नेहरू जी को तमाम चीज़ों के लिए गुनेहगार नहीं ठहराया जा सकता

सत्य किशोर सक्सेना
काफ़ी समय से ही भाजपा के नेताओं की अभिव्यक्ति को सुनकर मेरे मन को यह व्यवस्था हो रही कि हर बात बात पर इस घटना को लेकर अथवा अन्य की बात पर जवाहर-लाल नेहरू जी का नाम लिया जा रहा है परंतु जवाहर-लाल नेहरू जी को तमाम चीज़ों के लिए गुनेहगार नहीं ठहराया जा सकता है ग़नीमत है कि भारत में जल संकट या बिहार में चमकी बुखार सेमौतों के बारे में जवाहर-लाल नेहरू जी का नाम नहीं लिया जा रहा। अब जवाहर-लाल नेहरू जी स्वयं तो नहीं आ पाएंगे ,ऐसी स्थिति में है मेरी दरख्वास्त है कि शांतिवन में नेहरू जी के जो अस्थि अवशेष रखे हैं उनको लाइए और नेहरू जी के पक्ष में या विपक्ष में लोग अपने तर्क प्रस्तुत करें।जवाहर-लाल नेहरू मात्र कांग्रेस के नहीं थे ।गत चुनावों में भाजपा ने कांग्रेस और विपक्ष को हराया था एवं इस चुनाव में भी भाजपा ने कांग्रेस और विपक्ष को हराया है।इस अफ़साने में नेहरूजी कहाँ आ जाते हैं।बात बात पर वे नेहरूजी का नाम लिया जाना कहाँ तक उचित है।गृह मंत्री की का कहना है कि परिस्थितिजन्य परंतु परिस्थिति का जन्म कैसे हुआ।मैं मानता हूँ कि कश्मीर एक कोमपलीकेटेड एनटींटी थी।इतिहास भी एक कमाल की चीज है इतिहास एक धारा है ,इतिहास लेखन की एक पवृति होती है,एक आर्ट है जिसको हिसटरियोगा्राफी कहते हैं जिसके बारे में अनेकों स्कूल ऑफ़ थोटस हैं जिसमें एक स्कूल ऑफ़ थॉट हैं जिसमें काउंटर कल्पना की जाती है अर्थात सिकंदर के आक्रमण के समय पोरस नहीं हारा होता तो,मोहम्मद गौरी से पृथ्वीराज चौहान नहीं हारा होता तो क्या होता या ऐसा होता।यह कल्पना करना इतिहासकार को अच्छा लगता है लेकिन राजनीतिज्ञों को नहीं।नेहरू कांग्रेस के ही नहीं थे,अर्थात नेहरूजी ,गाँधीजी ,आज़ाद ,अंबेडकर ,पटेल ,सुभाष चंद्र बोस भारत की विरासत है।भारत बँटवारे के समय कौन सहमत हुआ और कौन नहीं ये महत्वपूर्ण नहीं है।सरदार पटेल ने नेहरू मेकिंग ऑफ़ इंडिया में भारत विभाजन का उल्लेख किया है।लेकिन वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी ने तय कर लिया है कि नेहरू पर गूगल करों कोई अच्छी चीज़ नहीं मिलेगी।मेरा मत है कि कश्मीर को लेकर बहस संजीदगी के साथ होनी चाहिए।आपको ही तय करना चाहिए कि आप कश्मीर की territory चाहते हैं या people with territory चाहते हैं क्यों की कशमीर की जगह को लेकर क्या करेंगे अगर ज़िंदा इंसान ना हो।प्यारे लाल जी ने एक पुस्तक लिखी है गांधी पर ,जिसमें ये उल्लेख किया गया है कि 16 जनवरी 1948 को जब पटेल काठियावाड़ जा रहे थे तो उनके द्वारा नेहरू जी के विषय में गांधीजी को लिखा था कि मैं बहुत पीड़ा में हूँ और काम का बोझ भी ज़्यादा है परंतु जवाहर पर बोझ मुझसे ज़्यादा है इसलिए जवाहर का ध्यान रखना। इतने वर्षों के बाद ,नेहरू और पटेल के संबंधों को लेकर काल्पनिक बात कहना कि दोनों में मनमुटाव था या एक दूसरे को मिटाने की बात की जा रही थी तो यह बहुत ग़लत है क्योंकि हर राजनैतिक दल और कार्यकर्ताओं मे मतभेद होना स्वाभाविक है।पटेल एक अच्छे संगठनकर्ता थे और नेहरू की लोकप्रियता बहुत अधिक थी।हम सब लोग जो नेहरू जी के बारे में टिप्पणी कर रहे हैं बहुत ही बौने हैं जबकि उस समय के राजनेता बौने नहीं थे।नवम्बर48 में बापू की मौत के लगभग दस माह बाद पटेल ने गांधीजी को लिखा और सार्वजनिक रूप से भी अपने भाषणों में कहा कि गांधीजी की नेहरू की पसंद ठीक थी और देश हित में थी ।इस बात के क़ायल पटेल जी थे। दस जुलाई 1948 को कश्मीर के शेख़ अब्दुल्ला जी ने भी नेहरूजी को लिखे पत्र में लिखा था कि कश्मीर का विलय भारत के साथ इस बात को देखते हुए किया गया था कि हमें देश के दो नेताओं नेहरू और पटेल जी से बहुत आशाएँ रही जो देश के सितारे थे।सभी राजनीतिक दलों विशेषकर भाजपा के नेताओं से मेरा विशेष अनुरोध है कि हर बात बात पर अथवा देश की प्रगति व घटनाक्रम को लेकर नेहरू जी पर टीका टिप्पणी न करें और उनके नाम को नहीं घसीटे क्योंकि आज भी नेहरूजी की बराबरी कोई राजनेता नहीं कर सकता है।

सत्य किशोर सक्सेना एडवोकेट
पूर्व जिला प्रमुख अजमेर
टेलीफ़ोन 9414003192

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