*आजाद भारत में छुआछूत का दंश, यह कैसी आजादी है?*

-आजादी के 75 साल बाद भी देश में व्याप्त है छुआछूत
-आखिर क्या कसूर था 8 साल के इस मासूम का
-उस बेचारे को क्या पता छुआछूत किसे कहते हैं
-क्या केंद्र व राजस्थान सरकार छुआछूत खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाएगी
-भाजपा व कांग्रेस नेताओं के मुंह पर ताले, आखिर क्यों?

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉जालौर जिले में सायला क्षेत्र के सुराणा स्थित सरस्वती विद्यालय के तीसरी कक्षा के 8 वर्षीय छात्र इंद्र कुमार पुत्र देवाराम मेघवाल को उसी स्कूल के हैडमास्टर छैलसिंह ने महज इसलिए पीट-पीट कर अधमरा कर दिया था, क्योंकि इंद्र ने उसकी मटकी से पानी पी लिया था। करीब 23 दिन जिंदगी-मौत से जूझते हुए इंद्र ने 13 अगस्त को दम तोड़ दिया। हम भले ही आजादी का जश्न मनाएं या फिर आजादी का अमृत महोत्सव या निकालें आजादी की गौरव यात्रा। इन हालात को देखते हैं तो लगता है कि आजादी के कोई मायने नहीं हैं। सच पूछो तो हम आज भी गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए हैं। छुआछूत, ऊंच-नीच, दलित-सवर्ण का भेद आज तक खत्म नहीं हो पाया है। आज भी गाहे-बगाहे दलितों के साथ अत्याचार, शोषण, अपमान, तिरस्कार, जलालत और अन्याय होने की घटनाएं दिखाई-सुनाई देती हैं। आज भी अनेक ऐसे गांव-ढाणी हैं, जहां समाज के कतिपय ठेकेदार दलित दूल्हों की बारात या निकासी या बिंदौरी घोड़ी पर नहीं निकालने देते हैं। पुलिस के पहरे या साये में बारात निकाली जाती है। दलित-सवर्ण का भेदभाव और छुआछूत की भावना मिटाने के लिए ही संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कानून में प्रावधान किए थे, लेकिन जालौर की इस घटना से यह साबित होता है कि केंद्र व राज्य सरकारों ने ना तो इन प्रावधानों को सख्ती से लागू किया और ना ही दलित-सवर्ण की खाई पाटने के लिए कोई ठोस कदम उठाए। बालक इंद्र की मौत ने फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या हम वाकई में आजाद हो गए हैं। क्या हम अब खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं। क्या दलित सुकून की जिंदगी जी पा रहे हैं। क्या केंद्र और राज्य सरकारों ने कभी यह पता करने के प्रयास किए कि दलितों पर कहीं अत्याचार तो नहीं हो रहे हैं। केंद्र सरकार, राजस्थान सरकार, कानून के रखवालों और छुआछूत मिटाने की जिम्मेदारी का टोकरा सिर पर उठाए जिला व पुलिस प्रशासन के हुक्मरानों से सीधा सा एक सवाल है, आखिर इस बालक का क्या कसूर था। यदि छुआछूत संबंधी कानून की सख्ती से पालना की होती, तो शायद इंद्र के साथ इतनी अधिक हैवानियत नहीं होती। इंद्र को बुरी तरह पीटने वाले मास्टर ने तो हैवानियत की सारी हदें पार कर दीं। हालांकि पुलिस ने उस हैडमास्टर को गिरफ्तार कर लिया है और कानून उसे सजा भी देगा, लेकिन क्या कानून और सरकार उन माता-पिता को उनका लाल लौटा पाएगा, जिन्होंने उसे पालने में ना जाने कितने सपने संजोए होंगे। क्या हैडमास्टर की मटकी से पानी पीना जुर्म होता है? क्या वह मटकी अछूत हो गई थी।

प्रेम आनंदकर
आखिर कब तक दलित-सवर्ण की मानसिकता इस देश, प्रदेश और समाज में हावी रहेगी। भले ही पुलिस अपना काम करेगी। कानून अपना काम करेगा। सरकार अपना फर्ज निभाएगी। लेकिन यह सवाल हमेशा की तरह अनुत्तरित ही रहेगा कि आखिर ऐसा कब तक चलेगा? एक बात और, छोटे-छोटे मसलों पर गला फाड़-फाड़ कर चीखने-चिल्लाने वाले छपासी नेताओं के मुंह पर भी ताले लटक गए हैं। इस मामले में भाजपा व कांग्रेस नेताओं के बयान नहीं आए हैं। आखिर क्यों? हां, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने संवेदनशीलता दिखाते हुए तत्काल कदम उठाए हैं। सरकार को अब इस मामले में मजबूती से कोर्ट में अभियोजन पक्ष रखवाना चाहिए, जिससे आरोपी हैडमास्टर को कड़ी से कड़ी सजा मिले, ताकि भविष्य में कोई भी ऐसी घृणित हरकत नहीं कर सके। केंद्र और राज्य सरकार को देश-प्रदेश से दीमक की तरह समाज को खा रही छुआछूत जैसी सामाजिक बुराई को जड़ से खत्म करने के जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने चाहिए।

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