मूल: अज्ञेय
साँप !
तुम सभ्य तो हुए नहीं,
नगर में बसाना भी तुम्हें नहीं आया
एक बात पूछूं (उत्तर दोगे?)
तब कैसे सीखा डसना –
विष कहाँ पाया ?
सिन्धी अनुवाद: देवी नागरानी
नांग !
तूँ सभ्य त थ्यें कीन ,
शहर में वसणु बि तोखे कीन आयो
हिक गाल्हि पुछाँ (जवाब डींदें? )
पोइ कींअ डंगण सिखी व्यें –
ज़हर किथा पातुइ?