बाबा की नमो नमो के राजनीतिक निहितार्थ

Narendra Modi, Baba Ramdev, Haridwar, Patanjali yogpeeth, saintभाजपा में प्रधानमंत्री पद की रार के बीच गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को देवभूमि हरिद्वार में बाबा रामदेव के ड्रीम प्रोजेक्ट आचार्यकुलम का उद्घाटन किया। इस कार्यक्रम में देश के जाने-माने संतों के अलावा लगभग ५० हजार लोग शामिल थे। देखा जाए तो इस कार्यक्रम में ऐसा कुछ नहीं था जिसे लेकर विवाद की स्थिति उत्पन्न हो किन्तु वर्तमान राजनीतिक परिपेक्ष्य और हनुमान जयंती पर बाबा रामदेव के मोदी को हनुमान बताने पर से ही यह पूरा कार्यक्रम उदघाटन की बजाए सियासी रंगत में रंग गया। एक वो भी वक्त था जब भाजपा-कांग्रेस से लेकर तमाम दलों के नेता बाबा के आश्रम में हाजिरी लगाते थे किन्तु जबसे बाबा ने काले धन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई छेड़ी है, बाबा एक दल विशेष के निशाने पर आ गए हैं। इस दल के कमोबेश सभी बड़े नेताओं ने बाबा से कन्नी काट ली है। वैसे भी बाबा रामदेव के सियासी ‘अनुलोम-विलोम’ का खुमार अब उतरता दिख रहा है। केंद्र सरकार उन पर लगातार शिकंजा कसती जा रही है। जब से बाबा ने कांग्रेस और सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोला है, उनके आर्थिक साम्राज्य के बारे में नए-नए खुलासे होने लगे हैं। बात चाहे बाबा की हो या सरकार की, लगता तो यही है कि नीयत दोनों की खोटी है। फिर चूंकि बाबा की विचारधारा हिंदुत्व और भगवा के करीब है लिहाजा भाजपा और संघ परिवार के आनुवांशिक संगठन बाबा के आंदोलन को यदा-कदा समर्थन देते नज़र आते हैं। हालांकि बाबा द्वारा खुद का राजनीतिक दल बनाकर आगामी लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी उतारने की जिद ने भगवा ब्रिगेड को भी बाबा से दूर कर दिया है किन्तु बाबा हैं कि मोदी को साधने में लगे हैं। उन्हें मोदी में प्रधानमंत्री का अक्स नज़र आने लगा है। मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी पर यूं तो देर-सवेर कोई निर्णय हो ही जाएगा पर बाबा द्वारा मोदी के हरिद्वार निमंत्रण को लेकर कांग्रेस ने जिस तरह की जल्दबाजी एवं त्वरित प्रतिक्रियाएं दी हैं वे निश्चित तौर पर मोदी और बाबा की जुगलबंदी और इससे उपजे भावी गठबंधन की ओर इशारा करती हैं। मोदी के हरिद्वार आगमन पर गुरूवार को उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता धीरेंद्र प्रताप ने मोदी के खिलाफ विवादास्पद नारा देते हुए उन्हें काले झंडे दिखाने का एलान तक कर दिया। हालांकि नजदीक आते निकाय चुनावों में मोदी विरोध से उत्पन्न भावी परिस्थितियों को देखते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य ने हस्तक्षेप कर पार्टी को इस विरोध प्रदर्शन से दूर कर लिया लिहाजा प्रवक्ता जी ने भी अपने कदम परे खींच लिए। फिर मीडिया ने मोदी की हरिद्वार यात्रा को जिस तरह सियासी चाशनी में लपेटा उससे भी राजनीतिक निहितार्थ सामने आने लगे। बहुत दिन नहीं हुए जब बाबा ने खुलकर मोदी को भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद हेतु सबसे काबिल उम्मीदवार बताया था। यहां तक कि उन्होंने भाजपा को जदयू से गठबंधन पर पुनर्विचार करने तक की सलाह दे डाली थी। दरअसल बाबा का मानना है कि देश में उपजी राजनीतिक शून्यता को मोदी का करिश्माई नेतृत्व भरने की कुव्वत रखता है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि मोदी के पक्ष में लामबंदी से बाबा भी अपने सियासी हितों की पूर्ति करते रहेंगे।

सिद्धार्थ शंकर गौतम
सिद्धार्थ शंकर गौतम

चूंकि बाबा रामदेव ने इस कार्यक्रम के माध्यम से मोदी की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को धार देने की कोशिश की है अतः इसके पीछे की राजनीति अब खुलकर सामने आनी चाहिए। इतना तो तय है कि फिलवक्त भाजपा में मोदी जैसी लोकप्रियता वाला कोई नेता नहीं है और राजनीति का थोड़ा बहुत भी ज्ञान रखने वाला यह कह सकता है कि भाजपा की ओर से मोदी को प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट करने से हिंदूवादी वोट बैंक एकजुट होगा जो अयोध्या कांड के बाद से लगातार पार्टी के हाथ से खिसकता रहा है। वहीं बाबा का मोदी के पक्ष में आना भाजपा के लिए इस मायने में लाभकारी साबित हो सकता है कि बाबा अब खुद के राजनीति दल के गठन की बजाए मोदी लहर पर सवार हो सियासी खेल खेलें। इससे भाजपा के वोट बैंक को नुकसान भी नहीं होगा वरना तो बाबा का सियासी दल निश्चित रूप से भाजपा के ही वोट काटता। वैसे बाबा और मोदी की जुगलबंदी को अभी आंकना जल्दबाजी होगा किन्तु इतना तो तय है कि दोनों का एक मंच पर आना जहां भाजपा में अंतर्कलह को धार देगा वहीं कांग्रेस में भी संशय की स्थिति उत्पन्न करेगा। फिर बाबा के अब तक के सियासी सफ़र को देखते हुए कहा जा सकता है कि बाबा मोदी के साथ में खुद का फायदा ज़रूर देख रहे होंगे वरना वे नमो नमो की रट कदापि नहीं लगाते। सरकार भले ही भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चौतरफा घिरी हो किन्तु अन्य राजनीतिक दल भी नैतिकता के आधार पर उसपर उंगली नहीं उठा सकते| कुल मिलाकर पिछले डेढ़ वर्ष से बाबा का राजनीतिक अनुलोम-विलोम समाप्ति की राह पर है और उनके अगले राजनीतिक कदम की घोषणा पर निगाह है| बाबा के पास समर्थन के नाम पर समर्थकों की फ़ौज है तो कई राजनीतिक दलों का समर्थन भी प्राप्त है| ऐसे में यह संभावना प्रबल है कि अब बाबा चुनावी अखाड़े में ही अपनी योग विद्या का पाठ सियासी दलों को पढ़ाएंगे| बाबा की महत्वाकांक्षाओं को कहां विराम मिलेगा यह बहस का विषय हो सकता है, फिलहाल तो जो बाबा चाहते थे वही हुआ है और बाबा खुश हैं। मोदी के बहाने कि सही उन्हें चर्चा में रहने का मौका तो मिल ही गया है।

-सिद्धार्थ शंकर गौतम
प्रवक्ता डॉट कॉम से साभार

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