डीडवाना क्षेत्र में 8 लाख वर्शो पूर्व आबादित थे ‘होमो इरेक्ट्स‘

d 1-हनु तंवर नि:शब्द- डीडवाना क्षेत्र में नीचले पेलियोलिथिक काल से सम्बन्धित ‘‘एषूलियन कल्चरल टेªडीषन्स’’, सरस्वती की सहायक नदी दृशद्वती के बहाव व विलुप्त होने, थार के रेगिस्तान की गतिविधियों का प्रभाव तथा डीडवाना में ही मीठे पानी सेे नमक की झील में परिवर्तन के घटनाक्रमों, भूजल में फ्लोराइड व यूरेनियम की उपस्थ्तिि ने इस क्षेत्र को भूवैज्ञानिक दृश्टि से महत्वपूर्ण बना दिया है । डीडवाना नगर का एषूलियन काल खंड अर्थात करीब 8 लाख पूर्व से इतिहास रहा है तथा इस लम्बी समयावधि में इस क्षेत्र में मानव सभ्यता ने अपनी विकास गाथा के कई महत्वपूर्ण अध्याय बनते बिगड़ते देखे है। पेलियोलिथिक समय की गवाह स्थली डीडवाना क्षेत्र में सरस्वती/दृशद्धती नदियों के प्रवाह किनारे मानव ने सभ्य होकर मानवता के पाठ सीखे है। डीडवाना अध्यात्म, कला, धर्म, षिक्षा व साहित्य, उद्योग व व्यापार की दृश्टि से तथा आजादी से पूर्व सŸाा संघर्श के लिए हुए युद्धों में भी प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। इस क्षेत्र ने प्रवासी पक्षियों फ्लेमिंगो को भी लुभाया है । श्रवण कुमार काकड़ा व डॉ. अरूण व्यास द्वारा लिखित तथा पावर प्रकाषक कोलकाता द्वारा हाल में प्रकाषित पुस्तक मध्य राजस्थान स्थित डीडवाना का इतिहास (प्रागैतिहासिक काल से 1952 ई.) में भूवैज्ञानिक षोध व विज्ञान की विविध विधाओं से प्राप्त नवीन निश्कर्शों के आधार पर डीडवाना की प्रागैतिहासिक काल (प्री हिस्टोरिक टाईम) से जारी इतिहास यात्रा सहित इन तमाम पहलूओं को सुधि पाठकों तक पंहुचाने का प्रयास किया गया है।
पुरापाशाण काल की गवाह स्थली डीडवाना
d 2राजकीय बांगड़ महाविद्यालय, डीडवाना के भूगर्भ षास्त्र विभाग के व्याख्याता डॉ. अरूण व्यास व सहयोगी श्रवण कुमार काकड़ा ने बताया की डीडवाना के आस-पास प्रागैतिहासिक आबादी की उपस्थिति, जीवाष्मों की अनुपस्थिति में मानव निर्मित पत्थर कलाकृतियों की घटनाओं से साक्ष्यांकित है। यद्यपि यह षुश्क वातावरण से सम्बन्धित है फिर भी यहाँ से जानवर तथा मानव की अस्थियाँ संरक्षित नहीं है। डॉ. व्यास के अनुसार पुरापाशाण कालीन डीडवाना के आस-पास बसी आबादी का मूल्यांकन तत्कालीन पर्यावरण में हड्डियों के संरक्षित नहीं हो पाने के कारण अवसादी विष्लेशण के आधार पर किया गया है।
डॉ. अरूण व्यास ने बताया की तब जलवायु अर्द्ध षुश्क था जिसके साथ कुछ नम व कुछ षुश्क अवस्थाए भी रही। परिदृष्य में एक जल निकासी व्यवस्था विरासत में मिली जिसमें कई जल निकायाँ षामिल थी जो कि तृतीयक तथा चतुर्थ काल के प्रारम्भ के दौरान ( 26 लाख वर्शो पूर्व के करीब ) सक्रिय थी तथा बाद में विवर्तनिक कारणों से बाधित हो गई। इन मौसमी जल निकायों में सुक्ष्म अवसाद जमा हुआ। जिसमें कंकड.़ बाद में विकसित हुए।
डीडवाना के ‘‘16 आर‘‘ की विष्व पटल पर ख्याती
1970 ई. के दषक के अन्त में डेक्कन कालेज, पुणे के वी.एन. मिश्रा व एस.एन.राजगुरू के द्वारा बहुउद्देष्षीय कार्यक्रम के दौरान अधिकतर प्रागैतिहासिक कलाकृतियाँ खोजी गई। इसकी पहली खोज विषेशतः सिंघी तालाब, इण्डोलाव की ढाणी तथा अमरपुरा में खदान से मुरड़ में हुई खुदाई से प्राप्त हुई। इसके उपरान्त इन खदानों तथा बांगड़ नहर के किनारे स्थित रेत के टिब्बे में ‘‘16 आर‘‘ ( सर्वे आफ इण्डिया की टोपोषीट्स में अंकित जगह के अनुसार यह नाम दिया गया है ) जगह पर एक 19 मीटर की गहराई तक खड़ी खुदाई (खांई/ट्रेंच) की गई जिसमें यहाँ की स्तरिकी उजागर हुई। ‘‘16 आर‘‘ पर 19 मीटर के सेक्षन (खण्ड) में मध्य (देर) व ऊपरी प्लीस्टोसीन काल के दौरान हुए सम्पूर्ण जलवायु परिवर्तन का रिकार्ड उपलब्ध है। इस कारण ‘‘16 आर‘‘ विष्व पटल पर ख्यात है।
डीडवाना क्षेत्र में आबादित थे ‘होमो इरेक्ट्स‘
d 3डॉ. अरूण व्यास व श्रवण कुमार काकड़ा ने बताया की डीडवाना के आस-पास के क्षैत्रों से एषूलियन उपकरण (टूल्स) विषेशतः हस्तकुल्हाड. निकले। इनमें से महत्त्वपूर्ण खुदाई सिंघी तालाब में मुरड़ की खदान के किनारे में की गई, जहाँ दो मुख्य परतो का पता चला, वहाँ पुरातात्विक साम्रगी मिली । कुछ आर्टीफेक्ट्स तथा हस्तकुल्हाड़ अमरपुरा खदान में मुरड़ से 2 मीटर नीचे से भी प्राप्त हुए। अमरपुरा खदान में मुरड़ से 1 मीटर नीचे से प्राप्त नमूने की रेडियो मेट्रिक आयु कैलाथ और सहयोगी के अनुसार 7 लाख 97 हजार वर्श आंकी गई है। फ्रांस के पेरिस के राश्ट्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय के प्रागैतिहासिक विभाग से जुड़ी क्लेरी गेलार्ड के मतानुसार अमरपुरा में एषूलियन का समय काल 8 लाख वर्शो पूर्व का है तथा सिंघी तालाब में यह काल इससे भी पहले का था। उस समय एषिया के अधिकतर क्षेत्र में ‘होमो इरेक्ट्स‘ आबादित थे तथा वे भारत में एषूलियन इण्ड्रस्ट्रीज के षिल्पकार थे।
कौन थे ‘होमो इरेक्ट्स‘
‘होमो इरेक्ट्स‘ होमोनिन की विलुप्त प्रजाति है जिसका उदभव अफ्रिका में हुआ वहां से वे जार्जिया, भारत, श्री लंका, चीन, व जावा में फैल गए । ये प्लीस्टोसीन काल में जीवित रहे व इनके जीवाष्म 1 लाख 43 हजार से 18 लाख वर्शो तक की आयु के है, इन्हें ‘‘अपराइट मेन’’ भी कहते है। वर्तमान मानव ‘होमो सेपियन्स‘ कहलाते है जिसका उदभव ढाई से चार लाख वर्शो पूर्व तक माना गया है।
डीडवाना क्षेत्र में खुदाई में मिली मानव निर्मित आकृतियाँ
डीडवाना क्षेत्र में डेकन कालेज, पूणे के दल द्वारा डा. वी.एन. मिश्रा व डा. एस.एन. राजगुरू के निर्देषन में सिंघी तालाब में ‘‘एषूलियन इण्स्ट्रीज’’ की खुदाई की गई जिसमें मानव निर्मित आकृतियाँ मिली। यह आर्टिफेक्ट्स भूसतह से 40 व 80 सेंटी मीटर नीचे स्तरों में पाए गए। नीचले स्तर में ‘एषूलियन’ के बड़े हस्तकुल्हाड. मिले, ऊपरी स्तरों में इनकी कमी पाई गई। डीडवाना के निकट ‘16 आर ’ स्थान पर कुछ पुरातात्विक स्तरों की ‘‘थर्मोलुमिनेसेंस’’ व ‘‘युरेनियम/थोरियम डेटिंग’’ द्वारा आयु अवधि सीमा 3 लाख 50 हजार से 25 हजार वर्शो पूर्व आंकी गई है। सिंघी नालाब में नीचले एषुलियन निक्षेप से क्वार्टज स्फाटिक के 6 क्रिस्टल खोजे गए है जो होमोनिन के आकर्शक वस्तुओं के संग्रहण करने के स्वभाव की ओर संकेत करते है।
खुदाई में (16 आर) से छोटे औजार, बड़े काटने के औजार जैसे ‘चौपर’, पोलीहेण्ड्रोस’ व ‘स्पेरोइड्स’ इत्यादि करीब 1300 आर्टिफेक्ट्स सिंघी तालाब में दो स्तरों में मिले। इनमें से 90 प्रतिषत मारवाड़ बालिया की पहाड़ी की कायान्तरित चट्टानों से निर्मित है। सिंघी तालाब से इस पहाड़ी की दूरी करीब 3 किमी है। ये चट्टानें मुख्यतः ‘‘क्वार्टजाइट्स’’ है। इससे स्पश्ट होता है कि पुराऐतिहासिक मानव झील के किनारे आबाद थे। क्लेरी गेलार्ड व सहयोगी द्वारा 1980 के दषक में मध्य पेलियोलिथिक टूल्स प्राप्त किये गए। सिंघी तालाब से 120 (क्वेरी से 95, खुदाई से 25) इण्डोलाव की ढाणी से 8, अमरपुरा से 4, जानकीपुरा से 17, जायल से 62, कोलिया से 64, बाण्डलाव की तालाब से 21 तथा सुराबी तालाब से 5 अर्थात कुल 10 स्थानों से 301 हस्तनिर्मित कुलहाड़िया प्राप्त हुई ।
ऐसा रहा बदलाव का दौर
डॉ. अरूण व्यास ने बताया की 9 हजार वर्शो पूर्व मुख्य सरस्वती नदी के उत्थान के साथ वैदिक सभ्यता का काल रहा तथा कृशि व खेती, पषुपालन का प्रारम्भ हुआ। 6 हजार वर्शो पूर्व षुश्क जलवायु की षुरूआत हुई। नवविवर्तनिक हलचलों के कारण पर्वतमालाओं के उत्थान के फलस्वरूप नदियों के बहाव व जल क्षैत्रों में परिवर्तन हुआ। दृशद्वती की फीडर नदी से कटाव, सरस्वती के ऊपरी जल क्षैत्र के अपहरण, तथा सरस्वती के पष्चिम दिषाओं में मार्ग बदलाव के कारण सरस्वती/ दृशद्वती नदियों के मार्ग में रूकावटे हुई। वैदिक सभ्यता का उतार होने लगा तथा सिन्धुघाटी सभ्यता (मोहनजोदड़ों) का उत्थान हुआ। वर्तमान से 5 हजार वर्शो पूर्व के काल में षुश्क जलवायु में बढ़ोतरी होने लगी तथा 3900 वर्शों पूर्व सिन्धुघाटी सभ्यता का अन्त हो गया। इसी समयावधी में डीडवाना क्षेत्र से दृशद्वती नदी विलुप्त हो गई।
‘‘16 आर‘‘ के सरंक्षण की दरकार
hanu tanvarडीडवाना क्षेत्र में बांगड़ नहर के किनारे स्थित रेत के टिब्बे में स्थित खांई/ट्रेंच जिसे सर्वे आफ इण्डिया की टोपोषीट्स में ‘‘16 आर‘‘ के रुप में अंकित किया गया है। इस जगह पर 19 मीटर की गहराई तक खड़ी खुदाई की गई जिसमें यहाँ की स्तरिकी उजागर हुई व इस सेक्षन (खण्ड) में मध्य (देर) व ऊपरी प्लीस्टोसीन काल के दौरान हुए सम्पूर्ण जलवायु परिवर्तन का रिकार्ड उपलब्ध है तथा साथ ही एषूलियन उपकरण (टूल्स) /आर्टीफेक्ट्स विषेशतः हस्तकुल्हाड. निकले जिनकी बदौलत डीडवाना क्षेत्र में ‘होमो इरेक्ट्स‘ के आबादित होने के संकेत मिले थे । श्रवण कुमार काकड़ा व डॉ. अरूण व्यास के अनुसार विष्व पटल पर ख्यात ‘‘16 आर‘‘ की जगह बांगड़ नहर के किनारे स्थित रेत के टिब्बे में 19 मीटर की गहराई तक खड़ी खुदाई वाली खांई/ट्रेंच को मानव विकास व सभ्यता के मोनुमेंटल स्मारक व धरोहर के रुप में सरंक्षित करने की दरकार है ताकि देष विदेष के पर्यटक डीडवाना क्षेत्र में स्थित ‘‘16 आर‘‘ पर आए तथा मानव विकास व सभ्यता की कड.ी से जुडे. स्थान को देखेे , इसी डीडवाना क्षेत्र से करीब 4 हजार वर्शो पूर्व दृशद्वती नदी विलुप्त हो गई थी जहां अब इसके निषान सिंघी तालाब व नमक की झील के रुप में मौजूद है।

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