बस्तर का टार्ज़न हमेशा-हमेशा के लिए खामोश हो गया

-अब्दुल रशीद- छत्तीसगढ़ और बस्तर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले चेंदरू ज़हाने पानी से तो कूच कर गए लेकिन उनकी अमिट छाप को दुनियाँ शायद ही भुला पाए। महीने भर से बीमार चल रहे बस्तर के टार्जन कहे जाने वाले चेंदरू 13 अगस्त को पक्षाघात के बाद जगदलपुर के सरकारी अस्पताल में भर्ती हुए थे,महीने भर जिंदगी और मौत से लड़ते हुए बस्तर के 78 वर्षीय टार्जन ने दुनियां को अलविदा कह दिया।
सबसे बडे छत्तीसगढ़िया हीरो 
गढबेंगाल गांव से कभी बाहर नहीं जाने वाले चेंदरु “एन द जंगल सागा” फिल्म प्रदर्शन के समय स्वीडेन समेत कई देशों में भ्रमण करते हुए महिनों विदेशों में रहे। आर्ने सक्सडॉर्फ की स्वीडिश फिल्म ‘एन द जंगल सागा’ में लगभग 10 बाघ और आधा दर्जन तेंदुओं का उपयोग किया गया और चेंदरू ने इस फिल्म में बाघ और तेंदओं के दोस्त की भूमिका निभाई, 1958 में यह फिल्म कान फिल्मब फेस्टिवल में भी प्रदर्शित किया गया। इस फिल्म में काम करने के लिए उन्हें शूटिंग के दौरान दो रुपए रोज़ मिलते थे.
“आज छत्तीसगढ़ी में सैकड़ों फिल्में बन रही हैं. लेकिन चेंदरू रुपहले परदे के सबसे बड़े छत्तीसगढ़िया हीरो बने रहेंगे.”अनूप रंजन पांडेय, बस्तर बैंड के संचालक
शोहरत और उपेक्षा
बस्तर के टार्जन चेंदरू ने जहां शोहरत की बुलंदियों को छुआ वहीं उन्हें घोर उपेक्षा को भी भोगना पड़ा।
जब विदेश में लोग उन्हें देखने आते थे और वे लोग हैरान हो जाते थे कि इतना छोटा बच्चा बाघ के साथ रहता है, खाता-पीता है और उसकी पीठ पर बैठकर जंगल में घूमने की बातें करता है. अपने इस अनोखे अंदाज़ के कारण चेंदरू रातों रात दुनिया भर में मशहूर हो गए। लेकिन जब वे विदेश से लौटकर आए तब उनका सामना ज़मीनी सच्चाई से हुआ जो विदेश में बिताए गए शोहरत भरी जिंदगी से बिल्कुल अलग था।
नब्बे के दशक में चेंदरू को तलाशकर लंबी रिपोर्ट लिखने वाले पत्रकार केवल कृष्ण के अनुसार, “किसी भी दूसरे मुरिया आदिवासी की तरह चेंदरू बेहद खुशमिज़ाज और बहुत सारी चीज़ों की परवाह न करने वाले हैं लेकिन चेंदरू के सामने उनका अतीत आकर खड़ा हो जाता है, एक सपने की तरह. इससे वे मुक्त नहीं हो पाए.”
“एन द जंगल सागा” फ़िल्म में रविशंकर ने संगीत दिया था, लेकिन उस वक्त हालत कुछ अलग था तब रविशंकर अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्षरत थे और उस समय उन्हें चेंदरू के संगीतकार के तौर पर जाना जाता था।
लेकिन जब चेंदरू बीमार पड़े तो एक जापानी महिला ने डेढ़ लाख रुपए की मदद और छत्तीसगढ़ के एक मंत्री द्वारा 25 हज़ार रुपए के मदद के अलवा न तो उनको बिमारी से पहले और न ही बाद किसी ने उनके और उनके परिवार को शायद ही पूछा हो।

अब्दुल रशीद
अब्दुल रशीद

आर्ने सक्सडॉर्फ और उनकी पत्नी एस्ट्रीड सक्सडॉर्फ चेंदरू को गोद लेना चाहते थे लेकिन यह भावना तब तक कायम रहा जबतक चेंदरू शोहरत बटोर रहे थे और आर्ने सक्सडॉर्फ और उनकी पत्नी एस्ट्रीड सक्सडॉर्फ साथ थे लेकिन जब दोनों के बीच तलाक हो गया तब यह भावना जाती रही। कभी अपने बेटे बनाने कि सोंच रखने वालों ने चेंदरू के जीवन के उतार-चढाव में बाद में कभी भी कोई खोज खबर नहीं लिया। लेकिन निश्छल छवि के धनी चेंदरू को बुढ़ापे तक यह उम्मीद थी कि एक दिन उन्हें तलाशते हुए आर्न सक्सडॉर्फ गढ़बेंगाल गांव ज़रूर आएंगे। लेकिन 4 मई 2001 को आर्ने सक्सडॉर्फ की मौत के साथ ही चेंदरू की यह उम्मीद भी टूट गई और बुधवार, 18सितंबर को बस्तर का यह टार्ज़न भी हमेशा-हमेशा के लिए खामोश हो गया। कला के बेताज बादशाह को मेरा सलाम।

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