर केंद्रित रखा तथा प्रदेश के नेताओं ने भी उसका पीछा किया। हिंदुत्व के मुद्दे पर भी बीजेपी को घेरने का प्रयास किया तथा आगामी लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे के प्रति भाजपा के रवैये पर सवाल खड़ा कर दिया। कांग्रेस ने बीजेपी की हिंदुवादी नीति की परवाह नहीं करते हुए चैदह मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारेतथा सात को सफलता मिली। पश्चिम राजस्थान में भाजपा का हिंदुवादी चेहरा बुरी तरह पिटा तथा पोकरण में कांग्रेस के शाले मोहम्मद को जीत मिली। राफेल खरीद में घोटाले के कांग्रेस के आरोप भले ही खास असर नहीं दिखा पाए लेकिन यह मुद्दा अगले लोकसभा चुनाव में भी रहने की संभावना हैं।
बहरहाल, कांग्रेस को प्रदेश में सरकार बनाने पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा तथा उसमें खास सफलता नहीं मिली तो लोकसभा चुनाव में यह भी एक मुद्दा बन सकता हैं। सबसे बड़ा मुद्दा किसानों के कर्ज को सरकार बनने के दस दिन में माफ करने के वायदे का हैं। इसी तरह रोजगार और अर्थव्यवस्था के मुद्दे भी कांग्रेस से रू-ब-रू होंगे।

(लेखक विविधा फीचर्स के संपादक हैं)
(संपर्क- 335, महावीर नगर, सेकंड, महारानी फार्म, दुर्गापुरा, जयपुर-302018 मोबाइल-9829165513)

error: Content is protected !!