‘‘हम जो परिवर्तन चाहते हैं, पहले स्वयं उसे जीवन में धारण करें’’

gandhiएक समय तक जब बापू पर भारतीय राष्ट्रीय कोग्रेस का एकाधिकार हुआ करता था,
तब http://mnbiofuels.org/cialis-online-drugstore कांग्रेसी सिर्फ मन-वाणी और कर्म से ‘‘गांधीवादी चिन्तन’’ से ओत-प्रोत
थे। धीरे-धीरे ‘‘गांधी-दर्शन’’ अन्य दर्शन शास्त्रों की तरह कपड़े में कर
पूजास्थल पर रख लिया गया। जिसकी 2 अक्टूबर और 30 जनवरी को झाड़फूंक कर धूल
साफकर माथे से लगाकर स्वयं गांधीवादी सत्यनिष्ठ होने का पाखण्ड दिखाई
देने लगा। आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कांगेसी संकीर्णता से बाहर
निकलकर स्वार्थ और महत्वाकांक्षा पोषक एक सिम्बल हो गये हैं, सियासी
तारनहार के रूप में।
अध्यात्म-चिन्तक गांधी का क्या यही स्वराज्य-रामराज्य भविष्य था? बापू का
दार्शनिक चिन्तन वास्तव में उद्धारक है, इसमें कोई संदेह नहीं। किन्तु
पाखंड प्रदर्शन करते हुए स्वार्थ और महत्वाकांक्षा में गांधी-जाप, उपजाति
के रूप गांधी शब्द का प्रयोग और अन्याय, अधर्म, असत्य, अज्ञान हिंसा व
अनीति के कार्यो में बापू के चित्र को लेकर रंगमंचीय अभिनय ही
सत्य-अहिंसा के पूजारी का भक्त बनकर लूटना आज फैशन बन चुका है, यही कारण
है बापू सियासी तारनहार सिम्बल हैं।
वास्तव मेें बापू को आजादी के बाद इन परिस्थितियों का अहसास रहा होगा,
तभी उन्होंने आजादी मिलते ही स्वतंत्रता आंदोलन की सूत्रधार कांग्रेस को
भंग करने का विचार रखा था। फिर भी गांधी-दर्शन ने लगभग अर्द्धशताब्दी
कांग्रेस को सत्ता सुख दिया, शायद इसीलिए सभी राजनीतिक दलों ने ‘‘गांधी’’
को तारनहार मानते हुए दुरुपयोग शुरु कर दिया। बापू के नाम और तिरंगे
द्वारा आम आदमी पार्टी के दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने किन्तु गांधीदर्शन
के नाम पर धोखाधड़ी का हस्र सामने आने लगा। गांधी का कथन- ‘‘हम जो
परिवर्तन चाहते हैं, पहले स्वयं उसे जीवन में धारण करें।’’ स्वयं बापू ने
सत्य-अहिंसा का उपदेश देने की बजाय अपने जीवन में ऐसा उतारा के हिंसा,
असत्य और अनैतिकता से कभी समर्झाता नहीं किया। आज उक्त कथन वैदिक ऋचा के
रूप में सर्वसिद्धि प्रदाता है। – देवेश शास्त्री

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