नरेन्द्र मोदी की हवा है या ये केवल हौवा है?

Narendra-modi-poster-newपिछले कुछ माह से जिस प्रकार भाजपा ने गुजरात के मुख्यमंत्री को देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया है और सोशल मीडिया पर जिस तरह से धुंआधार अभियान चलाया जा रहा है, उससे यह तो तय है कि मुद्दा आधारित राजनीति करने वाली भाजपा उनकी हवा चला कर अपनी नैया पर लगाना चाहती है, मगर क्या वाकई उनकी हवा चल पड़ी है या वे केवल हौवा मात्र हैं, इस पर सवाल उठने लगे हैं।
जहां तक खुद भाजपा का सवाल है, उसे तो मोदी हवा क्या कांग्रेस और गांधी परिवार के खिलाफ आंधी ही नजर आ रही है। हर भाजपाई सिर्फ यही सोच कर खुशफहमी में जी रहा है कि इस बार मोदी उनको वैतरणी पार लगा देंगे। इसके लिए सोशल मीडिया पर बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से प्रोफेशनल अनेकानेक तरीके से मोदी को राजनीति का नया भगवान स्थापित कर रहे हैं। मोदी के विकास का मॉडल भी धरातल पर उतना वास्तविक नहीं है, जितना की मीडिया और सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने खड़ा किया है। इसका बाद में खुलासा भी हुआ। पता लगा कि ट्विटर पर उनकी जितनी फेन्स फॉलोइंग है, उसमें तकरीबन आधे फाल्स हैं। फेसबुक पर ही देख लीजिए। मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताने वाली पोस्ट बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से डाली जाती रही हैं। गौर से देखें तो साफ नजर आता है कि इसके लिए कोई प्रोफेशनल्स बैठाए गए हैं, जिनका कि काम पूरे दिन केवल मोदी को ही प्रोजेक्ट करना है। बाकी कसर भेड़चाल ने पूरी कर दी। हां, इतना जरूर है कि चूंकि भाजपा के पास कोई दमदार चेहरा नहीं है, इस कारण मोदी की थोड़ी सी भी चमक भाजपा कार्यकर्ताओं को कुछ ज्यादा की चमकदार नजर आने लगती है। शाइनिंग इंडिया व लोह पुरुष लाल कृष्ण आडवाणी का बूम फेल हो जाने के बाद यूं भी भाजपाइयों को किसी नए आइकन की जरूरत थी, जिसे कि मोदी के जरिए पूरा करने की कोशिश की जा रही है।
सच तो ये है कि हॉट इश्यू को और अधिक हॉट करने को आतुर इलैक्ट्रानिक मीडिया भी जम कर मजे ले रहा है। भले ही निचले स्तर पर भाजपा के कार्यकर्ता को मोदी में ही पार्टी के तारणहार के दर्शन हो रहे हों, मगर सच ये है कि उन्हें भाजपा नेतृत्व ने जितना प्रोजेक्ट नहीं किया, उससे कहीं गुना अधिक मीडिया ने शोर मचाया है। यह कहना तो उचित नहीं होगा कि वह सोची-समझी चाल के तहत मोदी का साथ दे रहा है, मगर इतना तय है कि उसकी बाजारवादी प्रवृत्ति और टीआरपी बढ़ाने की मुहिम के चलते मोदी एक बम का रूप लेते नजर आ रहे हैं। इस बम में कितना दम है, यह तो आगे आने वाला वक्त ही बताएगा, मगर इसे समझना होगा कि क्या वाकई इस तरह के प्रोजेक्शन इससे पहले धरातल पर खरे उतरे हैं या नहीं। आपको याद होगा कि यह वही मीडिया है, जिसने अन्ना हजारे और बाबा रामदेव में हवा भर कर आसमान की ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया था, मगर जल्द ही हवा निकल गई और वे धरातल पर आ गिरे। दिलचस्प बात ये है कि इन दोनों को अवतार बनाने वाले इसी मीडिया ने ही बाद में उनके कपड़े भी उतारने शुरू कर दिए। इससे इलैक्ट्रोनिक मीडिया की फितरत साफ समझ में आती है।
हालांकि ना-नुकर करते-करते अब भाजपा ने औपचारिक रूप से मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए अपना दावेदार घोषित कर दिया है, इससे पहले का सच ये है कि प्रधानमंत्री पद के दावेदारों ने कभी अपनी ओर से यह नहीं कहा कि मोदी भी दावेदार हैं। वे कहने भी क्यों लगे। मीडिया ने ही उनके मुंह में जबरन मोदी का नाम ठूंसा। मीडिया ही सवाल खड़े करता था कि क्या मोदी प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं तो भाजपा नेताओं को मजबूरी में यह कहना ही पड़ता था कि हां, वे प्रधानमंत्री पद के योग्य हैं। इक्का-दुक्का को छोड़ कर अधिसंख्य भाजपा नेताओं ने कभी ये नहीं कहा कि मोदी ही प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं। वे यही कहते रहे कि भाजपा में मोदी सहित एकाधिक योग्य दावेदार हो सकते हैं। और इसी को मीडिया ने यह कह कर प्रचारित किया कि मोदी प्रबल दावेदार हैं।
मोदी को भाजपा का आइकन बनाने में मीडिया की कितनी बड़ी भूमिका है, इसका अंदाजा आप इसी बात ये लगा सकते हैं कि हाल ही एक टीवी चैनल पर लाइव बहस में एक वरिष्ठ पत्रकार ने मोदी को अपरिहार्य आंधी कह कर इतनी सुंदर और अलंकार युक्त व्याख्या की, जितनी कि पैनल डिस्कशन में मौजूद भाजपा नेता भी नहीं कर पाए। आखिर एंकर को कहना पड़ा कि आपने तो भाजपाइयों को ही पीछ़े छोड़ दिया। इतना शानदार प्रोजेक्शन तो भाजपाई भी नहीं कर पाए।
कुल मिला कर आज हालत ये हो गई है कि मोदी भाजपा नेतृत्व और संघ के लिए अपरिहार्य हो चुके हैं। व्यक्ति गौण व विचारधारा अहम के सिद्धांत वाली पार्टी तक में एक व्यक्ति इतना हावी हो गया है, उसके अलावा कोई और दावेदार नजर ही नहीं आता। संघ के दबाव में फिर से हार्ड कोर हिंदूवाद की ओर लौटती भाजपा को भी उनमें अपना भविष्य नजर आने लगा है। कांग्रेस को भी मोदी की हवा चलती हुई दिखाई देती है, भले ही वह हवाबाजी का प्रतिफल हो।
यदि इस पर गौर करें कि कहीं यह हवा हौवा मात्र तो नहीं है तो इसमें तनिक सच्चाई नजर आती है। अर्थात जितनी हवा है, उससे कहीं गुना अधिक हौवा है। इसका सबूत देते हैं ये तथ्य। आपको याद होगा कि पिछले दिनों कुछ बड़े मीडिया हाउसेस ने सर्वे कराया, जिसमें कांग्रेस और भाजपा को मिलने वाली लोकसभा सीटों में सिर्फ 15 से 20 सीट का फासला है। कांग्रेस के मुकाबले भाजपा को महज 20 ज्यादा! ये उन लोगों के मुंह पर तमाचा है, जो पूरे देश में मोदी की लहर बहने का दावा करते हैं। तमाम सर्वे बता रहे हैं कि देश की दो बड़ी पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी 150 सीट भी नहीं ले पाएंगी। यानी कुल 543 सीटों में से भाजपा 150 (लगभग एक चौथाई) का आंकडा भी ना छू पाए तो ये किस लहर और किस लोकप्रियता के दावे की बात हो रही है? सर्वे के मुताबिक देश का महज 25 प्रतिशत जनमानस मोदी की भाजपा को वोट दिखाई देता दे रहा है, और मीडिया इसे पूरे देश की सोच घोषित करता रहा है।
-तेजवानी गिरधर
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