*लोकतंत्र में आईएएस अफसर बड़े हैं या जनता*

क्या इन सवालों के जवाब किसी के पास हैं। यदि जवाब हों तो जरूर बताइए, ताकि आमजन का ज्ञानवर्द्धन हो सके, क्योंकि जनता की कोई सुनवाई नहीं होती। कितनी ही आरटीआई लगाओ, गोलमाल जवाब देकर इस कानून को भी धत्ता बता देते हैं। आखिर जनता जाए तो कहां जाए।

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
वैसे तो व्यवहार ही बता देता है, किस व्यक्ति के संस्कार कैसे हैं। चांदी के चम्मच से शहद चटाया गया था या अंगुली से। यह तय है कि जिस व्यक्ति ने कभी धूप की तपन, लू के थपेड़े, कड़ाके की ठंड और बरसात के पानी की मार नहीं झेली हो, उसे कभी भी आमजन की पीड़ा का अहसास नहीं हो सकता है। ऐसे लोगों व अफसरों के लिए यह उक्ति सही चरितार्थ होती है, *”जाकी ना फटी पैर बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई।”* यानी जिस व्यक्ति ने कभी दुख नहीं देखा हो, भूख का कभी अहसास ही नहीं किया हो, उसे क्या पता कि दुख और भूख क्या होती है। डॉ. समित शर्मा जैसे सरल व्यक्तित्व वाले आईएएस अफसर गिने-चुने ही हैं, जो आमजन की पीड़ा समझते हैं। कहते हैं कि लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है, लेकिन पिछले 5-7 साल में आई खेप के कतिपय आईएएस अफसरों की कार्यशैली देख कर यह सब भ्रम लगता है। आखिर क्यों? इन सब बातों और जनता की पीड़ा को समेटे हुए यह हैं सवाल

प्रेम आनंदकर
1-क्या आईएएस अफसरों को ट्रेनिंग में जनता, जनप्रतिनिधियों और अपने मातहतों की बेइज्जती करना सिखाया जाता है।
2-क्या इनको यह सिखाया जाता है कि आईएएस बनकर अफसरी का रौब दिखाना चाहिए।
3-क्या इनको यह बताया व समझाया जाता है कि केवल हिटलरशाही दिखाओ, ना जनता की सुनो, ना जनप्रतिनिधियों की परवाह करो, ना अपने मातहतों की कोई बात सुनो, ना मानो।
4-क्या इनको यह पाठ पढ़ाया जाता है कि केवल तुम ही सरकार हो, तुम्हारे ऊपर कोई नहीं है।
5-क्या इन आईएएस अफसरों को यह घुट्टी पिलाई जाती है कि तुम जनप्रतिनिधियों से भी ऊपर हो, तुम्हारे लिए मंत्री, सांसद, विधायक की कोई अहमियत नहीं है।
6-क्या इनको यह ज्ञान दिया जाता है कि आईएएस अफसर होने के नाते कभी भी अपने से बड़ों का सीट से खड़े होकर और हाथ जोड़कर सम्मान व अभिवादन नहीं करना चाहिए। यदि ऐसा करोगे, तो तुम्हारी इज्जत व अहमियत कम हो जाएगी
7-क्या इनको यह गुरु ज्ञान दिया जाता है कि अपने माता, पिता, दादा, दादी की उम्र वाले मातहतों से अबे-तबे से बात की जाए।
8-क्या इनको यह समझाया जाता है कि अपने मातहत कोई अधिकारी या कर्मचारी चाहे उम्र में बड़ा हो और अनुभवी हो, तो भी उसकी बात नहीं माननी चाहिए, बल्कि खुद गलत होते हुए भी अपनी ही बात थोपनी चाहिए।
9-क्या इन अफसरों को अपनी मनमानी करने की पूरी तरह छूट होती है।
10-क्या सारे कानून, संविधान, नियम इनके पक्ष के ही होते हैं। क्या केवल यह अफसर जनता या जनप्रतिनिधियों द्वारा कुछ कहने पर डंडे के बल पर आवाज दबाने का अधिकार रखते हैं।
11-क्या इन अफसरों को ही अपने मातहतों को सस्पेंड करने, चार्जशीट, नोटिस देने जनता को जलील करने, लताड़ने और दुत्कारने का अधिकार है।
12-क्या इन अफसरों को सरकार कभी सस्पेंड नहीं कर सकती है, नोटिस व चार्जशीट नहीं दे सकती है।
13-क्या सरकार कतिपय बदमिजाज अफसरों को सीधे जनता से जुड़े विभागों की बजाय ऐसे विभागों में नहीं लगा सकती, जिनमें जनता का जल्दी से कोई काम नहीं पड़ता है या जिनमें जनता जाती ही नहीं है।
14-क्या ऐसे अफसरों को जिला कलेक्टर, नगर निगम व विकास प्राधिकरण का कमिश्नर बनाना जरूरी है।
15-क्या सरकार के पास ऐसे अफसरों की कमी है, जो सदाशयी हों, जिनके दिल में मानवता हो, इंसानियत हो, जो जनता का दर्द समझते हों, जनता की बात तसल्ली से सुनकर उनकी समस्याओं का समाधान और जनप्रतिनिधियों का सम्मान कर सकते हों। सरकार ऐसे अच्छे अफसरों को चिह्नित कर जनता से जुड़े विभागों में क्यों नहीं लगाती है।
*वक्त ने एक से बढ़ कर एक शहंशाह देखे हैं।*
*सब के सब ने मिट्टी की बांहों में पनाह ली है।*

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