भाजपा कांग्रेस से आगे क्यों?

tejwani girdhar
यह सर्वविदित है कि सांगठिनक रूप से भाजपा कांग्रेस से कहीं अधिक मजबूत है। इसके अतिरिक्त भाजपा का मातृ संगठन आरएसएस, आरएसएस के तकरीबन चालीस प्रकल्प और छाया संगठन विहिप व बजरंग दल लगातार बारह महिने सक्रिय रहते हैं। संस्कति से जुड कर तीज त्यौहार व धार्मिक मेलों के भागीदारी निभाते हैं, जबकि कांग्रेस मात्र एक राजनीतिक संगठन है और केवल राजनीतिक काम करती है, विषेश रूप से चुनाव के दौरान सक्रिय होती है। यही वजह है कि भाजपा का आम जन से जुडाव अधिक बना हुआ है, विषेश रूप से हिंदुओं के साथ। हालांकि कांग्रेस के पास आरएसएस षैली का एक संगठन सेवादल है, मगर वह उतना सक्रिय नहीं है, जितना आरएसएस। कांग्रेस हाईकमान ने कई बार सेवादल को सक्रिय करने की बातें तो कही गईं, मगर हुआ कुछ भी नहीं। आप देखिए, गरबा हो या कावड यात्रा, रामलीला हो या गणेष चतुर्दषी, रामदेवरा यात्रा हो या लोक देवताओं के मेले, कथा हो या अनुश्ठान सभी में भाजपा के लोग ही अग्रणी भूमिका निभाते हैं। ऐसा नहीं है कि इन आयोजनों में कांग्रेस के लोग भाग नहीं लेते हैं, मगर इनीषियेटिव लेने के कारण सारी क्रेडिट भाजपा को मिल जाती है। कांग्रेस के लोगों की धर्म में उतनी ही आस्था है, जितनी भाजपाइयों की, मगर नेरेटिव ऐसा बनाया जा चुका है कि कांग्रेस धर्म विमुख है। कांग्रेस को इस छवि से मुक्त होना चाहिए। कांग्रेस ने इस स्थिति पर विचार नहीं किया तो षनैः षनैः सामाजिक सरोकार से उसकी दूरी बढती जाएगी। ऐसे में कांग्रेस को चाहिए कि वह भी अपना सहयोगी संगठन बनाए, जो सामाजिक भागीदारी निभाए। वैसे सच ये भी है कि आजादी के आंदोलन में प्रमुख रूप से भाग लेने और स्वतंत्र होने के बाद विकास कार्यों की लंबी श्रंखला के कारण कांग्रेस की जडें बहुत गहरी हैं। और उसी के दम पर अपेक्षाकत कमजोर संगठन के बाद भी अपना वजूद बनाए हुए है। सांगठनिक रूप से वह भले ही विषेश कार्य न करे, मगर उसकी विचार का वोट उसे मिलता ही है। भाजपा की स्थिति भिन्न है। उसे संगठन पर सतत काम करना होता है। साथ ही मुद्दों का सहारा लेना पडता है।

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