हार और जीत के बीच बिजली का झटका

अब्दुल रशीद
अब्दुल रशीद

-अब्दुल रशीद-  (सिंगरौली मध्य प्रदेश) लोकतंत्र में हार और जीत होना स्वाभाविक सी प्रक्रिया है जिसे राजनैतिक दलों को मर्यादित रह कर स्वीकार करना चाहिए. न तो जीत के मद में चूर होकर जनता के मूलभूत समस्याओं से मुंह फेरना चाहिए और नहीं हारने के बाद जनता की आवाज़ को उठाने से परेहज करना चाहिए.हार और जीत के दोनों चरम स्थिती को समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में चखा लेकिन न तो विधानसभा में प्रचंड बहुमत से मिली जीत और न ही लोकसभा में हुई हार में समाजवादी पार्टी को जनता का दर्द नज़र आया. जीतने के बाद रेवारियां तो बांटी गई लेकिन गरीब,युवा बेरोजगारों और भ्रष्टाचार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. अलबत्ता प्रशासन में वही होने लगा जिसकी कयास चुनाव से पहले और चुनाव जितने के बाद लोग लगाते रहें. क्या कार्यकर्ता का लहर क्या पुलिसिया डंडो का कहर इतना बरपा की लोकसभा आते आते लोगों ने मन बना लिया के बस अब और नहीं परिणामस्वरूप भाजपा को ७१ सीटों पर विजयश्री प्राप्त हुआ और सपा को पांच सीटों से ही संतोष करना पड़ा.ऐसा परिणाम क्यों आया इस पर मंथन करने के बजाय लगता है सूबे की सरकार ने लोगों को हर स्तर पर सबक सिखाने की ठान ली है.पहले तो लोलीपॉप योजनाओं को बंद कर दिया फिर बिजली से बेहाल जनता कि ख़बर जब मिडिया ने उठाया तो बिजली से परेशान जनता को राहत पहुंचाने के बजाय अब बिजली कंपनियों को सरकार ने बिजली चोरी होने की जांच करने का ऐसा पारस थमा दिया है जिससे आम जनता को रहत मिलने से तो रहा, हाँ बिजली विभाग के अच्छे दिन जरुर आ गए. रमजान में रोजेदारों को ऐसी सौअगात शायद इस से पहले किसी सरकार ने नहीं दिया होगा क्योंकि ईद मानाने का सारा पैसा चढ़ावे के रूप में साहेब को दे दिया जा रहा है वह भी खामोशी से नहीं तो साहेब इतने कि आरसी काट देंगे की पुस्त दर पुस्त बिजली कंपनी द्वारा दिया यह सबक लोग याद रखेंगे.यह हाल ऐसे शहर का है जिसे दुनियां उर्जधानी के नाम से जानती है, जी हां सोनभद्र जिला का शक्तिनगर क्षेत्र जहां पर स्थापित बिजली परियोजना देश भर के मेट्रो शहर को रौशन करती है वहां पर सूबे कि सरकार परियोजनओं द्वारा रियायत दर पर बिजली मुहैया कराने के बजाय बिजली विभाग द्वरा चेकिंग करा रही,यह बात समझ के परे है.ज्ञात हो कि परियोजनाओं द्वारा निर्धारित सीमा के अंतर्गत विस्थापित व प्रभावितों के लिए बिजली,पानी,शिक्षा और स्वाथ्य सुविधा देना सामाजिक दायित्व के रूप में किया जाना था जिसको निभाने के नाम पर महज़ टोटका किया जाता है.सूबे की सरकार द्वारा इन परियोजनाओं से रियायत दर पर बिजली और मूलभूत हक़ दिलाने कि पहल करने के बजाय, विस्थापित व प्रभावित जनता से न केवल महंगे दर से बिजली बिल वसूला जा रहा है बल्कि जांच का भय दिखा कर गरीब विस्थापितों को २ किलोवाट का कनेक्सन दिया जाने की खबर है जिसके बदले ३५०० रुपया तत्काल और १५०० रुपया द्विवमासिक वसूला जाएगा. ऐसा लगता है मानो परियोजनाओं द्वारा मिलने वाली मुफ्त प्रदुषण का मुआबजा वसूल जा रहा हो. इस बात का कतई यह मतलब नहीं के बिजली चोरी करने वालों को बक्सा जाए लेकिन कार्यवाही न्यायपूर्ण हो इसकी उम्मीद करना तो जनता का हक़ है.
बे लाग लपेट- हारेंगे त हरेंगे और जीतेंगे त थुरेंगे शायद यह हक़ीकत कहावत को चरित्रार्थ किया जा रहा हो!

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