नेहरू गांधी परिवार हो कि मुलायम सिंह का खानदान, इनसे जुड़े लोग जहां जहां से जनप्रतिनिधित्व करते हैं उन लोकसभा क्षेत्रों को विशिष्ट लोकसभा क्षेत्र का दर्जा दे दिया गया है। राय बरेली, अमेठी, कन्नौज, मैनपुरी ऐसी लोकसभा सीट हो चली हैं जहां से क्रमश: सोनिया गांधी, राहुल गांधी, डिम्पल यादव और मुलायम सिंह यादव जनप्रतिनिधित्व कर रहे हैं। लेकिन जैसे आसार दिख रहे हैं इन खास लोकसभा सीटों में एक नाम और शुमार होने जा रहा है। वह है- सुल्तानपुर। लखनऊ से लेकर सुल्तानपुर तक जिस तरह की राजनीतिक सरगर्मियां हैं उससे एक ओर जहां सुल्तानपुर से वरुण गांधी के चुनाव लड़ने के आसार प्रबल होते जा रहे हैं वहीं अब ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि वरुण गांधी को टक्कर देने के लिए प्रियंका गांधी सुल्तानपुर की सुल्तान बनने के लिए वरुण गांधी को टक्कर दे सकती हैं।
आज भले की सुल्तापुर संसदीय सीट पर कांग्रेस का कब्जा है और दस जनपथ के वफादार संजय सिंह वहां के सांसद हैं लेकिन सच्चाई यह भी है कि 2009 के लोकसभा चुनाव से पूर्व और 1984 के बाद से कांग्रेस यहां कभी जीत हासिल नहीं कर सकी थी। इसका कारण था सुल्तापुरवासियों की गांधी परिवार से नाराजगी। वह सुल्तापुर से नेहरू-गांधी परिवार के किसी सदस्य को चुनाव लड़ता देखना चाहते थे, जब ऐसा नहीं हुआ तो उन्होंने कांग्रेस को वोट ही नहीं दिया। बसपा और भाजपा ने इसका खूब फायदा उठाया और 1994 के बाद हुए लोकसभा चुनावों में तीन बार यहां से भाजपा तथा दो बार बसपा जीत कर आई। इससे पूर्व एक−एक बार यहां से जनता पार्टी और जनता दल के प्रत्याशी के सिर भी जीत का सेहरा बंधा।
करीब तीन दशक से चली आ रही कांग्रेसियों और क्षेत्रीय जनता की मांग कांग्रेस आलाकमान भले कभी नहीं पूरी कर पाई हो लेकिन भाजपा आलाकमान अपने कार्यकर्ताओं को ही नहीं अपनी प्रबल विरोधी कांग्रेस और क्षेत्र की जनता को यह तोहफा देने जा रही है। सब कुछ ठीकठाक रहा तो भाजपा के फायर ब्रांड नेता और वर्तमान में पीलीभीत से सांसद युवा वरूण गांधी 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां से प्रत्याशी हो सकते हैं।
इस चर्चा को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि कुछ कांग्रेसी यूपी फतह करने के लिये सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बाद प्रियंका गांधी को भी चुनाव राजनीति में उतारने को बेताब हैं और सुल्तानपुर से प्रियंका गांधी को चुनाव लड़ाने की संभावनाएं तलाश रहे हैं। सुल्तानपुर से प्रियंका को चुनाव लड़ाने की संभावनाएं इसलिये भी ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि सोनिया गांधी में अब पहले जैसी तेजी नहीं दिखती है तो राहुल गांधी का जादू यूपी में चल नहीं रहा है। संकट की इस घड़ी से उबारने के लिये कांग्रेसियों को प्रियंका तुरूप का पत्ता नजर आ रही हैं।
बहरहाल, बात वरूण के सुल्तानपुर से चुनाव लड़ने की कि जाये तो संघ को भी इसमें कोई दिक्कत नजर नहीं आ रही है। इसे इत्तेफाक ही कहा जायेगा कि जिस संजय गांधी को इमरजेंसी के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने अपने करीब नहीं फटकने दिया था, उन्हीं के पुत्र वरूण गांधी पर संघ खूब प्रेम लुटा रहा है। विकिलीक्स की खबरों को सही माना जाये तो जिस संघ को कांग्रेसी साम्प्रदायिक कह कर लगातार कोसते रहे और रहते हैं उसी कांग्रेस की नेत्री और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी आपातकाल के दौरान संघ से समझौता करना चाहते थे, यह और बात थी कि संघ ने उस समय आपातकाल के जनक के अलावा अन्य कई वजहों से काफी बदनाम हो चुके संजय से हाथ मिलाने से इंकार कर दिया। यह सब तब हो रहा था जबकि संघ ने आपातकाल के खिलाफ जर्बदस्त आंदोलन खड़ा किया था। दरअसल, संजय गांधी को पता था कि विपक्ष के नाम पर देश में संघ के अलावा कोई नहीं है। वह संघ से हाथ मिलाकर इंदिरा गांधी के बाद प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे थे लेकिन संघ ने संजय से हाथ मिलाने की बजाये जनता पार्टी का गठन करके सत्ता पर कब्जा कर लिया। अमेठी से सांसद रह चुके संजय गांधी के लिये यह बड़ा झटका रहा था लेकिन उनकी असमय मौत ने इस तरह की तमाम चर्चाओं पर विराम लगा दिया। विस्फोट डॉट कॉम से साभार