रहना ही कौन चाहता है इस दिल्ली में ?

Wasim-Akram-Tyagi-वसीम अकरम त्यागी- विजय गोयल जो कह रहे हैं उसमें दम तो है, मगर उनको कहने का सलीका रत्ती भर भी नहीं। ये सच है बिहार और उत्तर पूर्वी यू पी से भारी संख्या में लोग दिल्ली जैसे महानगरों में रोज़गार की तलाश में आते हैं। ये लोग अपना घर, अपनी ज़मीन छोड़कर यहाँ आते हैं। हर शख़्स (मज़दूर) ये चाहता है कि वह जो कर रहा है उस मज़दूरी को उसके बच्चे न करें। बच्चों के भविष्य को सुधारने की तमन्ना छत से टपकती हुई बरसात की बूँदो से बने सुराख़ों को भरने की ख़्वाहिश और एक सामान्य जीवन जीने की तमन्ना उसे शहर खींच लाती है, जहाँ ग्रामीण क्षेत्र के मुकाबले रोज़गार के अवसर ज़्यादा हैं। ….मगर सवाल ये पैदा होता है कि “हिन्दुस्तान गाँव में बसता है”, का नारा देने वाले देश की व्यवस्था ग्रामीण विकास के नाम पर फूटी कौड़ी भी खर्च करने के लिये तैयार क्यों नहीं है? क्यों आज़ादी के 65 साल बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की तरफ़ होने वाला पलायन नहीं रुक पाया? क्यों अपनी ज़मीनों से उजड़ कर लोग शहरों की तरफ़ आ रहे हैं? जहाँ पर उनका बहिष्कार करने का फरमान जारी किया जाता है।

एक रिक्शा चालक, मज़दूर को दिल्ली छोड़ देने की सलाह देना आसान है, मगर किसी शत्रुघ्न सिन्हा, मनोज तिवारी, गिरिराज सिंह, रामविलास पासवान, चिराग पासवान जैसे माननीयों को यही दिल्ली, यही विजय गोयल और इनकी पार्टी पलक पाऊँड़े बिछाकर दिल्ली में बसने का निमंत्रण देती है। क्या विजय गोयल ने उपरोक्त माननीयों को भी ये सलाह दी कि वो दिल्ली ख़ाली कर दें? नहीं क्योंकि उनकी लड़ाई ग़रीबी से नहीं ग़रीबों से है, बिहार या यू पी से चुनकर आने वाले सांसदों से नहीं। अगर सचमुच ही विजय गोयल को यू पी और बिहार के लोगों से कोफ़्त होती है, तो उन्हें और उनकी पार्टी को चाहिये कि वो इस पलायन को रोकें और ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर पैदा करें।

विजय गोयल को यह समझ लेना चाहिये कि जिस तरह प्रधानमंत्री रोज़गार की तलाश में दिल्ली आकर बसे हैं, उसी तरह गाँव से आने वाला लखिया, रंजीत, कालू या कोई असलम दिल्ली जैसे बड़े शहरों में सिर्फ़ रोज़गार के लिये आता है वहाँ बसने के लिये नहीं। ये अलग बात है कि हालात उसे वहाँ बसने पर मजबूर कर देते हैं, क्योंकि वह नहीं चाहता जिस असुविधा, अभाव का सामना उसने किया है, उसके बच्चे भी उन अभावों का सामना करें। ग्रामीण क्षेत्रों को रोज़गार दीजिए साहिब फिर यू पी और बिहार के लोग आपकी दिल्ली में नहीं आएँगे और आएँगे तो बसेंगे नहीं, क्योंकि कल जो चंबल हुआ करती थी आज वो दिल्ली है। कौन चाहता है इस दिल्ली में रहना? ये तो कमबख़्त एक पेट है जिसे भरने की तमन्ना लोगों को यहाँ खींच लाती है।
www.hastakshep.co

error: Content is protected !!