बढ़ते दुष्कर्म…बेफिक्र अधिकारी !

दुष्कर्म के 2012 में सबसे ज्यादा 2049 मामले सामने आए 
1975 में सबसे कम 164 मामले आए सामने 
वर्ष 2007 से 2012 तक दुष्कर्म के मामले बढ़ते ही जा रहे है
फिलहाल पुलिस की 2013 की रिपोर्ट अभी जारी होना बाकी
कांग्रेस सरकार के कुछ मंत्री और विधायक अभी जेल में 
तो आस्था का प्रतीक आसाराम और उसका पुत्र भी पुलिस शिकंजे में 
तहलका की पहचान तरूण तेजपाल भी पहुंचा जेल में 
nirbhayaजयपुर / राजस्थान के किसी भी कोने में चले जाइए,महिलाओं और छात्राओं के खिलाफ अपराध हर जगह जारी है। कही मामा ही अपनी 5 साल की भांजी को हवस का शिकार बना रहा है तो कही युवा 85 साल की औरत के साथ दुष्कर्म की कोशिश कर रहा है। बीकानेर के एक गांव में एक शख्स ने अपनी ही नाबालिग बेटी को चार साल तक हवस का शिकार बनाया,दुष्कर्म के इस मामले ने प्रदेशभर की आत्माओं को झंझोड़ दिया है,और झुंझुनूं जिले के सूरजगढ़ कस्बे में एक 85 वर्षीय बुजुर्ग महिला को अपने ही कस्बे के राजू ने हवस का शिकार बनाने की कोशिश की घटना के बाद महिला की हालत गम्भीर बनी हुई है अब उसका एक अस्पताल में उपचार करवाया जा रहा है। प्रदेश में बढ़ते दुष्कर्म और स्कूली छात्राओं से छेड़छाड़ की घटनाओं पर रोकथाम को लेकर सरकार चाहे कितनी ही फिक्र करती हो,लेकिन प्रदेश में निचले तबके के पुलिस,प्रशासन के अधिकारी अपने स्तर तक अधिकतर मामलों को दबाने के प्रयास में रहते है। प्रदेश के ग्रामीण और शहरी इलाकों में आए दिन ऐसी घटनाएं होना अब आम हो गई लेकिन कही ना कही इसके लिए प्रशासन परिजनों को भी जिम्मेदार मानता है। एक ओर जहां प्रदेश में पश्चिमी सभ्यता के चलन और बॉलीवुड के ग्लैमर में प्रदेश के युवा कही ना कही दिशा भटक गए है जिसके परिणाम धीरे-धीरे हम सबके सामने आ रहे है,,जिसमें कही राह चलती छात्राओं को छेड़ा जाता है,,तो किसी से शादी करने के नाम पर देहशोषण करने और नाइट पार्टियों में  बढ़ते नशे के चलन से कई बार तो सामूहिक दुष्कर्म के बाद पीड़िताओं की हत्या करना या फिर राह चलती महिलाओं पर उड़ेल दिया जाता तेजाब,कुछ माह पूर्व दिल्ली में हुए सामूहिक दुष्कर्म की आग का दंश तो दिल्ली झेल चुका इसके साथ ही हाल ही में दिल्ली में तहलका मैगजीन के पूर्व सम्पादक तरूण तेजपाल जिस तरह से दुष्कर्म और छेड़छाड़ मामले में फंसे है वह एक चौकाने वाला रहा,,,वहीं राजस्थान के जोधपुर की सेंट्रल जेल में बंद संत आसाराम उर्फ आशुमल और अब पुत्र नारायण साईं की कुरूक्षेत्र से गिरफ्तारी के बाद इस मामले की चर्चा देशभर सहित विदेशों तक पहुंच गई है ।
बात सिर्फ घटनाओं पर चर्चा की नहीं है बात है देश के कानून की जिसकों को लेकर संसद और प्रदेश की विधानसभा में नेताओं की गम्भीरता की है,,हालांकि दिल्ली में हुई दामिनी की घटना के बाद देश के नेता गम्भीर हुए लेकिन प्रदेश के जिलों में और ग्रामीण क्षेत्रों के थानों में पुलिस अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की कार्यशैली जिसको लेकर हर दिन एक नई बहस छिड़ती दिखाई देती है । एक ओर जहां प्रदेश की सरकार ऐसे मामलों पर गम्भीर होने का दावा करती है वहीं सरकार के कई मंत्री और नेता ऐसे मामलों में हवालातों में बंद पड़े,इससे साफ नजर आता है कि प्रदेश की सरकार कितनी गम्भीर है,,मामलों में सजाए मिलने के मामले तो तब आए जब पीड़िताओं ने हिम्मत दिखाते हुए शिकायतें आला अधिकारियों के समक्ष पहुंच खुद दर्ज करवाई या फिर कोर्ट पहुंच इस्तगासे दर्ज करवाएं बाद में कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पहल करते हुए मुद्दे उठाए और खुलकर आवाज को बुलंद किया लेकिन सभी के प्रयास नाकाफी साबित होते दिखाई दे रहे ।

पुरूषोत्तम जोशी
पुरूषोत्तम जोशी

अगर हम बात करे राजस्थान के पुलिस थानों में दर्ज मामलों की और धूल के ढेरों में दबी ऐसी ही कई फाइलों की तो आंकड़े चौकाने वाले ही नजर आते है। थोड़ी दिल को तसल्ली भारत की आजादी के वर्ष 1947 से 1975 तक रही जब दुष्कर्म का एक भी मामला सामने नहीं आया,,लेकिन समय के साथ-साथ दुष्कर्म के मामले सामने आने लगे और वर्ष 1975 में पहली घटना सामने आई और साल भर में यह आंकड़ा सीधा 164 की संख्या पहुंचा,इसके बाद तो जैसे चलन सा शुरू हो गया और वर्ष 1976 में 200 मामले फिर दर्ज हो गए,,इसके बाद प्रशासन ने लगाम लगाने की तैयारी शुरू की और वर्ष 2005 में इसके सार्थक परिणाम सामने आए और घटनाओं में कमी हुई लेकिन खत्म नहीं हुए और इस वर्ष भी 993 प्रकरण प्रदेश के विभिन्न थानों में दर्ज हुए,,इसके बाद लगा की शायद प्रकरणों में अब प्रदेश में काफी कमी आएगी लेकिन असर इसके विपरित नजर आया और वर्ष 2006 में 1085 मामले दर्ज हुए,2007 में 1238 मामले,2008 में 1355 मामले,2009 में 1519 मामले,2010 में 1571,2011 में 1800 और वर्ष 2012 में 2049 प्रकरण प्रदेश के विभिन्न थानों में दर्ज किए गए। यह तो वह मामले है जो काफी जद्दोजहद के बाद थाने तक पहुंचे प्रदेश में ऐसे कई मामले भी है जो थाने पहुंचने से पहले ही दम तोड़ चुके या फिर दबंगों ने उठने वाली आवाज का ही गला घोंट दिया और फिर पुलिस ने अधिकारियों की मिलीभगत से मामलों को दबा दिया फाइलों में ।
रमेश महावर और पुरुषोत्तम जोशी की संयुक्त रिपोर्ट

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