“हिंदी” के वर्चस्व पर भारी अंग्रेजी का चलन !

राज्य सरकार की करीब 270 से अधिक वेबसाइट्स 
लेकिन अधिकांश वेबसाइट्स पर नहीं है हिंदी भाषा का ऑॅप्शन
तो ऊर्दू अकादमी की वेबसाइट पर भी नहीं ऊर्दू भाषा में जानकारी

राष्ट्रीय भाषा को लेकर देश के चाहे कितने ही वीरों ने जिंदगियां न्यौछावर की..हो प्रदेश सरकार के कारिंदे इसके वर्चस्व को लेकर कितने गम्भीर है यह मात्र एक छोटे से उदाहरण से जाहिर हो रहा है….जिस प्रदेश सरकार के विभागों के कार्यों के प्रचार प्रसार और विभिन्न प्रकार की जानकारी को लेकर बनाई गई करीब 270 से अधिक वेबसाइट्स पर अंग्रेजी का बढ़ता चलन करीब दोगुना भारी पड़ रहा है….जहां एक ओर देश भर में सोश्यल मीडिया और वेब सर्फिंग का उपयोग का बढ़ता जा रहा है…हर आमोखास घर बैठे जानकारी हासिल करने को लालायित रहता है….वेबसाइट्स पर अधिकारी नई जानकारियां अपटेड करने में भी आलसी रवैया अपना रहे है…पेश है एक रिपोर्ट

पुरूषोत्तम जोशी
पुरूषोत्तम जोशी

प्रदेश सरकार में जन-जन और आमजन तक जानकारी पहुंचाने के बनाया गया है जनसम्पर्क विभाग,,जिसमें कई प्रमुख पद के सृजन के साथ ही कई कार्मिकों की नियुक्ति भी की गई जिसका मुख्य कार्य प्रदेश सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं,विभिन्न सूचनाओं,घोषणाओं सहित विभिन्न प्रकार की जानकारियां वेबसाइट पर अपलोड करना और प्रदेश भर के मीडिया संस्थानों को प्रेस रिलीज जारी करना सहित कई प्रमुख कार्य निर्धारित किए गए है साथ ही प्रमुख रूप से वेबसाइट्स पर अंग्रेजी सहित हिंदी भाषा में भी जानकारी मौजूद हो यह भी सुनिश्चित करना है। लेकिन ये विभागीय अधिकारी ऐसे मनमौजी हो गए कि वेबसाइट्स पर मात्र हिंदी भाषा में जानकारियां डाल रहे और विभागीय वेबसाइट्स पर भाषा बदलने का ऑॅप्शन जोड़ना लगता है भूल गए । राज्यसरकार के वेबपोर्टल “राजदर्पन” पर सरकार की करीब 270 वेबसाइट्स लिंक डाले गए है जिनमें सरकार के सभी विभाग,योजनाएं,जिलों के पोर्टल सहित कई अन्य वेबसाइटों से अधिकांश पर नहीं है भाषा बदलने का ऑॅप्शन हालांकि इन वेबसाइट्स पर हिंदी में पीडीएफ फॉर्मेट में जानकारियों की फाइलें अटैच की गई है अधिकारियों की लापरवाही हद तब हो गई जब देखा कि जिस ऊर्दू अकादमी की स्थापना ही भाषा के प्रचार प्रसार के लिए की गई है और उसी अकीदमी की वेबसाइट पर ऊर्दू भाषा में जानकारी तक नहीं है भाषा बदलने का ऑॅप्शन अटैच तो दूर की बात…अब सवाल यह है कि क्या सरकारी वेबसाइटों पर सिर्फ अंग्रेजी का ऑॅप्शन रहना जरूरी है या फिर 270वेबसाइटों में से जिन कुछ वेबसाइटों पर हिंदी भाषा बदलने का ऑॅप्शन क्यों दिया गया है ?  क्या कुछ काम के प्रति सजग कार्मिक ही है जो अपना कार्य पूर्ण दायित्व के साथ निभा रहे है या फिर कुछ कार्मिक अपने ऊंचे रसूखों का यहां भी फायदा उठा रहे है…आखिर मुख्यमंत्री कब लेंगी इस विभाग के हालातों का जायजा,,क्या लापरवाह अधिकारियों और मनमौजी कार्मिकों पर होगी कार्रवाई?
आजादी के 68 सालों बाद एक बार फिर लगने लगा है कि प्रदेश सरकार का सरकारी अमला अब भी गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है….इग्लैण्ड की मातृभाषा कही जाने वाली अंग्रेजी भाषा का उपयोग जिस प्रकार भारत सरकार और राजस्थान सरकार के विभागों के कार्यों में बढ़ रहा है एकबारगी तो ऐसा ही लग रहा है…कि राजस्थान में जो लोग राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर संघर्ष कर रहे वो लोग इन अधिकारियों से ज्यादा और संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेड़कर से कहीं ज्यादा बुद्धिमान नजर आ रहे हैं।

जयपुर से पुरूषोत्तम जोशी

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