राजस्थान में मध्यावधि चुनाव या सत्ता परिवर्तन?

-जिस तरह से कांग्रेस में राजनीतिक घटनाक्रम चल रहा है, उसे देखते हुए लगता है कि अब कुछ भी हो सकता है

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉राजस्थान में जिस तरह से कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है और सियासी घटनाक्रम चल रहे हैं, उसे देखते हुए अब दो-तीन आशंकाएं बल खाती हुई नजर आ रही हैं। चाहे अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने रहें या सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनें, दोनों ही एक-दूसरे को ढंग से सरकार नहीं चलाने देंगे। वैसे भी अभी “रायता” इतना ज्यादा फैल चुका है कि अब सुलह की फिलहाल कोई गुंजाइश नजर नहीं आती है। जिस तरह करीब दो साल पहले पायलट की सियासी चाल के कारण गहलोत सरकार जाते-जाते बची थी, उसी तरह की स्थिति अब बन गई है। लेकिन तब उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से “पत्ता साफ” होने के बाद भी पायलट पार्टी में बने रहे। अब चूंकि गहलोत के कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की संभावना को देखते हुए यह माना जा रहा था कि पार्टी द्वारा उदयपुर में पारित प्रस्ताव “एक व्यक्ति-एक पद” का पालन किया जाता है, तो गहलोत को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ सकता है। लेकिन गहलोत इसके लिए तैयार नहीं हैं। गहलोत चाहते हैं कि वे पार्टी अध्यक्ष के साथ-साथ मुख्यमंत्री भी बने रहें। चूंकि पायलट द्वारा दो साल पहले सरकार गिराने के लिए किए गए प्रयासों को गहलोत भूले नहीं हैं, इसलिए वे यह कतई नहीं चाहेंगे कि पायलट मुख्यमंत्री बनें। पिछली बार जब पायलट खेमे ने धड़ेबंदी की थी, तो उसका खामियाजा उन्होंने भुगता था। अब गहलोत खेमे ने अलग बैठक कर धड़ेबंदी की, तो आलाकमान खासा नाराज हो गए। आलाकमान ने इसे अनुशासनहीनता माना है। ऐसे में गहलोत के हाथ से कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद भी जाने के आसार नजर आने लगे हैं।

प्रेम आनंदकर
अगर ऐसा होता है, तो यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि इससे गहलोत की साख व लोकप्रियता में कमी आ सकती है। लेकिन फिलहाल कुछ भी नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि राजनीति में पल-पल में समीकरण बनते-बिगड़ते रहते हैं। अब चाहे जो भी हो, मौजूदा हालात इसी तरह चलते रहे, तो कोई बड़ी बात नहीं है कि या तो सत्ता परिवर्तन हो जाए या फिर मध्यावधि चुनाव। यदि अब इन कटुता भरे माहौल में गहलोत मुख्यमंत्री बने रहते हैं, तो यह आशंका बनी रहेगी कि पायलट व उनके खेमे के विधायक कांग्रेस से इस्तीफा दे दें और फिर भाजपा के सहयोग से सरकार बनाएं या फिर पायलट व उनके समर्थक विधायक विधानसभा की सदस्यता से ही इस्तीफा दे दें। यदि ऐसा होता है तो भी सरकार के अल्पमत में आने की आशंका बन सकती है। यही स्थिति पायलट को मुख्यमंत्री बनाने पर आ सकती है। यदि आलाकमान पायलट को सत्ता की चाबी सौंपते हैं, तो हो सकता है कि गहलोत व उनके समर्थक विधायक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दें। ऐसे में पायलट लंबे समय तक सरकार नहीं चला सकते हैं। सियासी घटनाक्रम के बीच यह भी हो सकता है कि गहलोत इस्तीफा देने के साथ ही विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दें। मौजूदा हालात को देखते हुए केंद्र सरकार द्वारा राज्यपाल से रिपोर्ट मांग कर राष्ट्रपति शासन लागू करने की आशंका-संभावना भी बन सकती है। कुल मिलाकर वर्तमान में जो सियासी घटनाक्रम चल रहा है, उसे देखते हुए यह कहा और माना जा सकता है कि कभी भी कुछ भी हो सकता है। यहां सारा खेल व्यक्ति निष्ठा और व्यक्तिगत राजनीतिक स्वार्थों का है। कांग्रेस के विधायकों को पार्टी के हित-अहित से कोई सरोकार नहीं है। यदि सरोकार होता, तो यह सियासी ड्रामा नहीं चल रहा होता। इसलिए सियासी घटनाक्रम को देखते रहिए। “छुरी खरबूजे पर गिरे या खरबूजा छुरी पर”, कटना खरबूजे को ही है। चाहे जो भी हो, नुकसान तो कांग्रेस को ही होना है।

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