सब सरकारें मिलकर क्यों नहीं निपटती प्रदूषण से

ओम माथुर
आखिरी सुप्रीम कोर्ट ने वही बात कही, जिसे हर व्यक्ति समझ रहा था । सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि दिल्ली में प्रदूषण रोकने के लिए सरकारें काम नहीं कर रही, बल्कि एक-दूसरे पर आरोप लगा रही है ऐसी कड़वी सच्चाई है,जिससे हर आदमी जानता और समझता है ।
सवाल ये है कि जब सभी सरकारों का मकसद जन कल्याणकारी नीतियां लागू करना और लोगों को राहत देना है, तो फिर दिल्ली में प्रदूषण के नाम पर सरकारें आपस में भिड़ी हुई क्यों है ? जाहिर है वोट बैंक की राजनीति लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने में भी नहीं चूक रही है। दिल्ली में अगले साल चुनाव है और भाजपा नहीं चाहती कि आम आदमी पार्टी वापस सत्ता में लौटे,इसलिए वह अरविंद केजरीवाल को इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराने की हर कोशिश कर रही है । तो केजरीवाल भी केंद्र सरकार के साथ ही भाजपा की हरियाणा सरकार पर दिल्ली के प्रदूषण का यह कहकर ठीकरा फोड़ रहे हैं कि वहां जलाई जा पलारी के धुएं से दिल्ली का दम घुट रहा है । पंजाब में भी कांग्रेस की सरकार है,इसलिए वह भी केजरीवाल के निशाने पर है। क्योंकि पंजाब में पिछला विधानसभा चुनाव आप ने बुरी तरह हारा था ।
उधर, केजरीवाल है जिन्हें हर साल दिवाली के बाद दिल्ली का प्रदूषण याद आता है। और वह जमीनी प्रयासों से ज्यादा विज्ञापनी प्रयास शुरू कर देते हैं। आड-ईवन फार्मूला भी उनका हथियार है। लेकिन फिर भी केजरीवाल कुछ तो कर रहे हैं, केंद्र सरकार और हरियाणा की भाजपा और व पंजाब की कांग्रेस सरकार तो इस दिशा में कोई कदम ही नहीं उठा रही है। शायद ऑड ईवन का लाभ केजरीवाल को नहीं मिल जाए,इसलिए भाजपा नेता विजय गोयल इवन नंबर की गाड़ी लेकर निकले और नियम तोड़ते हुए चालान कटवा कर इसका विरोध दर्ज कराया । कानून बनाने वाले अगर इस तरह खुलेआम उसका उल्लंघन करेंगे तो जवाबदेह कौन होगा? पलारी जलाना कानूनन अपराध है,लेकिन दोनों राज्यों में एक भी किसान पर कार्यवाही अब तक नहीं की गई है । भाजपा केजरीवाल पर ये आरोप तो लगा रही है कि वह प्रदूषण की आड़ में दिल्ली में अगले साल चुनावों को देखते हुए 15 सौ करोड़ पर विज्ञापन पर खर्च कर रहे हैं। लेकिन क्या उसके पास इस बात का जवाब है कि उसने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की योजनाओं के प्रचार के लिए करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाएं हैं।
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि केंद्र सरकार और दिल्ली, हरियाणा तथा पंजाब की सरकारें मिलकर दिल्ली के लोगों को प्रदूषण से बचाने के लिए साझा प्रयास करें और इसमें आर्थिक संकट आडे नहीं आने दें। जब तीनों को ही मतदाताओं ने अपने वोट देकर चुना है,तो फिर वह उन्हीं मतदाताओं से किस बात की दुश्मनी निकाल रहे हैं? क्या भाजपा को वोट देने वाला कांग्रेस का और कांग्रेस को वोट देने वाला आम आदमी पार्टी का दुश्मन हो गया? क्या राजनीति का स्तर अब यही रह गया है कि वह आम आदमी की जान से खिलवाड़ करने में भी शर्म महसूस नहीं करें। अब तो दिल्ली के प्रदूषण की छाया अपने राजस्थान के जयपुर और अजमेर तक में दिखने लगी है। जनहितकारी, कल्याणकारी और पारदर्शी शासन का दावा लगभग हर सरकार करती है, लेकिन क्या वह इस पर अमल भी करती है?

ओम माथुर-/9351415379

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