हिंदी के प्रति हम गंभीर क्यों नहीं?

tejwani girdhar
कहने को तो हम हिंदी को अपनी मातृभाशा मानते हैं। इसके प्रति बहुत सम्मान प्रदर्षित करते हैं। मगर सच ये है कि हिंदी में बोलने में षर्म महसूस करते है। खुद को पढा लिखा जताने के लिए हिंदी में बीच बीच में अंग्रेजी षब्दों का प्रयोग जानबूझ कर करते हैं। अफसोसनाक बात ये है कि अधिसंख्य लोगों को षुद्ध हिंदी नहीं आती। संस्कृतनिश्ठ षब्दों की बात छोड दीजिए, सामान्य षब्दों की भी ठीक से जानकारी नहीं है। विषेश रूप से मात्राओं के बारे में अनभिज्ञता गंभीर है। आप भले ही किसी को समझा दें कि हिंदी जैसी बोली जाती है, जैसी उच्चारी जाती है, वैसी ही लिखी जाती है, मगर लिखते वक्त वह गलती करेगा ही।
असल में इसकी मूल वजह यह है कि स्कूलों में हिंदी न तो ठीक से पढाई जाती है और न ही गंभीरता से सीखी जाती है। इंटेलीजेंट से इंटेलीजेंट बच्चे के हिंदी में सामान्य नंबर आते हैं। उस पर कोई गौर नहीं करता।
आपको ख्याल में होगा कि अंग्रेजी में कई षब्द ऐसे हैं, जिनका उच्चारण तो भिन्न है, मगर लिखते भिन्न तरीके से हैं। जैसे सीयूटी कट और पीयूटी पुट। मुझे तब बहुत कोफ्त होती है, जब बाजार से गुजरते वक्त देखता हूं कि साइन बोर्ड्स पर हिंदी के षब्द अषुद्ध लिखे होते हैं, जबकि अंग्रेजी के षब्द षुद्ध होते हैं। अर्थात हिंदी के प्रति हम गंभीर नहीं हैं। ऐसे में हिंदी के प्रति कोरा सम्मान जाहिर करने, हिंदी दिवस मनाने से कुछ नहीं होने वाला है।

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