कांग्रेस मुक्त भारत बनाम कांग्रेस युक्त भाजपा

-धीरे-धीरे कांग्रेसियों का कुनबा बनती जा रही है भाजपा
-कांग्रेस से वैचारिक मतभेद होने के बावजूद कांग्रेसियों को गले लगा रही है
-खुद को कैडरबेस पार्टी बताने वाली भाजपा में अब कहां गया कैडर

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉जी हां, यह बिल्कुल सही और खरी-खरी बात है। जिस तरह आए दिन अपने विरोधी दलों से आ रहे नेताओं को भाजपा गले लगा रही है, उससे यही सवाल पैदा होता है कि देश को “कांग्रेस मुक्त” करने का नारा देने वाली भाजपा कहीं खुद ही “कांग्रेसयुक्त” तो नहीं बनती जा रही है। कहीं भाजपा कांग्रेसियों का “कुनबा” तो नहीं बन रही है। कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं को भाजपा बड़े आदर-सत्कार के साथ अपने बेड़े में शामिल कर रही है। यह साबित करने के लिए ज्यादा नहीं, एक-दो उदाहरण ही काफी हैं। जिंदगी के कई साल तक कांग्रेस को समर्पित करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जब कांग्रेस छोड़ी तो भाजपा ने ना केवल गले लगाया, बल्कि सिर-आंखों पर बैठाते हुए केंद्रीय मंत्री के रूप में ताजपोशी भी कर दी। पंजाब में कद्दावर नेता सुनील जाखड़ ने कांग्रेस का “हाथ” छिटकाया तो भाजपा ने तुरंत उनके हाथ में “कमल” थमा दिया। अब पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को भाजपा ने अपने पाले में मिला लिया है।

प्रेम आनंदकर
यह बात अभी तक समझ से परे है कि वैचारिक मतभेद होने के नाते कांग्रेस को आए दिन पानी पी-पीकर कोसने वाली भाजपा कांग्रेसियों को गले क्यों लगा रही है। क्या जिस कांग्रेस को भला-बुरा कहा जाता है, उसे छोड़ कर आने वाले नेता इतने “दूध के धुले” हो जाते हैं कि उनको अपने साथ लेने में भाजपा को कोई गुरेज नहीं होता है। अब सवाल यह भी है, खुद को कैडरबेस पार्टी बताने का ढिंढोरा पीटने वाली भाजपा में अब कैडर किधर गया। क्या भाजपा ने “सत्ता की भूख” के चक्कर में अपने ही कैडरबेस के सिद्धांत को तिलांजलि दे दी है। क्या बरसों से पार्टी के लिए जी-जान से काम करने वाले भाजपा के पुराने नेताओं-कार्यकर्ताओं को यह बात नहीं अखरेगी कि उनकी सेवा व निष्ठा को दरकिनार करते हुए कल-परसों दूसरे दलों से आए या आने वाले नेताओं को सम्मान दिया जा रहा है। हकीकत बात तो यह है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के रहने तक भाजपा कैडरबेस पार्टी रही, लेकिन उनके बाद भाजपा में कैडर नाम की कोई बात ही नहीं रह गई है। अभी तो भाजपा दूसरे दलों से आने वाले नेताओं को जोश के साथ अपने साथ जोड़ रही है, मंत्री, विधायक, सांसद भी बना रही है। कहीं ऐसा ना होने लग जाए, जब स्थानीय स्तर पर कांग्रेस को छोड़ कर आने वाले नेता को भाजपा का देहात या शहर जिला अध्यक्ष बनाया जाने लगे। इसलिए अब भाजपा को “कांग्रेस मुक्त भारत” का नारा बदल कर “कांग्रेस युक्त भाजपा” का नारा बुलंद करना चाहिए। खैर, जो भी हो, लेकिन इस सच्चाई को स्वीकार करने से अब मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि सिद्धांतवादी पार्टी होने की दुहाई देने वाली भाजपा ने “सिद्धांत” को “छांज” पर रख दिया है और वह सत्ता की मलाई खाने के लिए अपने सिद्धांतों के विपरीत जाकर कुछ भी कर सकती है। भाजपा का दुपट्टा अपने गले में पहनने वाले कांग्रेसी कितने दिन टिक पाते हैं और भाजपा उन्हें कितने दिन तक झेल पाती है, क्या खुद भाजपाई कांग्रेस से आ रहे या आने वाले नेताओं को दी जाने वाली “इज्जत” को अपने गले उतार पाएंगे, यह कहना फिलहाल मुश्किल है।

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