*कहीं भ्रष्टों की भेंट ना चढ़ जाए विशेष पैकेज*

-सारा पैसा वांछितों, जरूरतमंदों तक पहुंचे और जिस मद व मकसद के लिए प्रावधान किया गया है, उसी पर खर्च हो
-यदि भ्रष्टाचारी एक पैसा भी डकारने की कोशिश करे तो उसकी हलक में से निकाल लिया जाए

प्रेम आनंदकर
👉प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 12 मई की रात राष्ट्र के नाम संबोधन में की गई 20 लाख करोड़ रुपए के विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा सुनते ही भ्रष्टों की बांछें खिल गई होंगी। रोम-रोम फड़क उठा होगा। मुंह से लार टपकने लग गई होगी और अपने घर की तिजोरी भरने के ख्वाब पलने लगे होंगे। मोदी के मन में गरीबों, दीन-हीन और दुखियों के लिए दर्द है। वे गरीबों की पीड़ा को समझते हैं। किसान, मजदूर का दर्द पहचानते हैं। कोरोना के कारण करीब दो महीने से चल रहे लॉकडाउन में मुफलिसी के दौर से गुजर रहे लोगों की पीड़ा को देखते हुए मोदी ने अपने संबोधन में विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। मुझे दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी के भाषण के वह अंश अब भी याद हैं, जब उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार से भेजा गया एक रुपया वास्तविक लाभार्थी यानी जरूरतमंद तक पहुंचते-पहुंचते 15 पैसे रह जाता है। भले ही समय, काल, परिस्थिति, सत्ता बदल गई है लेकिन भ्रष्टों की सोच और हरकत अब भी वैसी ही है, जैसी पहले थी। भ्रष्टाचार सरकारी कारिंदों के रग-रग में समा गया है। कुछ प्रतिशत कारिंदे ना केवल ईमानदार होते हैं, बल्कि दुखी व परेशान लोगों की मदद भी करते हैं। किसी काम से आने वाले लोगों को पूरा सम्मान देते हैं और काम भी बिना किसी रुकावट के कर देते हैं। लेकिन भ्रष्टों का कोई ईमान-धर्म नहीं होता। रिश्वतखोर और भ्रष्टाचारी तो ऐसे भी होते हैं, जो कफ़न तक में भी अपना कमीशन नहीं छोड़ते। इसमें कोई शक नहीं है कि मोदी ने कोरोना के कारण लॉकडाउन के चलते मुसीबत से घिरे मजदूर-किसान और मजबूरों को सहारा देने, उन्हें मुसीबत से उबारने और देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। अब सरकार को यह पुख्ता व्यवस्था भी लगे हाथ कर देनी चाहिए कि 20 लाख करोड़ रुपए में से 20 पैसे तो क्या कोई भी अधिकारी-कर्मचारी दो पैसे भी नहीं खा पाए। एक-एक पैसा जरूरतमंदों पर खर्च हो। यदि कोई भ्रष्ट अधिकारी या कर्मचारी एक पैसा भी डकारने की हिमाकत करे तो उसके हलक में से वो पैसा निकाल कर उसे हमेशा-हमेशा के लिए घर बैठा दिया जाए। जांच के नाम पर लीपापोती की कोई गुंजाइश भी नहीं रखी जाए। ताकि उन्हें भी यह पता चल सके कि किसी के दर्द का अहसास कैसा होता है।

-प्रेम आनन्दकर, अजमेर, राजस्थान।

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